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    नायब तहसीलदार पदों के लिए उर्दू अनिवार्यता का विरोध, जम्मू में भाजपा विधायकों का प्रदर्शन, आदेश वापस लेने की मांग

    Updated: Mon, 14 Jul 2025 05:33 PM (IST)

    जम्मू-कश्मीर में नायब तहसीलदार भर्ती परीक्षा में उर्दू को अनिवार्य करने के सरकारी आदेश के खिलाफ भाजपा ने विरोध प्रदर्शन किया। भाजपा विधायकों ने सिविल सचिवालय के बाहर धरना दिया इस आदेश को भेदभावपूर्ण जम्मू के युवाओं के हितों के लिए हानिकारक कहा। नेशनल कॉन्फ्रेंस पर क्षेत्र में अशांति पैदा करने का आरोप लगाया और चेतावनी दी कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा।

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    भाजपा ने आरोप लगाया कि सरकार क्षेत्र में अशांति पैदा करने की कोशिश कर रही है।

    डिजिटल डेस्क, जम्मू। भाजपा विधायक दल ने सोमवार को सिविल सचिवालय और विधानसभा के बाहर धरना दिया और जम्मू-कश्मीर में नायब तहसीलदार भर्ती परीक्षा में उर्दू को अनिवार्य भाषा बनाने के सरकारी आदेश को रद करने की मांग की।

    भाजपा तीन हफ्तों से ज़्यादा समय से जम्मू में इस कदम का विरोध कर रही है और ज़िला स्तर पर विरोध प्रदर्शन और रैलियां कर रही है। भाजपा ने चेतावनी दी है कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो वह पूरे संभाग में आंदोलन का सिलसिला तेज कर देंगे।

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    भाजपा विधायक सुबह सिविल सचिवालय पहुंचे और धरना दिया। उन्होंने इस आदेश को भेदभावपूर्ण और जम्मू के युवाओं के हितों के लिए हानिकारक बताया। केंद्र शासित प्रदेश की अन्य आधिकारिक भाषाओं के साथ अन्याय को दर्शाने वाली तख्तियां लिए हुए युवा व भाजपा नेताओं ने सरकार और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के खिलाफ नारे लगाए और पार्टी पर क्षेत्र में अशांति पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया।

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    भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा ने कहा, "हम जम्मू-कश्मीर में नायब तहसीलदार परीक्षाओं के लिए उर्दू को अनिवार्य करने के फैसले के खिलाफ धरना दे रहे हैं, जो हमें स्वीकार्य नहीं है।" कश्मीर-केंद्रित पार्टियां, खासकर नेशनल कॉन्फ्रेंस, दशकों से इस क्षेत्र के साथ भेदभाव करती आ रही हैं। यह इसका एक ताज़ा उदाहरण है।"

    जम्मू और उसके लोगों के साथ दशकों से चले आ रहे भेदभाव के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकारों पर निशाना साधते हुए शाम शर्मा ने कहा, "हमें लगा था कि 2019 के बाद उनका भेदभावपूर्ण रवैया बदल गया है, लेकिन यह आज भी जारी है।"

    उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि इस तरह का आदेश जारी करना जम्मू के युवाओं को नौकरी से वंचित करने का एक स्पष्ट प्रयास है। यह अन्य आधिकारिक भाषाओं के साथ भी भेदभाव को दर्शाता है।

    शर्मा ने आगे कहा, "सरकार में ऐसे महत्वपूर्ण पदों के लिए उर्दू को अनिवार्य बनाकर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के शासकों ने उन पिछले प्रावधानों को रद कर दिया है जिनमें उर्दू भाषा जानना अनिवार्य नहीं था।"

    उन्होंने कहा, "हम इसे रद करवाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह मामला उपराज्यपाल के संज्ञान में भी लाया गया है और उपायुक्तों के माध्यम से ज्ञापन सौंपे गए हैं, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।" नौकरी के लिए आवेदन करने वाले युवा भी इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।

    शर्मा ने कहा कि इस मुद्दे पर 14 भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से भी मुलाकात की थी। "उनका रुख सकारात्मक था। फिर भी, कोई कार्रवाई नहीं हुई है, और कल पदों के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख है।"

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    उन्होंने आगे कहा, "वे जम्मू में अशांति फैलाने की कोशिश कर रहे हैं और हमें आंदोलन पर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। सभी 28 भाजपा विधायकों ने आज दो घंटे के सांकेतिक धरने के साथ इसकी शुरुआत कर दी है।"

    पूर्व मंत्री ने आगे कहा कि पार्टी जल्द ही अपनी अगली रणनीति की घोषणा करेगी। "हम सरकार को चेतावनी दे रहे हैं कि वह जम्मू के लोगों की भावनाओं से न खेले, जो कश्मीर-केंद्रित शासकों के भेदभावपूर्ण रवैये से तंग आ चुके हैं।" अन्य भाजपा विधायकों ने भी चेतावनी दी कि अगर सरकार द्वारा विज्ञापित परीक्षा के लिए उर्दू भाषा की अनिवार्यता वापस नहीं ली गई, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे।

    भाजपा विधायक युद्धवीर सेठी ने कहा, "नायब तहसीलदारों की भर्ती में उर्दू को अनिवार्य विषय बनाना जम्मू क्षेत्र के युवाओं के साथ घोर अन्याय है।" उन्होंने आगे कहा कि इस तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विधायकों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और कहा कि यह जम्मू क्षेत्र के युवाओं को हाशिए पर धकेलने का एक "जानबूझकर किया गया प्रयास" है।

    सेठी ने आगे कहा, "यह जम्मू के युवाओं को समान अवसरों से वंचित करने का एक सोचा-समझा कदम है।" उर्दू को थोपना उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पहले अपनाई गई विभाजनकारी और बहिष्कारकारी नीतियों को दर्शाता है।

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    उन्होंने कहा, "हम इस तरह के अन्याय की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे।" उन्होंने आगे कहा कि यह कदम डोगरी, हिंदी, कश्मीरी, उर्दू और अंग्रेजी सहित कई आधिकारिक भाषाओं को दिए गए समान दर्जे का स्पष्ट उल्लंघन है। 

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