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    कश्मीर में सिर्फ सेब नहीं, लैवेंडर से हो रही तगड़ी कमाई; हजारों किसानों की बदल रही तकदीर

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 12:45 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में अरोमा मिशन के तहत लैवेंडर की खेती ने किसानों के जीवन में 'बैंगनी क्रांति' ला दी है। सीएसआईआर जम्मू के प्रयासों से हजारों क ...और पढ़ें

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    भद्रवाह में लैवेंडर की खेती से 'बैंगनी क्रांति'

    जागरण संवाददाता, जम्मू। किसानों की मेहनत का जब वैज्ञानिक सोच संग मिलन होता है, तो उसके बाद एक अनोखी क्रांति पैदा होती है। ऐसी ही एक तस्वीर जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह में देखने को मिली है। यहां अरोमा मिशन के तहत लैवेंडर की खेती ने किसानों के जीवन में ऐसी क्रांति लाई है, जिसकी महक पूरे देश में महसूस की जा रही है।

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    'बैंगनी क्रांति' के लिए प्रेरणा बना भद्रवाह 

    भद्रवाह आज 'बैंगनी क्रांति' के लिए देश की प्रेरणा बन गया है। इस क्रांति ने प्रदेश के चार हजार से अधिक किसान परिवारों का जीवन बदलाने के साथ ही ग्राम विकास की नई राहें खोल दी हैं। किसानों के उत्साह, हौसले और मेहनत का परिणाम यह है कि औद्योगिक प्रशिक्षण के बाद वह केवल लैवेंडर के फूल ही नहीं उगा रहे, बल्कि उससे बने उत्पाद भी देश-विदेश तक पहुंचा रहे हैं। 

    लैवेंडर की खेती से लाखों कमा रहे किसान

    किसान अब प्रति एकड़ तीन से 20 लाख रुपये सालाना कमा रहे हैं। अकेले लैवेंडर के तेल की बिक्री से भद्रवाह के किसानों ने पांच साल में दस करोड़ से अधिक की आय अर्जित की है। इसके अलावा साबुन, इत्र, अगरबत्ती और अन्य उत्पाद बनाकर दर्जनों युवा आजीविका चला रहे हैं। 

    लैवेंडर की खुशबू पर्यटकों को भी लुभा रही है। इस मिशन को सिरे चढ़ाने वाले सीएसआईआर जम्मू के वैज्ञानिकों को विज्ञान पुरस्कार से नवाजा गया है। 

    CSIR जम्मू को एक बड़ी जिम्मेदारी

    जानकारी के अनुसार, दस वर्ष पूर्व तक भद्रवाह के किसान केवल मक्का और अन्य परंपरागत फसल तक ही सीमित थे, जबकि यह क्षेत्र लैवेंडर की खेती के लिए भी उपयुक्त है। जब सरकार ने 'एक जिला एक उत्पाद' के तहत अरोमा मिशन के लिए इसे चुना तो सीएसआईआर जम्मू को एक बड़ी जिम्मेदारी मिल गई। 

    किसानों को खेती के लिए राजी करना, उनका प्रशिक्षण और उसके बाद अगले चरण में उन्हें स्टार्टअप की राह तक ले जाने के लिए संस्थान ने लंबी मेहनत की। प्रशिक्षण के साथ किसानों को लैवेंडर के पौधे उपलब्ध कराए गए। खेती के तरीकों से अवगत कराया और गांव के ही युवाओं को प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के लिए मशीनें उपलब्ध कराई गई।

    2015 में हुई शुरुआत

    जम्मू-कश्मीर में अरोमा मिशन की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई। अब इसका दायरा बढ़ा दिया गया है और अन्य क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जा रहा है। इस समय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में कुल 1,625 हेक्टेयर क्षेत्र में लैवेंडर की खेती हो रही है। पहले चरण में भद्रवाह के 600 किसानों को शामिल कर 164.92 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती विकसित की गई।

    दूसरे चरण में 910.71 हेक्टेयर में लैवेंडर खेती का विस्तार हुआ और करीब 2,100 नए किसान जुड़े। वर्तमान में चल रहे तीसरे चरण में 549.38 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है, जिससे 1,500 से अधिक किसानों को लाभ मिला है।

    प्रसंस्करण इकाइयां

    अधिकारियों के अनुसार, खेती के साथ मूल्यवर्धन और कौशल विकास पर फोकस किया गया। युवाओं को प्रशिक्षण के साथ अपनी प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। अब ग्राम समूहों में 42 डिस्टिलेशन इकाइयां स्थापित की गई हैं। अकेले डोडा जिले में किसानों ने पांच हजार किलोग्राम से अधिक लैवेंडर तेल का उत्पादन कर 10 करोड़ से अधिक की आय अर्जित की।

    स्टार्टअप ला रहे युवा

    अक्टूबर 2024 में जम्मू में अगरबत्ती निर्माण इकाई की स्थापना की गई। यहां किसानों और उद्यमियों को सुगंध आधारित उत्पादों के निर्माण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके आधार पर लैवेंडर आधारित 13 एग्री-स्टार्टअप स्थापित किए गए। यह नर्सरी विकास, प्राथमिक प्रसंस्करण और सुगंधित उत्पादों के विपणन पर केंद्रित हैं। इनको कौशल विकास और बाजार से जोड़ने के लिए 12 से अधिक समझौता ज्ञापनों (MOU) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

    लैवेंडर से पर्यटन

    लैवेंडर की महक से पर्यटकों को लुभाने के लिए लैवेंडर फेस्टिवल की शुरुआत की गई। भद्रवाह मेंलैवेंडर महोत्सव प्रतिवर्ष हो रहे हैं और यहां काफी पर्यटकों की भागेदारी रहती है। एरोमा मिशन को राष्ट्रीय स्तर पर भी व्यापक सराहना मिली है।

    राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार

     सीएसआईआरनेतृत्व वाले अरोमा मिशन (Aroma Mission) को वर्ष 2025 का राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (विज्ञान टीम पुरस्कार) प्रदान किया गया। यह सम्मान कृषि, ग्रामीण विकास और देश की अरोमा अर्थव्यवस्था में उत्कृष्ट वैज्ञानिक एवं तकनीकी योगदान के लिए दिया गया।

    यह केवल एक कृषि कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्रामीण पुनर्जागरण और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर एक आंदोलन के रूप में उभर कर सामने आया है। लैवेंडर जैसी उच्च मूल्य वाली सुगंधित फसलों को बढ़ावा देकर यह किसानों के लिए समृद्धि की नई राह खोल रहा है। - डा. सुफला गुप्ता, नोडल अधिकारी, अरोमा मिशन, सीएसआईआर-आईआईआईएम जम्मू