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    Jammu: भगवान शिव के त्रिशूल में छिपी हैं कई ताकतें, आइए जानिए क्या है इसका महत्व

    By Rahul SharmaEdited By:
    Updated: Fri, 13 Aug 2021 12:04 PM (IST)

    शिव का त्रिशूल अपने आप में कई रहस्य छिपा कर बैठा है। इस त्रिशूल से पूरे संसार की गतिविधियों पर असर पड़ सकता है। वैसे तो हिंदू मान्यता के अनुसार कई देवी-देवता त्रिशूल धारण करते हैं लेकिन जब इसे भगवान शिव धारण करते हैं। तब इसका महत्व अलग होता है।

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    महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन प्रारूप आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी दर्शाता है।

    जम्मू, (पंडित भूषण शर्मा) : हम जब भी भगवान शिव का ध्यान करते हैं तो भगवान शिव हमेशा हाथ में त्रिशूल लिए ही दिखते हैं। इस त्रिशूल का क्या महत्व है। क्या हमने इस ओर कभी ध्यान दिया है। यह त्रिशूल भगवान शिव के हाथ में शोभा पाता है। यह शिव का सबसे प्रिय अस्त्र हैं। शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है। प्रायः सभी शिवालयाें में त्रिशूल अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाता है। जिसमें सोने चांदी और लोहे की धातु से बने त्रिशूल ज्यादातर शिवालय में दिखाई देते हैं। महादेव के त्रिशूल में कई ताकतें छिपी हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि महादेव के इस त्रिशूल का क्या महत्व है।

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    भगवान शिव का त्रिशूल अपने आप में कई रहस्य छिपा कर बैठा है। इस त्रिशूल से पूरे संसार की गतिविधियों पर असर पड़ सकता है। वैसे तो हिंदू मान्यता के अनुसार कई देवी-देवता त्रिशूल धारण करते हैं लेकिन जब इसे भगवान शिव धारण करते हैं। तब इसका महत्व अलग होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव पहली बार इस धरती पर प्रकट हुए, तब उनके साथ रज, तम और सत गुण का भी जन्म हुआ।

    महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन प्रारूप आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी दर्शाता है। तीनों काल भूत, वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल के अंदर समाते हैं। सिर्फ यही नहीं त्रिमूर्ति, ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी रूप त्रिशूल में देखा जा सकता है।

    मान्यता तो ये भी है कि त्रिशूल के चलते सभी नकारात्मक ताकतें हमसे हमेशा दूर रहती हैं और हम आध्यात्मिक जीवन की तरफ अग्रसर होते हैं। त्रिशूल एक व्यक्ति के घमंड को भी समाप्त करता है और उसे अपने प्रभु के और पास आने का मौका देता है। समूचा काशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है, ऐसा भी कहा जाता है।

    त्रिशूल हिमालय की तीन चोटियों के समूह का नाम भी है। उत्तरकाशी को प्राचीन काशी माना जाता है। एक काशी उत्तरप्रदेश में स्थित है। जिसे वाराणसी भी कहा जाता है। यह काशी भी शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक गुप्तकाशी स्थान भी है। गुप्तकाशी का वही महत्व है जो महत्व काशी का है। माना जाता है कि विश्वनाथ भगवान शिव यहीं पर विराजमान हैं।

    हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले में स्थित यमनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। चार धाम के दर्शन एक ही यात्रा में करने के लिए श्रद्धालु पहले यमनोत्री फिर गंगोत्री उसके बाद केदारनाथ और आखिर में बद्रीनाथ जाते हैं।