जम्मू-कश्मीर में आतंक पर लगाम के बाद नजरिए की लड़ाई शुरू, प्रशासन विकास कार्यों का दे रहा है हवाला
जम्मू-कश्मीर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और इसके बाहर कई लोग घाटी में सक्रिय आतंकियों और हर साल भर्ती होने वाले नए आतंकियों की सटीक जानकारी पर सवाल उठा रहे हैं। वे कश्मीर में आतंकवाद के फिर से सिर उठाने के सपने देख रहे हैं।

नई दिल्ली, नीलू रंजन। आतंकी हिंसा और सक्रिय आतंकियों की संख्या को न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बाद जम्मू-कश्मीर में नजरिए की नई लड़ाई शुरू हो गई है। एक ओर पुराने सिस्टम से फायदा उठाने वाले आतंकियों की न्यूनतम संख्या के प्रशासन के दावे पर सवाल उठाकर मौजूदा शांति को झूठा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रशासन घाटी में आतंकवाद से सबसे प्रभावित स्थानों पर सामान्य जनजीवन, रिकार्ड संख्या में पयर्टकों की संख्या और बड़े पैमाने पर विकास कार्यों के आंकड़े का हवाला देकर नए कश्मीर की तस्वीर पेश कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया
जम्मू-कश्मीर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर और इसके बाहर कई लोग घाटी में सक्रिय आतंकियों और हर साल भर्ती होने वाले नए आतंकियों की सटीक जानकारी पर सवाल उठा रहे हैं। वे कश्मीर में मौजूदा शांति को असत्य बताते हुए आतंकवाद के फिर से सिर उठाने के सपने देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं, जो पुराने सिस्टम का सबसे अधिक लाभ उठाते थे। जबकि नौकरियों से लेकर किसी भी सरकारी कामकाज में पारदर्शिता नहीं थी और चंद लोग पूरे सिस्टम पर कब्जा जमाए बैठे थे।
कश्मीर के एडीजी विजय कुमार ने कहा
उनके अनुसार, पुराने सिस्टम से फायदा उठाने वाले लोगों और उनके समर्थकों को कश्मीर की मौजूदा शांति हजम नहीं हो रही है। कश्मीर के एडीजी विजय कुमार ने ऐसे सवालों का जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर में शांति को साफ-साफ देखा जा सकता है। सिर्फ आतंकी हिंसा न्यूनतम स्तर पर नहीं है, पत्थरबाजी से लेकर हड़ताल का कैलेंडर तक अब बीते दिनों की बात हो गई है। अकेले इस साल 329 सांसदों और 79 केंद्रीय मंत्रियों समेत सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाइकोर्ट के कई न्यायाधीश कश्मीर आ चुके हैं। विभिन्न राज्यों से आने वाले मंत्रियों की तो सूची ही नहीं रखी जाती है।
उन्होंने कहा कि सिर्फ आम जनता को बरगलाने और किसी हद तक भयभीत रखने के लिए शांति को झूठी बताने की कोशिश हो रही है। घाटी में 81 सक्रिय आतंकियों और इस साल भर्ती होने 99 आतंकियों की सटीक संख्या को लेकर उठने वाले सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले तीस साल में सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी प्रणाली विकसित की है। उन्होंने कहा कि यह संख्या पहली बार जारी नहीं की जा रही है, बल्कि पहले से जारी होती रही है।
जम्मू-कश्मीर में हो रहे विकास कार्यों को भी नकारने की कोशिश
यदि पहले इस पर सवाल नहीं उठा, तो आज क्यों उठाया जा रहा है। इसी तरह से हर गांव में गायब होने वाले युवाओं की सूची तैयार करने की अपनी प्रणाली है और उसके आधार पर यह तय किया जाता है कि उनमें से कितने युवा आतंकी संगठन में भर्ती हुए हैं। एनकाउंटर में मारे जाने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता है कि आतंकी बनने वाले कितने युवा मारे गए और कितने अभी सक्रिय हैं।
इसी तरह से जम्मू-कश्मीर में हो रहे विकास कार्यों को भी नकारने की कोशिश की जा रही है। जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव अरुण मेहता के अनुसार पिछले तीन साल के भीतर हर साल पूरी होने वाली विकास योजनाओं की संख्या पांच गुना बढ़कर लगभग 10 हजार से 50 हजार से अधिक हो गई हैं। उन्होंने कहा कि इस साल 75 हजार से अधिक विकास योजनाएं पूरी करने का लक्ष्य है। मेहता ने कहा कि घाटी में हर तरफ इसे देखा जा सकता है और जनता इसे देख भी रही है।
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