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    सच्चा देश भक्त: अगर वो 'शेर' न होता तो जुदा होता कश्मीर का इतिहास

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Fri, 23 Oct 2020 01:14 PM (IST)

    भारतीय फौज श्रीनगर से आगे बढ़ते हुए शाल्टेंग तक पहुंच गई और वहां पहुंचे कबाइली दस्ते को मुंह की खानी पड़ी। इससे बारामुला में बैठे कबाइली दस्ते के आमीर का माथा ठनक गया। वह समझ गया कि उनका गाइड बना मकबूल उन्हें मूर्ख बना गया है।

    मकबूल के शव को 24 घंटे में पहुंचे सिख रेजिमेंट के जवानों ने उतारा था।

    श्रीनगर, नवीन नवाज: देखो तुम समझदार नौजवान हो, मुसलमान हो। हम तुम्हें माफ कर देंगे, अगर तुम हमारा साथ दो। भारतीय फौज के शाल्टेंग में बने ठिकाने की जानकारी लानी होगी। हमलावार कबाइली दस्ते के आमीर (सरदार) ने दुबले-पतले युवक को समझाते हुए कहा। इन्कार करने का मतलब वह नौजवान समझता था। इन्कार यानी मौत और जिंदगी का मतलब कश्मीर के हर शहर में मुजफ्फराबाद और बारामुला की तरह दरिंदगी का नंगा नाच, सड़कों पर पड़ी लाशों को नोचते गिद्ध। उसने पख्तूनों के भेष में आए पाकिस्तानी फौजियों का जुल्म देखा था। उस युवक ने बिना पल गंवाए कहा-नहीं मैं आपका साथ नहीं दे सकता। उस कबाइली ने कागज का टुकड़ा लेकर लिखा कि शेरवानी गद्दार है और उसे लकड़ी की सलीब पर टांग हाथ-पैरों में कील ठोंके और गोलियों की बौछार की। मकबूल शेरवानी बलिदानी हो गया।

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    यह वाकया सात नवंबर 1947 का है। मकबूल के शव को 24 घंटे में पहुंचे सिख रेजिमेंट के जवानों ने उतारा था। कश्मीर का पहला शहीद कहलाने वाले मकबूल के लिए वतनपरस्ती ही ज्यादा अहमियत रखती थी। भारतीय फौज ने जब बारामुला से पाक को खदेड़ा तो सड़क पर उमड़े हुजूम ने शहीद मकबूल का शव उठा उसे जामिया मस्जिद के पास सुपुर्दे खाक किया।

    जब जिन्ना को मंच छोड़ जाना पड़ा था : शहीद मकबूल के चचेरे भाई गुलाम मोहम्मद शेरवानी के मुताबिक, भारत-पाक विभाजन से कुछ समय पहले अली मोहम्मद जिन्ना ने कश्मीर का दौरा किया था। बारामुला में जिन्ना की रैली थी। जिन्ना ने टू नेशन थ्योरी और इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान की स्थापना का जिक्र करते हुए कश्मीरियों से पाक का हिस्सा बनने के लिए कहा था। मकबूल भी रैली में मौजूद था, उसने उसी समय जिन्ना के खिलाफ बोलना शुरू किया तो जिन्ना को भाषण बीच में ही छोड़कर मंच से नीचे उतरना पड़ा था।

    खुद कबाइलियों के पास जा पहुंचे : कश्मीर के इतिहास का मानना है कि अक्टूबर 1947 के अंतिम सप्ताह के दौरान मुजफ्फराबाद, चकौटी को रौंदते हुए कबाइली जब बारामुला पहुंचे तो उन्होंने दङ्क्षरदगी का वह नंगा नाच खेला था कि शैतान डर गया था। उनका अगला मकसद श्रीनगर था। मकबूल उन्हें रास्ते में मिल गया। कई लोग दावा करते हैं कि मकबूल खुद बारामुला में डेरा डाले कबाइलियों के पास गया था ताकि वह उन्हें किसी तरह से रोक सके। उसने कबाइली फौज के आमीर से कहा था कि अगर वह सीधे रास्ते से श्रीनगर की तरफ बढ़ेंगे तो श्रीनगर तक पहुुंच चुकी भारतीय फौज उन्हें रोक लेगी। वह एक रास्ता जानता है जो छोटा है और सुरक्षित है। इससे चलकर वह भारतीय फौज पर अचानक हमला कर सकते हैं। इस तरह वह उनका गाइड बन गया। करीब चार दिनों तक वह बारामुला के आस-पास ही खेतों,बागों और जंगलों में घुमाता रहा।

    इस बीच, भारतीय फौज श्रीनगर से आगे बढ़ते हुए शाल्टेंग तक पहुंच गई और वहां पहुंचे कबाइली दस्ते को मुंह की खानी पड़ी। इससे बारामुला में बैठे कबाइली दस्ते के आमीर का माथा ठनक गया। वह समझ गया कि उनका गाइड बना मकबूल उन्हें मूर्ख बना गया है। मकबूल उस समय बारामुला से निकल चुका था। कहा जाता है कि वह सुंबल इलाके में था और कबाइलियों के साथ आए पाकिस्तानी फौजियों ने उसे वहां से पकड़ कर बारामुला लाया गया और फिर जो हुआ वह किसी को भी दहला दे। उसे जब सलीब पर टांगा गया तो उससे पहले उसे ङ्क्षजदगी बचाने का मौका दिया गया। उसे शाल्टेंग में जम्मू कश्मीर मिलशिया (राजा की सेना) और भारतीय फौज के एक ठिकान तक कबाइलियों को पहुंचाना था, लेकिन वह नहीं माना। उसे जब गोलियां मारी गई जब उसके सिर पर कील से गद्दार होने की पर्ची ठोकी तो उसे इसका यकीन था कि उसने जिस मिशन के लिए कबाइलियों को गु़मराह किया है,वह पूरा हो चुका है।

    कट्टर समर्थक को ही भूली नेकां : जिस मकबूल शेरवानी ने कश्मीर को बचाया जो नेशनल कांफ्रेंस का कट्टर समर्थक और शेख अब्दुल्ला का अंधभक्त था, उसे बाद में नेशनल कांफ्रेंस ही भूल गई। 1990 में जब कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ तो पाक समर्थकों ने स्मारक को नुकसान पहुंचाया। भारतीय सेना ने बारामुला में उसके नाम पर शेरवानी मेमोरियल ऑडिटोरियम भी बनाया है।