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    हिमाचल प्रदेश: मोबाइल स्क्रीन पर अधिक समय बिताना बन रहा आंखों का सबसे बड़ा दुश्मन, ऊना अस्पताल में बढ़े मामले

    By Neeraj Kumari Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Sun, 12 Oct 2025 06:32 PM (IST)

    आधुनिक जीवनशैली में मोबाइल और लैपटॉप की लत से आँखों पर बुरा असर पड़ रहा है, खासकर बच्चों में। ऊना अस्पताल में आँखों की समस्या वाले मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि स्क्रीन पर ज़्यादा समय बिताने से मायोपिक पैरालाइसिस और ड्राई आइ सिंड्रोम जैसी बीमारियाँ हो रही हैं। नियमित जाँच, विटामिन-ए युक्त आहार और स्क्रीन से दूरी बनाए रखना आँखों के लिए ज़रूरी है।

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    मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल आंखों के लिए घातक बन रहा है। प्रतीकात्मक फोटो

    नीरज पराशर, चिंतपूर्णी (ऊना)। आधुनिक जीवनशैली में मोबाइल फोन और लैपटाप अब आवश्यकताओं की सूची में शामिल हो चुके हैं, लेकिन इनकी स्क्रीन की रोशनी ने आंखों की सेहत पर खतरे की घंटी भी बजा दी है। आज स्थिति ऐसी है कि केवल बुजुर्ग ही नहीं, बच्चों की आंखें भी कमजोर होने लगी हैं।

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    मोबाइल की टच स्क्रीन मनोरंजन या जानकारी का माध्यम तो है, लेकिन अब लोगों में एक लत भी बन गई है। खाली समय मिलते ही लोग फोन में झांकने लगते हैं जिससे आंखों पर निरंतर दबावबढ़ता जा रहा है।

    सात से आठ घंटे स्क्रीन पर काम करने से हो रही समस्या

    जो विद्यार्थी पढ़ाई के लिए या कामकाजी लोग दफ्तरों में लैपटाप का उपयोग करते हैं वे दिन का सात से आठ घंटे स्क्रीन के सामने बिताते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यही आदत मायोपिक पैरालाइसिस और ड्राई आइ सिंड्रोम जैसी बीमारियों का कारण बन रही है।

    अंधेरे में मोबाइल फोन का इस्तेमाल कम कर रहा रोशनी

    रात के अंधेरे में मोबाइल फोन चलाना और प्राकृतिक रोशनी से दूरी आंखों की कमजोरी को और बढ़ा रही है। क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में रोजाना सौ से अधिक मरीज आंखों की समस्या लेकर पहुंच रहे हैं।

    20 से 25 बार पलकें झपकना जरूरी

    नेत्र विशेषज्ञ डा. अंकुश शर्मा बताते हैं कि सामान्यतः व्यक्ति एक मिनट में 20 से 25 बार पलकें झपकता है, लेकिन मोबाइल के सामने यह संख्या घटकर पांच से सात रह जाती है जिससे आंखों की नमी कम होती है और रोशनी पर असर पड़ता है। बच्चे अब खेलकूद के बजाय मोबाइल फोन में खोए रहते हैं जिससे उनकी शारीरिक सक्रियता और आंखों की सेहत दोनों प्रभावित हो रही हैं।

    डा. अंकुश का कहना है कि लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करने वाले लोग आंखें झपकाना भूल जाते हैं जिससे आंखें सूखने लगती हैं। ऐसे लोगों को हर आधे घंटे में कुछ पल स्क्रीन से नजर हटाकर दूर किसी वस्तु को देखने की आदत डालनी चाहिए। यह आंखों की मांसपेशियों के लिए व्यायाम का काम करता है। सिरदर्द, जलन या धुंधलापन महसूस होने पर चिकित्सक से तुरंत परामर्श लेना जरूरी है।

    40 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से आंखों की जांच करवाना जरूरी 

    डा. अंकुश का कहना था कि 40 वर्ष की आयु पार करने के बाद हर व्यक्ति को आंखों की नियमित जांच करवानी चाहिए। इसके अलावा विटामिन-ए युक्त आहार, मौसमी फल-सब्जियां और हर दिन सलाद का सेवन आंखों की रोशनी बनाए रखने में मददगार हैं। रात को सोने से पहले आंखों को ठंडे पानी से धोना और मोबाइल से दूरी बनाए रखना सबसे सस्ता, लेकिन प्रभावशाली उपाय है। आंखों को चैन  देने के लिए जरूरी है कि हम तकनीक के उपयोग और अपनी सेहत के बीच संतुलन बनाए रखें।

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