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    Kargil Vijay Diwas 2024: क्या है कारगिल का इतिहास? कब हुई स्थापना और कैसे पड़ा नाम; पढ़ें सब कुछ

    Updated: Thu, 25 Jul 2024 07:36 PM (IST)

    सन् 1999 में कारगिल की ऊंची चोटियों को छुड़ाने के लिए हमारे रणबांकुरों ने अदम्य साहस के साथ दुश्मन का मुकाबला किया। आज कारगिल (Kargil History) क्षेत्र न केवल पर्यटन बल्कि सामरिक दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है। इसी क्रम में हम कारगिल के इतिहास और इसके महत्व की चर्चा करेंगे तथा जानेंगे कि कारगिल शब्द का अर्थ असल में होता क्या है।

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    कारगिल का अर्थ क्या होता है तथा इसका इतिहास क्या है (जागरण फोटो)

    डिजिटल डेस्क, जम्मू। देशभर में कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की रजत जयंती का महोत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। यह दिन हमारे उन जांबाजों को समर्पित है, जिन्होंने पाक सैनिकों के छक्के छुड़ाते हुए कारगिल की ऊंची चोटियों को दुश्मन से आजाद करवाया था।

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    खास बात है कि यह लड़ाई उस दौरान करीब दो महीनों तक चली थी। कारगिल की पहाड़ियों को दुश्मन से मुक्त कराने के लिए सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया (Operation Vijay) था। इस युद्ध में करीब 2 लाख सैनिकों ने हिस्सा लिया था। वहीं, इस युद्ध में सेना के 527 जांबाज बलिदान हुए थे।

    जांबाजों की भूमि कारगिल लद्दाख में स्थित है। साल 1999 में इस इलाके को रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन से मुक्त कराया था। वीरों की यह भूमि देश के लिए न केवल सामरिक रूप से जरूरी है, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी यह जगह काफी महत्वपूर्ण है।

    आइए, इस लेख में हम जांबाज बलिदानियों की कर्मभूमि कारगिल के इतिहास के बारे में जानते हैं, जिन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए इस सरजमीं से दुश्मन को खदेड़ा था।

    कारगिल नाम का अर्थ

    कारगिल की बात हम इसके नाम के शुरुआत से ही करते हैं। इसके नाम का अर्थ बेहद खास है। यह शब्द दो शब्दों खार और आरकिल से मिलकर बना है। खार का अर्थ किला और आरकिल का अर्थ केंद्र से हैं। इस प्रकार यह किलों के बीच का स्थान है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह कई राज्यों के बीच मौजूद रहा। समय बीतने के साथ खार आरकिल या खिल को कारगिल के रूप में जाना जाने लगा।

    कारगिल का इतिहास

    इतिहासकार परवेज दीवान की "कारगिल ब्लंडर" नामक एक किताब के अनुसार इस जगह पर रहने के लिए सबसे पहले कारगिल नामक व्यक्ति ने पोयेने और शिलिकचाय के इलाकों में फैले जंगलों को साफ किया था। इसी जगह का बाद में कारगिल नाम रख दिया गया। इसके बाद गशो थाथा खान का आगमन हुआ। थाथा खान के शाही परिवार के वंशज ने आठवीं शताब्दी के शुरुआत में कारगिल पर कब्जा जमाया।

    उनके राजवंश ने शुरुआती काल में कारगिल के सोद क्षेत्र पर शासन किया, जो बाद में स्थायी रूप से शकर चिकटन क्षेत्र में बस गए। 

    कारगिल में कब आया इस्लाम

    ऐस माना जाता है कि15वीं सदी में कारगिल में इस्लाम का प्रवेश हुआ। मध्य एशिया के शिया स्कूल के विद्वान मीर शम्स-उद-दीन इराकी ने इस्लाम का प्रचार करने के लिए अपने मिशनरियों के साथ बाल्टिस्तान और कारगिल का दौरा किया। सबसे पहले बाल्टिस्तान के प्रमुख ने इस्लाम अपनाया और उसके बाद कारगिल के प्रमुखों ने भी इस्लाम अपनाया।

    मीर शम्स-उद-दीन इराकी से पहले ख्वाजा नूरबख्श ने कारगिल का दौरा किया और बहुत सारे इस्लामी उपदेश दिए। इस प्रकार बौद्ध धर्म कारगिल में सापी, फोकर, मुलबैक, वाखा बोध-खरबू क्षेत्रों, दारचिक गरकोन और जास्कर जैसे स्थानों तक सीमित रह गया।

    कारगिल का क्षेत्रफल

    सवा लाख की आबादी वाला कारगिल 14,086 वर्ग क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह श्रीनगर से लेह की ओर से 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कारगिल को आज की दुनिया में आगाओं की भूमि कहा जाता है। यह इस तथ्य के कारण है कि कारगिल में ज्यादातर शिया मुसलमान रहते हैं और आगा धार्मिक प्रमुख और उपदेशक हैं।

    पर्यटन क्षेत्र में कारगिल

    कारगिल व लद्दाख के अन्य भागों को वर्ष 1974 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था। जिसके बाद यहां बड़ी संख्या में टूरिस्ट आने लगे। वर्ष 1999 में भारत-पाक युद्ध के समय यह इलाका सुर्खियों में रहा। यहां कुछ जगहें जैसे- टाइगर हिल, तोलोलिंग, मुश्कु घाटी और बटालिक पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

    नोट: उपरोक्त जानकारी भारत सरकार (कारगिल) की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है...

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