विवेक सिंह, जम्मू। पश्चिमी लद्दाख के इस क्षेत्र में दिसंबर और जनवरी में तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है और वर्षभर में औसत 20 फीट तक बर्फबारी होती है, उसपर चलने वाले बर्फीले तूफान अलग। 18 हजार से 21 हजार फीट की ऊंचाई पर मौसम की ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कोई महामानव ही हाथ में बंदूक थामे सीमा की रक्षा कर सकता है। इस समय सियाचिन में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पाकिस्तानी सेना के सामने हमारे जवान पूरे जोश और जज्बे के साथ तैनात हैं। वजह साफ है, भारतीय सेना ने जवानों को हर आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए मोर्चा संभाल रखा है।
सेना ने बनाए सेंट्रिल हीटिंग वाले शेल्टर
सेना ने हाल ही में जवानों के लिए सियाचिन ग्लेशियर के आधार शिविर प्रतापपुर और खालसर में सेंट्रल हीटिंग वाले दो शेल्टर तैयार किए हैं। प्री-फेबरीकेटेड इन शेल्टरों में 62-62 जवानों के रहने की व्यवस्था है। इसके साथ आठ-आठ सैन्यकर्मियों के लिए छोटे शेल्टर भी बनाए गए हैं। इनमें आधुनिक शौचालय, सेंट्रल हीटिंग सिस्टम, आधुनिक रसोई, संचार सुविधा भी है। इस तरह के शेल्टर लद्दाख के कुछ अन्य उच्चतम क्षेत्रों में भी बन रहे हैं। सीमा सड़क संगठन ने भी लद्दाख में सौर ऊर्जा से गर्म रहने वाले कुछ शेल्टर बनाए हैं।
6 महीने के सामान की होती है स्टॉकिंग
लद्दाख में सर्दियों का सामना करने की रणनीति पर अक्टूबर से ही काम तेज हो जाता है। 15 नवंबर तक सेना ने सर्दियों के 6 महीने की जरूरत का राशन, पेट्रोल, केरोसीन तेल, गोला बारूद, जीवन रक्षक दवाइयां व अन्य जरूरी सामान की स्टॉकिंग कर ली थी। दरअसल, सेना इस समय लद्दाख व जम्मू-कश्मीर के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में दोहरी रणनीति पर काम कर रही है। एक तरफ सेना को मजबूत बनाकर ऑपरेशनल तैयारियों को तेजी दी जा रही है। दूसरी ओर जवानों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। इसके लिए सेना के शीर्ष अधिकारी खुद सियाचिन का दौरा कर रहे हैं। इसी सप्ताह उत्तरी कमान के जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी व सेना की 14 कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल सेनगुप्ता ने सियाचिन का दौरा किया है। वे जवानों के बीच पहुंचकर उनका मनोबल बढ़ाने के साथ सेना की विंटर मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी की निगरानी भी कर रहे हैं। अंधेरे, कोहरे में देखने में सक्षम आधुनिक नाइट विजन डिवाइस व हाई डेफिनेशन के साथ आधुनिक थर्मल इमेजर, हाई रेंज नाइट विजन, सेंसर्स का इस्तेमाल हो रहा है।
एक्सटेंडेड कोल्ड वेदर क्लोदिंग सिस्टम भी कारगर
अग्रिम इलाकों में तैनात जवानों के पास डीआरडीओ द्वारा विकसित तकनीक से बनाए गए एक्सटेंडेड कोल्ड वेदर क्लोदिंग सिस्टम भी हैं। ये शून्य से 50 डिग्री नीचे के तापमान में गर्म रखने वाली थ्री लेयर ड्रेस है। गत वर्ष भारतीय सेना को 41 हजार एक्सटेंडेड कोल्ड वेदर क्लोदिंग सिस्टम मिले थे। इसके साथ अग्रिम इलाकों में रहने वाले जवानों के लिए अंदर से गर्म छोटे प्री-फेबरीकेटेड शेल्टर व टैंट भी हैं।
सियाचिन में 90 दिन बाद बदल जाती है ड्यूटी
सियाचिन ग्लेशियर में जीवन आसान नहीं है। यहां हर चीज बर्फ की तरह जम जाती है। इसे देखते हुए ही जवानों को सियाचिन के अग्रिम क्षेत्रों में 90 दिन तैनात रखने के बाद आधार शिविर प्रतापपुर और खालसर बुला लिया जाता है। उनकी जगह आधार शिविर से अन्य जवानों को ऊपर भेजा जाता है। यह क्रम दो साल जारी रहता है। इस तरह दो वर्ष सियाचिन में तैनात रहने वाली यूनिट के जवानों को करीब एक साल अग्रिम क्षेत्रों में तैनात रहना होता है।
सियाचिन को कार्बनमुक्त बनाने पर काम जारी
ठंड से बचने के उपकरण चलाने के लिए सियाचिन में डीजल जेनसेट इस्तेमाल होते हैं। इनसे प्रदूषण होता है। इस प्रदूषण को खत्म करने के लिए सेना ने बिजली आपूर्ति के लिए फ्यूल सेल हाइब्रिड सिस्टम स्थापित किया है। यह जेनरेटरों का इस्तेमाल बंद करने की दिशा में पहला बड़ा कदम है। इस सिस्टम में सेल हाइड्रोजन का इस्तेमाल कर बिजली पैदा की जाती है।
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