जम्मू-कश्मीर में तबाही ही तबाही; एक्सपर्ट ने बताया खतरनाक, 2020 के बाद क्यों बढ़ने लगीं बादल फटने की घटनाएं?
जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिससे चिंता बढ़ गई है। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2020 से 2025 तक इन घटनाओं में वृद्धि हुई है खासकर मानसून के दौरान। विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास को इसका कारण मानते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ अंधाधुंध विकास को भी जिम्मेदार ठहराते हैं जिससे पहाड़ी ढलानों की स्थिरता कमजोर हुई है।

अशोक शर्मा, जम्मू। पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। गुरुवार को एक बार फिर किश्तवाड़ जिले के मचैल यात्रा के आधार शिविर यात्रा मार्ग के पास बादल फटने से स्थानीय इलाकों में भारी पानी और मलबा बहकर आया। इसी दिन पहलगाम में भी एक अलग घटना हुई।
आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2020 के बाद से जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं में इजाफा हुआ है। 2020 में राज्य में 7 बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गईं। 2021 में 11 घटनाएं, 2022 में 14 घटनाएं। 2023 में 16 घटनाएं। 2024 में जनवरी-अगस्त मेें अब तक 12 घटनाएं हुई हैं जिनमें से 7 सिर्फ जून-अगस्त में हुईं। इसके अलावा वर्ष 2025 में भी अभी तक प्रदेश में 10 बादल फटने की घटनाएं घट चुकी हैं।
बादल फटने के बढ़ते आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता
यह बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। खासकर क्योंकि ज्यादातर घटनाएं जून से सितंबर के बीच दर्ज हो रही हैं। जब क्षेत्र में मानसून और स्थानीय वर्षा चरम पर होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास की गति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाएं और भी गंभीर रूप ले सकती हैं। इसके लिए मजबूत आपदा पूर्वानुमान प्रणाली, पर्यावरणीय नियमों का सख्त पालन और स्थानीय समुदायों को तैयार करने की जरूरत है।
क्यों बढ़ रही हैं बादल फटने की घटनाएं?
पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. ओपी विद्यार्थी ने बताया--
इस साल कश्मीर में औसत तापमान पिछले 30 वर्षों के मुकाबले लगभग 2 से 4 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। इससे वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ी और कुछ क्षेत्रों में तीव्र वर्षा की संभावना अधिक हुई। जो बादल फटने का कारण बनती है। विकास के नाम पर अंधाधुंध सड़क चौड़ीकरण, खनन, पेड़ों की कटाई और निर्माण कार्यों ने पहाड़ी ढलानों की प्राकृतिक स्थिरता कमजोर कर दी है। जब तेज वर्षा होती है, तो पानी को सोखने और रोकने वाली प्राकृतिक परत खत्म हो चुकी होती है। जिससे नुकसान कई गुना बढ़ जाता है।
अब अगले दस साल तक न हो काेई छेड़छाड़
अगर इन घटनाओं को रोकना है तो जंगलों, पहाड़ों, चट्टानों के साथ कम से कम अगले दस वर्ष तक कोई भी छेडखानी नहीं होनी चाहिए। मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर के निदेशक डा. मुख्तार अहमद से मिली जानकारी अनुसार रामबन ज़िला के सेरी बगना और धर्मकुंड गांव
2010 से 2022 में हुई 552 मौतें
जम्मू-कश्मीर में मौसम में बदलाव की मुख्य घटनाओं में वर्ष 2010-2022 के बीच 552 मौतें हुई हैं। इस अवधि में कुल 2,863 घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें सबसे अधिक घटनाएं बिजली गिरने की रहीं। मौतों के लिहाज से सबसे घातक घटना भारी बर्फबारी रही। जिससे 182 लोगों की जान गई। इसके बाद ’फ्लैश फ्लड’ से 119 और भारी बारिश से 111 लोगों की मौत हुई।
भूस्खलन से 71, आंधी से 20 और ठंड की लहर से 7 मौतें दर्ज की गईं। इसी तरह हीटवेव से कोई मौत दर्ज नहीं हुई। जिला-वार आंकड़ों में देखा गया कि कुपवाड़ा, बडगाम, बारामुला, पुलवामा, डोडा और किश्तवाड़ जैसे जिलों में मौतों का आंकड़ा अपेक्षाकृत ज्यादा रहा।
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