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पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी और विचारधारा पर आधारित 17 पुस्तकों का विमोचन

उपराज्यपाल ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय चेयर की तरफ से प्रकाशित की गई इन पुस्तकों से पढ़ने वालों को काफी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें पंडित दीनदयाल की जीवनी और विचारधारा के अनेक पहलुओं की जानकारी मिल पाएगी।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Mon, 10 Jan 2022 03:56 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jan 2022 03:56 PM (IST)
प्रो. कौशल किशोर मिश्रा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय चेयर के प्रभारी और सोशल साइंस के डीन हैं।

जम्मू, राज्य ब्यूरो : उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवनी और विचारधारा पर आधारित 17 पुस्तकों का विमोचन रविवार को किया। इन पुस्तकों को प्रो. कौशल किशोर मिश्रा ने लिखा है और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पंडित दीनदयाल उपाध्याय चेयर ने इनका प्रकाशन किया है। उपराज्यपाल ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय चेयर की तरफ से प्रकाशित की गई इन पुस्तकों से पढ़ने वालों को काफी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें पंडित दीनदयाल की जीवनी और विचारधारा के अनेक पहलुओं की जानकारी मिल पाएगी।

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उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संदेश की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। उपराज्यपाल ने कौशल किशोर मिश्रा के प्रयासों की सराहना की। प्रो. कौशल किशोर मिश्रा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय चेयर के प्रभारी और सोशल साइंस के डीन हैं। जो पुस्तकें जारी की गई है, उनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राष्ट्र गौरव के प्रति दृष्टिकोण, संस्कृत चिंतन- सनातन हिंदू धर्म और एथिक्स, विचार विधि- पंडित दीनदयाल उपाध्याय परिचय, समाज प्रबंधन- पंडित दीनदयाल उपाध्याय परिचय हिंदी व अन्य शामिल हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1996 को वर्त्तमान उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रजभूमि में मथुरा में नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था। इनके बचपन में एक ज्योतिषी ने इनकी जन्मकुंडली देख कर भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक एक महान विद्वान एवं विचारक बनेगा। एक अग्रणी राजनेता और निस्वार्थ सेवाव्रती होगा। मगर ये विवाह नहीं करेगा। दीनदयालजी ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। बीए की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कानपुर आ गए, जहां वो सनातन धर्म कॉलेज में भर्ती हो गए। सन 1737 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ में सम्मिलित हो गए।


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