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    इस वजह से है किश्तवाड़-लद्दाख सड़क मार्ग अहम, जनरल जोरावर सिंह ने इसी रास्ते पर ही जाकर तिब्बत को जीता था

    By Vikas AbrolEdited By:
    Updated: Mon, 29 Nov 2021 07:53 AM (IST)

    हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 1786 में जन्मे जोरावर सिंह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया। डोगरा सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने।

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    जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था।

    किश्तवाड़, बलवीर सिंह जम्वाल। जम्मू कश्मीर को लद्दाख से जोड़ता एक और वैकल्पिक मार्ग किश्तवाड़ से जंस्कार का इतिहास से पुराना नाता है। कुशल प्रशासक, साहसी युद्ध कौशल में निपुण और महान योद्धा रहे जनरल जोरावर सिंह ने कभी इसी किश्तवाड़ के मचैल से सेनाओं के साथ लद्दाख से बाल्टिस्तान और फिर तिब्बत पर फतह पाई थी।

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    यह रास्ता छोटा, लेकिन दुर्गम था। किश्तवाड़ पहाड़ों से घिरा है। इतिहासकार मानते हैं कि हमले से पहले दुश्मन सचेत न हो जाए, इसलिए श्रीनगर के रास्ते लद्दाख में प्रवेश करने के बजाए किश्तवाड़ का रास्ता चुना गया था। करीब 200 साल बाद अब डोगरा शासन के स्वर्णिम इतिहास का गवाह यह पुराना रास्ता जल्द सड़क की शक्ल लेने के बाद किश्तवाड़ के दूरदराज इलाकों के साथ कारगिल के जंस्कार के इलाकों में भी विकास का मार्ग प्रशस्ति होगा। साथ ही किश्तवाड़ से बनने वाला वैकल्पिक मार्ग पर्यटन के कई नए रास्ते खोलेगा।

    सेना ने तलाशे बहादुरी के निशान:

    सेना ने उन इलाकों में जनरल जोरावर की बहादुरी के निशान तलाशे हैं, जहां किश्तवाड़ से छह बार लद्दाख में महान हिमालय को पार करने वाले जनरल ने छह हजार डोगरा व तीन हजार लद्दाखी सैनिकों के साथ बाल्टिस्तान और तिब्बत को जीतकर इतिहास रचा था। सेना कई बार किश्तवाड़ से जंस्कार की ओर जाने वाले इस मार्ग पर ट्र्रैंकग कर उस जनरल की बहादुरी को महसूस करती है जिसने सुविधाओं के अभाव में अपने कुशल नेतृत्व में खून जमाने वाली ठंड में देश की सीमाओं का विस्तार किया था।

    क्या है इतिहास:

    वर्ष 1834 में लद्दाख एक स्वतंत्र राज्य था, लेकिन सांस्कृतिक रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म का हिस्सा था। जिसे लिटिल तिब्बत भी कहा जाता था। जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख जीतने के बाद वर्ष 1839-1840 में गिलगित-बाल्टिस्तान के खिलाफ सफल अभियान का नेतृत्व किया। जनरल जोरावर सिंह जम्मू से गिलगित पर फतह पाने के लिए जम्मू संभाग के रियासी, गूल गुलाबगढ़, से होते हुए माडवा, नवापाची, और वहां से मचैल सुंचांम, भुजबास, से होते हुए जंस्कार पहुंचे और उसके बाद उन्होंने गिलगित पर फतेह पाई। तब से मचैल जंस्कार का रास्ता लद्दाख के लिए उचित माना जाता रहा है। ऐसे में क्षेत्र से लद्दाख के लिए सड़क बनाना लोगों की यह एक पुरानी मांग थी जो दशकों के बाद अब पूरी होने जा रही है।

    1834 में सुरू नदी घाटी होते हुए लद्दाख गए थे जोरावर सिंह: 

    हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 1786 में जन्मे जोरावर सिंह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया। डोगरा सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने। रियासी में जनरल का किला उनकी बहादुरी की याद दिलाता है। वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था। वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान, तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था। तिब्बत जीतने के बाद वापसी के दौरान 12 दिसंबर 1841 में बर्फ में तिब्बती सैनिकों के अचानक हमले में गोली लगने से उन्होंने शहादत पाई थी।

    जनरल जोरावर सिंह ने किश्तवाड़ से लद्दाख के रास्ते पर ही जाकर तिब्बत को जीता था। समय की जरूरत को ध्यान में रखते हुए मार्ग को विकसित किया जा रहा है। केंद्र का यह अहम कदम है। इससे सफर काफी कम हो जाएगा। अगर हम इतिहास देखें तो पता चलता है कि महाराजा गुलाब सिंह और जनरल जोरावर सिंह कितने दूरदर्शी थे जिन्होंने उस समय सड़के न होने के कारण उस रास्ते का इस्तेमाल किया। इस मार्ग पर नई टनल बनाई जा रही है जो सफर को काफी कम कर देगी। केंद्र ने मार्ग के महत्व को समझा है।