जमीन-दीवारों पर बिखरा खून, सरयू किनारे जल रहीं सामूहिक चिताएं; 33 साल पुराने अयोध्या गोलीकांड का कुलदीप ने सुनाया आंखों देखा हाल
रियासी के कारसेवक कुलदीप शर्मा ने गोलीकांड के बाद अयोध्या की जो आंखो देखी सुनाई वह दिल दहला देती है। शर्मा बताते हैं गोलीबारी के दो दिन बाद जब वह पहुंचे तो हर तरफ गोलियों के निशांन थे। जमीन व दीवारों पर खून बिखरा था। सरयू किनारे बलिदानी कारसेवकों की दर्जनों सामूहिक चिताएं जल रही थीं। यूपी की जेलों में रामभक्तों की आंखें निकलवाई जा रही थीं।

लोकेश चंद्र मिश्र, जम्मू। Jammu-Kashmir News: सनातन समाज के करीब 500 साल के संघर्ष और असंख्य बलिदान के बाद आज अयोध्या (Ayodhya) में रामलला( Ram Lala) के विग्रह का भव्य मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का सौभाग्य हम सबको मिल रहा है। लेकिन इसके लिए वर्ष 1990 में अयोध्या में हुई गोलीबारी की घटना और सनातनियों पर हुए क्रूर अत्याचार के दिनों को याद कर कई कारसेवकों के आज भी कंठ रुंध जाते हैं।
जमीन व दीवारों पर बिखरा था खून
आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान रामलला के चरणों में अगाध श्रद्धा निवेदित करती है। रियासी के कारसेवक कुलदीप शर्मा ने गोलीकांड के बाद अयोध्या की जो आंखो देखी सुनाई वह दिल दहला देती है। शर्मा बताते हैं गोलीबारी के दो दिन बाद जब वह पहुंचे तो हर तरफ गोलियों के निशांन थे। जमीन व दीवारों पर खून बिखरा था।
सरयू किनारे जल रहीं थी दर्जनों बलिदानी कारसेवकों की चिताएं
सरयू किनारे बलिदानी कारसेवकों की दर्जनों सामूहिक चिताएं जल रही थीं। एक-एक चिता पर कई कारसेवकों को एक साथ जलाया जा रहा था। पूरी अयोध्या में सुरक्षाबल के जवान भरे थे, लेकिन एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था। वह दृश्य याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वहां सुनने को मिला कि यूपी की जेलों में रामभक्तों की आंखें निकलवाई जा रही थीं।
रियास से गए थे सात लोग
कैदियों से पिटवाया जा रहा था। इस संघर्ष के बाद जब आज हमारे प्रभु श्रीराम टेंट से अपने घर पहुंच रहे हैं तो हृदय आनंद विभोर हो रहा है। हिंदू समाज का सपना साकार हो रहा है। हर तरफ उल्लास का माहौल है। रियासी के विजयपुर निसासी 57 वर्षीय कारसेवक कुलदीप शर्मा पुरानी यादें ताजा करते हुए कहते हैं कि 1990 में सूचना मिली कि अयोध्या में राममंदिर के लिए बलिदान होने को चलना है। तुरंत कुछ लोगों को तैयार किया। रियासी जिले से जत्थे में सात लोग थे। गोलीकांड से दो दिन पहले ही पहुंचने की योजना बनी थी।
एक सप्ताह पहले कराई थी फैजाबाद की टिकट
एक सप्ताह पहले फैजाबाद के लिए टिकट करवा ली थी। अयोध्या चलने से तीन दिन पहले रियासी से पंद्रह किलोमीटर दूर गांव में रहने वाले साथी थोरूराम को लेने संघ के एक प्रचारक विजय शास्त्री के साथ स्कूटर पर पहुंचा। रात के 11 बजे थोरूराम की मां दरवाजे पर चारपाई पर ठंडा लेकर हमें रोकने के लिए बैठी थीं। हमारे पहुंचते ही वह डांटने लगीं, लेकिन दूसरी ओर थोरूराम को विदा करने की तैयारी भी थी।
अयोध्या में था भारी तनाव का माहौल
रात 12 बजे हम सबको फूलमालाओं से स्वागत कर विदा भी थोरूराम के परिवार वालों ने किया। रात को रियासी में रुके। दूसरे दिन सुबह हजारों लोगों के साथ शोभायात्रा लेकर जम्मू के लिए निकले। तब-राम लला आएंगे, मंदिर वहीं बनाएं...से पूरी रियासी गूंज उठी थी। बस से जम्मू पहुंच कर गीता भवन में रुके। वहां पता चला कि अयोध्या में भारी तनाव है।
रियासी के पांच और जम्मू के सात लोग गए थे अयोध्या
ट्रेन के टिकट तीन दिन बाद के थे। तब तक आरएसपुरा, अरनियां में शोभायात्रा निकाल कर प्रचार करना शुरू किया। मेरे साथ कटड़ा के पांच और साथी समेत कुल 25-30 कारसेवक थे। तीन दिन बाद ट्रेन से 12 लोग अयोध्या के लिए चले, जिसमें रियासी के पांच और सात जम्मू के। हम सबका ट्रेन में रिजर्वेशन था। तब जम्मू के भाजपा नेता चमनलाल गुप्ता का भी 250 लोगों का जत्था उसी ट्रेन में चढ़ा। लेकिन उनके जत्थे को बरेली में ही गिरफ्तार कर लिया गया।
जय श्रीराम के नारे लगाने पर पुलिस ने पकड़ा
हम सब चुपचाप चलते रहे। बरेली स्टेशन पर हमारे कटड़ा के दो लोग उतरे तो पुलिस ने पकड़ लिया। तब उन्होंने जय श्रीराम के नारे लगा दिए। फिर पुलिस ने हम सबको पकड़ कर बरेली से बदायूं ले गए, वहां एक अस्थायी जेल में रखा गया। वहां 800-900 लोग पहले से थे। लेकिन हमारे साथ मारपीट नहीं हुई। उस अस्थायी जेल में शाखाएं भी लगती थी। स्थानीय लोग खाना भेज रहे थे।
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तीन-चार दिन बाद ढांचे के अंदर हुए रामलाल के दर्शन
शौचालय की व्यवस्था नहीं थी तो इसी दौरान स्टेशन, बाजार की रेकी कर ली। सात में से पांच लोग रात में चुपके से निकल गए। दो कटड़ा के साथी वही रह गए। बदायं से ट्रेन से लखनऊ, वहां से फैजाबाद बस से गए। फिर पैदल अयोध्या पहुंचे। उस समय वहां गोलीकांड हो चुका था।। तीन-चार दिन बाद ढांचे के अंदर रामलला का दर्शन किया।
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