पीएसए के तहत की गई कार्रवाई को समाप्त नहीं माना जा सकता, जम्मू-कश्मीर ने खारिज की अपील
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पीएसए के तहत नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा कि एक आपराधिक मामले के लोक अदालत में निपटारे से पीएसए कार्रव ...और पढ़ें

यह फैसला जम्मू और कश्मीर के कानूनी क्षेत्र में महत्वपूर्ण है।
जेएनएफ, जम्मू। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत की गई नजरबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि किसी एक आपराधिक मामले के लोक अदालत में निपट जाने मात्र से पीएसए के तहत की गई कार्रवाई को समाप्त नहीं माना जा सकता।
अदालत ने इस आधार पर रविंद्र कुमार उर्फ शानू द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस अरुण पल्ली और जस्टिस रजनीश ओसवाल की डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए जिला प्रशासन द्वारा जारी नजरबंदी आदेश को बरकरार रखा।
एक एफआईआर के निपटारे से पीएसए निरस्त नहीं होता
अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि जिन एफआईआर के आधार पर नजरबंदी की गई, उनमें से एक एफआईआर नंबर 05/2022 (पुलिस स्टेशन बिलावर) लोक अदालत में समझौते के बाद बंद हो चुकी है। इसके अलावा नजरबंदी आदेश पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि नजरबंदी के आधारों को आरोपित को उसकी समझ की भाषा में नहीं बताया गया था। वहीं, सरकार की ओर से पेश वकील ने नजरबंदी आदेश के पक्ष में कहा कि आदेश पूरी तरह कानूनी और तथ्यों पर आधारित है।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यदि एक एफआईआर समझौते के बाद समाप्त भी हो गई हो, तब भी अन्य तीन एफआईआर ऐसे हैं, जिनके आधार पर नजरबंदी का आदेश पारित किया गया। पीएसए की धारा 10-ए का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि यदि नजरबंदी के कुछ आधार अस्थिर भी हो जाएं, तो शेष आधारों पर नजरबंदी आदेश कायम रह सकता है। इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया।

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