आरक्षण की समीक्षा रिपोर्ट पर सरकार के जवाब से छिड़ा विवाद, CM उमर अब्दुल्ला ने दी सफाई; क्या है मामला?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आरक्षण नीति की समीक्षा रिपोर्ट पर विवाद छिड़ गया। दरअसल सकीना इट्टू ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में गठित तीन सदस्यीय कैबिनेट उप-समिति को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए कोई समय-सीमा नहीं दी गई थी। इसके बाद सीएम उमर अब्दुल्ला ने इस पर स्पष्टीकरण दिया। सीएम ने कहा कि समिति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए छह माह का समय दिया गया है।

राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए गठित कैबिनेट उपसमिति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए छह माह का समय दिया गया है। यह स्पष्टीकरण स्वयं मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार शाम को विधानसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी से उपजे विवाद के बाद दिया।
सदन में सुबह सरकार ने पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन के एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए कैबिनेट उपसमिति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है।
रुहुल्ला ने भी सरकार को घेरा
सदन में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के बाद सज्जाद गनी लोन के अलावा नेकां के अपने ही सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी ने सरकार को घेरा। रुहुल्ला ने एक्स हैंडल पर लिखा कि यह या तो एक लिपिकीय त्रुटि है या उन छात्रों के साथ जानबूझकर विश्वासघात है, जिन्होंने प्रशासन पर भरोसा किया था। मुख्यमंत्री को इसे स्पष्ट करना चाहिए।
दरअसल, इस मुद्दे ने तब तूल पकड़ा जब समाज कल्याण मंत्री सकीना इट्टू ने सदन में सज्जाद लोन के सवाल के जवाब में कहा कि पिछले साल दिसंबर में गठित तीन सदस्यीय कैबिनेट उप-समिति को अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए कोई समय-सीमा नहीं दी गई थी।
सीएम उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट की स्थिति
मुख्यमंत्री ने इस विषय में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि मौजूदा आरक्षण नियमों पर शिकायत करने वालों के साथ बैठक के बाद कैबिनेट उपसमिति के लिए समय-सीमा तय की गई थी। छह माह की समय-सीमा मैंने आरक्षण को लेकर आशंकित युवाओं से मुलाकात के बाद तय की थी।
हालांकि, यह समय-सीमा उप-समिति के गठन के शुरुआती आदेश में नहीं थी। उस चूक को सुधारा जाएगा, आश्वस्त रहें कि समिति निर्धारित समय-सीमा में काम पूरा करेगी। उमर के स्पष्टीकरण के बाद रुहुल्ला ने एक्स पर लिखा, मैं स्पष्टीकरण की सराहना करता हूं।
यह है मामला
पांच अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू-कश्मीर में आरक्षण संबंधी केंद्रीय कानून लागू नहीं थे और आरक्षित वर्गों का कोटा 40 प्रतिशत के आसपास था, जो अब बढ़कर 60 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है।
आरक्षण कोटे को लेकर नेकां के सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी के नेतृत्व में विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री उमर के श्रीनगर निवास के बाहर गत दिसंबर को धरना भी दिया था। प्रदेश सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर कैबिनेट उप समिति का गठन किया था।
लोन का सरकार पर हमला, कहा- आरक्षण से कश्मीर घाटे में
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद गनी लोन शनिवार को सदन में उपस्थित नहीं थे। उनके सवाल पर सरकार के जवाब से नाराज लोन ने श्रीनगर में पत्रकारों से कहा कि यह मैं आरक्षण का विरोधी नहीं हूं, लेकिन आरक्षण के लिए प्रतिभा का गला नहीं घोंटा जाना चाहिए।
आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था से कश्मीरियों के खिलाफ है। अनुसूचित जनजाति और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के आरक्षण में कश्मीरियों की भागेदारी 15 व सात प्रतिशत है। अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में भी कश्मीर की भागीदारी 40 प्रतिशत के आसपास है।
उन्होंने कहा कि कश्मीर में अनुसूचित जाति नहीं है और इसका पूरा लाभ जम्मू संभाग में है। अंतरराष्ट्रीय सीमा के आरक्षण कोटे का शत प्रतिशत लाभ भी जम्मू संभाग में है।
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