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    जीएमसी में पहुंचने के बाद पंद्रह मिनट एंबुलेंस में रही डोडा सड़क हादसे में घायल मासूम, उपचार आरंभ होते ही तोड़ा दम

    Updated: Tue, 15 Jul 2025 07:08 PM (IST)

    डोडा सड़क हादसे में घायल चार वर्षीय बच्ची उजमा बानो ने जीएमसी अस्पताल जम्मू में दम तोड़ दिया। अस्पताल पहुंचने पर उसे ऑक्सीजन सिलेंडर मिलने में 15 मिनट की देरी हुई। बच्ची को डोडा से गंभीर हालत में रेफर किया गया था। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उन्हें घायलों के बारे में पहले से कोई सूचना नहीं थी।

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    विधायक अरविंद गुप्ता ने तुरंत उपचार की बात कही। इस हादसे में मरने वालों की संख्या सात हो गई है।

    जागरण संवाददाता, जम्मू। डोडा सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हुई चार वर्षीय बच्ची उजमा बानो पुत्री अमजद अहमद निवासी ओल डोडा जीएमसी अस्पताल जम्मू के बाहर ही करीब पंद्रह मिनट तक एंबुलेंस में ही जिंदगी के लिए जंग लड़ती रही और जब उसे अस्पताल के भीतर ले जाकर उसका उपचार आरंभ हुआ तो वह जिंदगी की जंग हार गई।

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    अस्पताल की दहलीज पर पहुंचने के बाद भी बच्ची को पंद्रह मिनट तक उपचार का इंतजार रहा जबकि ये पंद्रह मिनट वह क्षण थे, जो जिंदगी और मौत तय करने वाले थे उजमा वानो की गंभीर हालत को देखते हुए उसे डोडा से जीएमसी अस्पताल जम्मू रेफर किया गया था। बच्ची को सड़क रास्ते से ही एंबुलेंस से जम्मू रेफर किया गया था।

    घंटों सफर करने के बाद एंबुलेंस बच्ची की सांसे थमने से पहले ही उसे जीएमसी अस्पताल जम्मू लेकर पहुंच गई लेकिन जीएमसी जम्मू में बच्ची को एंबुलेंस से नीचे उतार कर उसे इमरजेंसी वार्ड तक ले जाने के लिए आक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता थी और इस सिलेंडर को बच्ची तक पहुंचाने में जीएमसी प्रबंधन को पंद्रह मिनट का समय लग गया।

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    इस देरी को लेकर अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उन्हें डोडा से प्रशासन की ओर से घायलों को रेफर किए जाने की कोई जानकारी नहीं मिली थी। अकसर ऐसे मामलों में प्रशासन की ओर से अस्पताल को सूचित कर दिया जाता है और अस्पताल पूरी तैयारी पहले ही कर लेता है।

    वहीं बच्ची के उपचार में देरी के सवाल पर जीएमसी प्रशासन का कहना था कि वह समय पर शुरू कर दिया गया था लेकिन बच्ची की हालत गंभीर होने के चलते उसकी जान नहीं बच पाई।

    उधर डोडा हादसे में घायलों के जीएमसी पहुंचने की सूचना मिलने पर जीएमसी पहुंचे जम्मू वेस्ट के विधायक अरविंद गुप्ता का कहना है कि उन्होंने डाक्टरों से भी इस मामले में बात की है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में उपचार तुरंत मिलना चाहिए।

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    उधर समाजसेवी सोमनाथ डबगाेत्रा का कहना है कि वह खुद एंबुलेंस में बच्ची के साथ पंद्रह मिनट तक रहें हैं। अस्पताल प्रशासन ने बच्ची के तीमारदारों को आक्सीजन सिलेंडर देने में समय लगाया।अगर यही बच्ची किसी वीआइपी की होती, तो शायद अस्पताल प्रशासन ऐसा नहीं करता।

    वहीं इसके साथ ही डोडा सड़क हादसे में मरने वालों की संख्या सात के करीब पहुंच गई है। वहीं इस हादसे में 14 के करीब लोग घायल हैं।

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