Nag Panchami 2022: इस दिन मनाई जाएगी नाग पंचमी, इस विधि से पूजा करने से मिलेगी कालसर्प योग से मुक्ति
भारत में अकेले कश्मीर में ही सात सौ से अधिक स्थानों पर सर्प मूर्तियों की पूजा होती थी। नीलमत पुराण के अनुसार कश्मीर की सम्पूर्ण भूमि नीलनाग की ही देन है। अनन्तनाग कोकरनाग वेरीनाग कमरुनाग नारानाग कौसरनाग आदि नाम इस बात की पुष्टि करते हैं।

बिश्नाह, संवाद सहयोगी। प्राचीन शिव मंदिर बिश्नाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि इस वर्ष नागपंचमी दो अगस्त मंगलवार को है। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। पंचमी नागों की तिथि है, ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं।
नागों का धार्मिक महत्व:
सभी धार्मिक शास्त्रों, पुराणों में नाग को देवता माना गया है। सम्पूर्ण सृष्टि के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु जी शेषनाग पर विश्राम करते हैं। भगवान श्री राम के चौदह वर्ष के वनवास में शेषावतार लक्ष्मण जी पूरे समय उनकी सेवा करते रहे। भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद मथुरा से गोकुल ले जाते समय भयंकर वर्षा से बचाने के लिए शेषनाग जी ने अपने फणों का छत्र श्री कृष्ण जी के ऊपर बनाकर उनको सुरक्षा प्रदान की थी। भगवान शंकर तो कहलाते ही नागेन्द्रहार हैं, अनेक विषधर नाग सदैव उनके शरीर की शोभा बढ़ाया करते हैं। नागपंचमी के दिन ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने शेषनाग जी को सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने फण पर धारण करने का महान कार्य सौंपा था। अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन में वासुकि नाग को नेति (रस्सी) के रूप में देवताओं और दैत्यों ने उपयोग किया था।
भारतीय संस्कृति में नागों का महत्व:
भारतीय संस्कृति में नागों को प्रारम्भ से ही एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारत में अकेले कश्मीर में ही सात सौ से अधिक स्थानों पर सर्प मूर्तियों की पूजा होती थी। नीलमत पुराण के अनुसार कश्मीर की सम्पूर्ण भूमि नीलनाग की ही देन है। अनन्तनाग, कोकरनाग, वेरीनाग, कमरुनाग, नारानाग, कौसरनाग, आदि नाम इस बात की पुष्टि करते हैं। यहाँ नाग देवता का सर्वाधिक सम्मान होता है। भारत में सभी जगहों पर नाग मंदिर हैं, जहां पर नियमित नागों की पूजन होती है। दक्षिण भारत में भी मोहल्ले-मोहल्ले नाग मंदिर देखे जा सकते हैं। बंगाल में मनसा देवी को नागमाता के रूप में पूजा जाता है। मध्य भारत में सर्प की बाबियों के समीप बने हुए चबूतरों पर उनकी पूजा की सामग्री चढ़ाने की धार्मिक परम्परा है। कहने का भाव यह है कि भारत का कोई प्रांत कोई कोना ऐसा नहीं है जहां नाग पूजा का प्रचार न हो। इन्ही सब बातों को ध्यान रखते हुए हमारे पूर्वजों ने नागपंचमी जैसे त्यौहार की रचना की थी। हमें साँपों से डर लगता है परंतु सच्चाई यह है कि सर्प तभी काटते हैं जब उन्हें छेड़ा या दबाया जाता है। हमारे पूर्वज श्रावण मास में धरती नहीं खोदते थे क्योंकि धोखे से ही सही पर साँप के मारे जाने का ख़तरा रहता है।
विदेशों में नाग पूजा:
विदेशों में भी नागों की पूजा की जाती है। चीन की राजधानी के मध्य में विशाल नाग मंदिर है जहां चीनी जनता द्वारा नागपूजन किया जाता है। एबीसीनिया और जापान के राजवंश अपने को आज भी नागवंशी ही मानते हैं। यूनान और मिश्र के मंदिरों में साँप पाले जाते हैं और उनकी पूजा की जाती है। कई अन्य देश भी नाग की पूजा करते हैं। विदेशों के साहित्य में भी भारतीय साहित्यों की भाँति नागों का महत्व वर्णित है।
नागों की उत्पत्ति:
वेद पुराणों के अनुसार नागों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी कदरु से हुई थी। नागों का निवास पाताल लोक में बताया गया है, इसीलिए इसे नागलोक भी कहते हैं। नाग कन्याओं का सौन्दर्य देवियों और अप्सराओं के समान ही कहा गया है। साँप की आयु एक सौ बीस वर्ष की होती है। साँप का एक मुँह, दो जीभ, बत्तीस दांत और विष से भरी चार दाढ़ होती हैं।
नागपंचमी की पूजन विधि:
नागपंचमी के दिन व्रत रखकर साँपों को खीर व दूध पिलाया जाता है। सफ़ेद कमल पूजा में रखा जाता है। सपेरों को बुलाकर साँपों के दर्शन किए जाते हैं। साँप की बाँबी की पूजा की जाती है। घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर गोबर के सर्प बनाकर उनका दूध, दूर्वा, कुश, गंध, पुष्प, अक्षत और लडडू आदि चढ़ाकर पूजा करते हैं। जो भी व्यक्ति नागपंचमी के दिन सर्पों की विधिवत पूजा करता है उसे सर्पों का भय नहीं रहता। नागदेवता उसका घर धन-धान्य से भर देते हैं। नागदेवता ही सदा सुहागन होने का और संतान प्राप्ति का वरदान देते हैं। यदि हमसे धोखे से कोई साँप मर गया हो या हमारे ख़ानदान में किसी से साँप मर गया हो तो नागपंचमी के दिन नागों की पूजन करने के पश्चात हम अपने अपराध की क्षमा माँगकर दोषमुक्त हो सकते हैं। सर्प पूजन के पश्चात कहें कि ज्ञान या अज्ञान में मैंने या मेरे पितरों ने सर्प का वध इस जन्म या अन्य जन्म में किया हो तो उस पाप को नष्ट करो और मेरे अपराध को क्षमा करो।
कालसर्प दोष से मुक्ति:
कुंडली में जब राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह क़ैद हो जाते हैं तो उस स्थिति को कालसर्प दोष कहते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे नागदोष भी कहते हैं। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष से मुक्ति पायी जा सकती है। जिनको कालसर्प दोष हो वह व्यक्ति नागपंचमी के दिन चाँदी के चार नाग पंचामृत में डुबोकर रखे नमः शिवाय मंत्र के आधे घंटे जप करे फिर नाग को शिवलिंग पर चढ़ा दे। इसके अलावा दूसरा उपाय यह है कि शिवलिंग के आकार का चाँदी या ताम्बे का नाग विधिवत पूजन करके शिवलिंग पर चढ़ा दें। कालसर्प दोष की शांति बहुत जरुरी होती है, जिसको कालसर्प दोष हो वह व्यक्ति अपने साथ वालों से हर क्षेत्र में पीछे रह जाता है, उसको प्रथम प्रयास में कभी भी सफलता नहीं मिलती, जीवन में हमेशा कोई कमी बनी ही रहती है। इसलिए कालसर्प दोष होने पर नागपंचमी के दिन उसकी शांति अवश्य कर लें। कालसर्प दोष समाप्त होने के बाद व्यक्ति अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुँचता है।
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