जम्मू-कश्मीर: हिरासत में कॉन्स्टेबल को यातनाएं देने के मामले में आठ पुलिसकर्मियों को मिली जमानत
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने तीन साल पुराने हिरासत में यातना के मामले में डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों को जमानत दे द ...और पढ़ें

कुपवाड़ा हिरासत यातना मामला: डीएसपी सहित आठ पुलिसकर्मियों को मिली जमानत (File Photo)
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मंगलवार को करीब तीन वर्ष पुराने बहुचर्चित पुलिस कॉस्टेबल को हिरासती यातनाएं देने के मामले में डीएसपी सहित आठ पुलिस कर्मियों को जमानत दे दी। इस मामले की जांच सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) जांच कर रही है।
जमानत पाने वाले आरोपियों में डिप्टी एसपी एजाज अहमद, सब-इंस्पेक्टर रियाज अहमद मीर, एसपीओ जहांगीर अहमद बेग, हेड कॉन्स्टेबल मोहम्मद यूनिस खान और तनवीर अहमद मल्ला, सिलेक्शन ग्रेड कॉन्स्टेबल शाकिर हुसैन खोजा और अल्ताफ हुसैन भट, तथा कॉन्स्टेबल शहनवाज अहमद शामिल हैं। इन सभी को सीबीआई ने गत अगस्त माह में गिरफ्तार किया था और तब से वे केंद्रीय जेल में बंद थे। मामला अदालत में विचाराधीन है और सीबीआई इसकी जांच कर रही है।
नारकोटिक्स मामले में दिए बिजली की झटके, प्राइवेट पार्ट्स को पहुंचाया था नुकसान
सीबीआई की एफआइआर के अनुसार बारामुला में तैनात खुर्शीद अहमद वानी को 17 फरवरी 2023 को सिग्नल एप के कुपवाड़ा एसएसपी के पास रिपोर्ट करने के लिए बुलाया गया था।
यह एक नारकोटिक्स केस की जांच के लिए था। आरोप लगाया गया है कि उसे ज्वाइंट इंटेरोगेशन सेंटर को सौंप दिया गया, जहां पुलिस अधिकारियों ने खुर्शीद को छह दिनों तक लोहे की राड से याचनाएं दीं।
साथ ही उसे बिजली के झटके दिए और उसके प्राइवेट पार्ट्स को नुकसान पहुंचाया। पीड़ित ने न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच और 50 लाख मुआवजे का आदेश दिया।
अपीलकर्ता को 50 लाख रुपये का मुआवजा देना का आदेश
राज्य की गंभीर मनमानी और संस्थागत विफलता पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित ज्वाइंट इंटरोगेशन सेंटर में तैनात पुलिस कॉन्स्टेबल खुर्शीद अहमद चौहान की अवैध हिरासत और हिरासती याचनाएं देने के मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन को स्थापित मानते हुए अपीलकर्ता को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित के खिलाफ आत्महत्या के प्रयास के आरोप में एफआइबार को भी रद कर दिया। साथ ही घटना में शामिल अधिकारियों की तत्काल गिरफ्तारी के आदेश दिए और जम्मू-कश्मीर सरकार को 50 लाख रुपये का संवैधानिक मुआवजा देने का आदेश दिया, जिसे बाद में विभागीय कार्रवाई के बाद दोषी अधिकारियों से वसूल किया जाएगा।
कोर्ट ने सीबीआई को जेआईसी में मौजूद प्रणालीगत विफलताओं और संस्थागत दंडमुक्ति की भी जांच करने का कार्य सौंपा है। फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा था कि यह पुलिस अत्याचार के सबसे बर्बर मामलों में से एक है। अदालत ने कहा कि पीड़ित के जननांगों का पूरी तरह क्षत-विक्षत होना,
निजी अंगों पर मिर्च पाउडर और बिजली के झटके देना तथा गुदा में वस्तुओं का प्रवेश, ये सभी क्रूर हिरासत यातना की ओर इशारा करते हैं।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के आत्महत्या के प्रयास के दावे को चिकित्सकीय रूप से असंभव करार देते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि मेडिकल साक्ष्य स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि ऐसी चोटें स्वयं नहीं पहुंचाई जा सकतीं और यह कथित थ्योरी केवल दोषियों को बचाने के लिए गढ़ी गई एक झूठी कहानी है।

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