जम्मू-कश्मीर में चिकित्सा अधिकारियों के लिए लागू हुए नए सख्त नियम, 'पीजी करें या फिर नौकरी'
जम्मू-कश्मीर में चिकित्सा अधिकारियों के लिए नए नियम लागू किए गए हैं, जिसके तहत उन्हें स्नातकोत्तर (पीजी) कोर्स करना होगा या नौकरी छोड़नी होगी। सरकार न ...और पढ़ें

नए नियमों का उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना है।
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में चिकित्सा अधिकारी बनने के लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कड़े नियम बनाए हैं। चयनित अधिकारियों को उच्च शिक्षा जारी रखने या फिर नौकरी दोनो में से एक विकल्प दिया जाता है। इस कारण बहुत से डाक्टर हर बार चयन के बाद भी ज्वाइन नहीं करते हैं और रिक्त पदों को भरनेे के लिए प्रतीक्षा सूची में से चयन करना पड़ता है।
इस बार फिर दो दिन पहले स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग चिकित्सा अधिकारियों के लिए जो 480 पद अधिसूचित करने जा रहा है, उसमें यह स्पष्ट है कि अगर किसी उम्मीदवार का चयन होता है तो उसे अपनी उच्च शिक्षा को बीच में ही छोड़ना होगा। उसे पीजी की डिग्री या फिर नौकरी दोनों में से किसी एक को चुनन होगा।
अगर कोई किसी मेडिकल कालेज में रजिस्ट्रारशिप कर रहा है तो उसे यह भी छोड़नी होगी।कई डाक्टर इन शतों का शुरू से विरोध करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि एक आेर लगातार पीजी की सीटें बढ़ाई जा रही हैं ताकि उच्च शिक्षा हासिल कर विशेषज्ञ डाक्टर तैयार हों।
दूसरी ओर नौकरी में शर्त ऐसी है कि चयन के बाद अब आपको तुरंत पीजी की डिग्री छोड़नी होगी। इन शतों के बीच सरकार के अपने तर्क हैं।विभागीय अधिकारियों का कहना है कि चयनित होने वाले डाक्टर उच्च शिक्षा ही हासिल करते रहते हैं और पद फिर से रिक्त रहते हैं।
विवाद में रहे ये नियम
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने वर्ष 2018-19 में लोक सेवा आयोग को 921 पदों पर चयन प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। लोक सेवा आयोग ने 14 जनवरी 2019 को एचआरओ 202 के तहत रिकार्ड तीन महीनों में ही चयन सूची जारी कर दी थी। लेकिन इसमें दो शर्तें थी।
एक पांच वर्ष तक एकमुश्त वेतन मिलना था। दूूसरा इस अवधि के दौरान तबादला भी नहीं होना था। नियुक्तियां दूरदराज के क्षेत्रों में होनी थी। इसके बाद चयन तो हुआ लेकिन 70 प्रतिशत चयनित डाक्टरों ने ज्वाइन ही नहीं किया।कइयों ने ज्वाइन करने के बाद नौक्री छोड़ दी थी।
2020 में बने नए नियम
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इसके बाद 2020 में नए नियम बनाए और चिकित्सा अधिकारियों के 900 पदों पर चयन प्रक्रिया शुरू की। इसमें उच्च शिक्षा या फिर नौकरी दोनो में से विकल्प चुनने को कहा। इसके बाद चयन तो हुआ लेकिन कई डाक्टरों ने फिर से नौकरी छोड़ दी।
इसके बाद समय-समय पर प्रतीक्षा सूची से रिक्त पदों को भरा गया। अब एक बार फिर से पहले जैसी शतों के अनुसार ही पदों को अधिूसचित किया जा रहा है। अब देखना यह है कि इस बार कितने डाक्टर चयन के बाद नौकरी करते हैं।
साठ प्रतिशत आरक्षण का विरोध
चिकित्सा अधिकारियों के साठ प्रतिशत पदों को विभिन्न श्रेणियों में आरक्षित करने का भी इंटरनेट मीडिया पर विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों में डाक्टरों से लेकर राजनेता तक शामिल हैं। मेडिकल कालेज जम्मू के एक वरिष्ठ डाक्टर रत्तनाकर शर्मा ने लिखा है कि साठ प्रतिशत आरक्षण और चालीस प्रतिशत शेष पदों पर भी आरक्षित वगों को चयन का अवसर। यह कैसी नीति है।
पीडीपी के विधायक वाहिद उल पारा ने इंटरनेट पर लिखा है कि नया पाठ्यक्रम 60 प्रतिशत जनसंख्या के लिए चालीस प्रतिशत पद।आल इंडिया मेडिकल स्टूडेंट एसोसिएशन के उपप्रधान डा. मोहम्मद मोमीन खान का कहना है कि जम्मू-कश्मीर की 70 प्रतिशत जनसंख्या को 480 पदों में से मात्र 192 पदों पर प्रतिस्पर्धा के लिए विवश किया जा रहा है।

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