सरकारी नौकरी में रहते आतंकियों की मदद करना पड़ा महंगा, LG ने कर दी परमानेंट छुट्टी; रडार पर 600 कर्मचारी
Jammu Kashmir News जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दो सरकारी कर्मचारियों को सेवामुक्त कर दिया है जिन पर आतंकियों और अलगाववादियों की मदद करने का आरोप है। अब तक 75 सरकारी अधिकारियों और कर्मियों को सेवामुक्त किया जा चुका है। वहीं 600 कर्मचारियों की एक सूची तैयार की गई है जिन पर आतंकियों की मदद करने का संदेह है।

राज्य ब्यूरो, जम्मू। आतंकियों और अलगाववादियों के पारिस्थितिकी तंत्र के समूल नाश की अपनी प्रतिबद्धता को जताते हुए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने गुरुवार को दो सरकारी कर्मचारियों को सेवामुक्त कर दिया। इनमें से एक शिक्षा विभाग में लेक्चरार है और एक स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में जम्मू कश्मीर में शासन की बागडोर संभालने के साथ ही उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने प्रदेश के सरकारी तंत्र को आतंकियों और अलगाववादियों की मदद कर रहे दो व्हाईट कॉलर आतंकियों से मुक्त कराने का अभियान चलाया।
इस अभियान के तहत अब तक 75 सरकारी अधिकारियों व कर्मियों को सेवामुक्त कर, घर भेजा जा चुका है। इनमें नायब तहसीलदार, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और पुलिस डीएसपी रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं।
600 कर्मचारियों की सूची तैयार
जम्मू-कश्मीर प्रदेश प्रशासन ने विभिन्न खुफिया एजेंसियों के सहयोग से लगभग 600 के करीब सरकारी अधिकारियों व कर्मियों की सूची तैयार की है जो सरकारी तंत्र में बैठ, सरकारी तंत्र की खामियों का लाभ उठाकर आतंकियों व अलगाववादियों की मदद करते आ रहे हैं।
इन सभी के खिलाफ सभी आवश्यक सबूत जमा करने के साथ ही इनके मामलों की भी लगातार समीक्षा कर तदनुसार कार्रवाई की जा रही है।
महाप्रशासनिक विभाग के अनुसार, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आज भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत फार्मासिस्ट अब्दुल रहमान नैयका और शिक्षा विभाग में लेक्चरार जहीर अब्बास की सेवाएं समाप्त कर दी हैं।
इन दोनों के आतंकी व अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त होने के सभी तथ्य सुरक्षा एजेंसियों ने जमा किए हैं। सभी तथ्यों और साक्ष्यों का संज्ञान लेने के बाद ही उपराज्यपाल ने इनकी सेवाएं समाप्त करने का आदेश दिया है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस में एसएसपी रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि अब्दुल रहमान नैयका और जहीर अब्बास या इन जैसे जो अन्य लोग बीते चार वर्ष के दौरान सेवामुक्त किए गए हैं।
अगर उन सभी की गतिविधियों का आकलन करें तो आप खुद समझ जाएंगे कि जम्मू-कश्मीर प्रदेश प्रशासन के विभिन्न विभागा में किस तरह से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ और आतंकी संगठनों ने अपने समर्थकों और मददगारों के जरिए सेंध लगा रखी थी। यह लोग व्हाईट कॉलर आतंकी हैं और बंदूक लेकर घूमने वाले सक्रिय आतंकियों से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं।
उन्होंने बताया कि बीते दिनों उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एक सुरक्षा समीक्षा बैठक में आतंकियों के पारिस्थितिक तंत्र को पूरी तरह नष्ट करने के अभियान को गति देने और सरकारी तंत्र में बैठे उनके मददगारों को चिह्नित कर, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई का निर्देश दिया है।
फार्मासिस्ट 1992 से स्वास्थ्य विभाग में था कार्यरत
दक्षिण कश्मीर के देवसर कुलगाम का रहने वाला अब्दुल रहमान नैयका वर्ष 1992 में स्वास्थ्य विभाग में बतौर मेडिकल असिस्टेंट नियुक्त हुआ था। वह प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के साथ शुरू से ही जुड़ा हआ था। इसके बाद में वह लश्कर-ए-तैयबा के लिए भी काम करने लगा।
दक्षिण कश्मीर के कुलगाम,शोपियां, अनंतनाग और पुलवामा में सक्रिय आतंकियों के लिए न सिर्फ सुरक्षित ठिकानों का बंदोबस्त करता था बल्कि बीमार आतंकियों के लिए चिकित्सा सुविधाएं भी जुटाता था। वह कई बार आतंकी हमलों में भी सक्रिय भूमिका निभा चुका है, लेकिन वह हर बार सुरक्षाबलों की चंगुल से बच निकलता था।
गुलाम हसन लोन की आतंकियों ने घर के बाहर की थी हत्या
तीन वर्ष पहले अगस्त 2021 में देवसर कुलगाम में जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के कार्यकर्ता गुलाम हसन लोन की आतंकियों ने उनके घर के बाहर हत्या की थी।
गुलाम हसन लोन के तीन पुत्र सेना में हैं। उसकी हत्या की जांच के दौरान अब्दुल रहमान नैयका के खिलाफ पुलिस को कई सुबूत मिले और उसे पकड़ लिया गया। उसके पास से एक हथगोला और एसाल्ट राइफल के कारतूस मिले।
पूछताछ में उसने बताया कि उसे पाकिस्तान में बैठे उसके हैंडलरों ने कुलगाम में सुरक्षाबलों पर ग्रेनेड हमला करने और राजनीतिक लोगों की हत्या का जिम्मा सौंपा था। उसने बताया कि वह अक्सर आतंकियों लिए सुरक्षाबलों की गतिविधियों की मुखबिरी करता था और उन लोगोंकी हिट लिस्ट भी तैयार करता था जो आतंकी व अलगाववादी एजेंडे के खिलाफ काम करते थे।
आतंकी हमलों में निभाई सक्रिय भूमिका
उसने बताया कि गुलाम हसन लोन की हत्या का षडयंत्र रचने, उसकी हत्या और हत्या के बाद आतंकियों को वारदातस्थल से सुरक्षित भागने में उसने पूरी मदद की थी। उसने दक्षिण कश्मीर में पुलिस अधिकारियों व कर्मियों औरउनके परिजनों पर आतंकी हमलों में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उसकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आधार पर उसे आज बर्खास्त कर दिया गया।
किश्तवाड़ के बद्धट सरूर का रहने वाला जहीद अब्बास ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की और वर्ष 2012 में शिक्षा विभाग में बतौर अध्यापक नियुक्त हुआ।
वह किश्तवाड़ औ उसके साथ सटे इलाकों में सक्रिय हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों के लिए ओवरग्राउंड वर्कर के रूप में काम करता था। वह स्कूल में भी छात्रों के बीच जिहादी मानसिकता पैदा करने का प्रयास करते हुए उन्हें देश के खिलाफ हिंसक गतिविधियों के लिए उकसाता था।
वह हिजबुल मुजाहिदीन के तीन आतंकियों मोहम्मद अमीन ,रियाज अहमद और मुदस्सिर अहमद को सुरक्षित ठिकाना प्रदान करने के अलावा उनके पैसे व अन्य साजो सामान का भी बंदोबस्त करता था। जहीर अब्बास को सितंबर 2020 में पुलिस ने पकड़ा था और इस समय वह कोट भलवाल जेल में बंद है।
भारत सरकार से वेतन, काम आतंकियों के लिए
उसकी निशानदेही पर ही पुलिस ने किश्तवाड़ व डोडा में सक्रिय आतंकियों के दो अन्य मददगारों गुलजार अहमदऔर मोहम्मद हनीफ को पकड़ा था। पुलिस ने उसके खिलाफ जांच के दौरान पाया कि वह बेशक भारत सरकार से वेतन लेता था, लेकिन काम पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और आतंकी संगठनों के लिए करता था।
वह अपने संपर्क में आने वाले छात्रों और अन्य युवाओं को किसी न किसी तरीके से जिहादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाता था। वह सुरक्षाबलों की गतिविधियों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की जानकारी भी पाकिस्तान में अपने हैंडलरों तक भेजता था। जेल में बंद होने के बावजूद भी वह जिहादी गतिविधियों में सक्रिय है।
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