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    गर्मी सताए तो आ जाएं चांशल घाटी, शिमला से है 150 KM दूर; बर्फ से ढके रहते हैं पहाड़, जानिए कैसे पहुंचे और कहां ठहरे

    Updated: Fri, 02 May 2025 06:20 PM (IST)

    मैदान पर लोगों को गर्मी सताने लगी है। सुकून लेना है तो सीधे चांशल घाटी आ जाइए। अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से मई अंत तक यहां आना सही समय माना जाता है। इसके बाद सितंबर के बाद फिर पर्यटन सीजन शुरू होता है। हर साल इसी सीजन में भारी संख्या में लगभग 50 हजार पर्यटक देश व विदेश से यहां पहुंचते हैं।

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    बेहद खूबसूरत है चांशल घाटी, भारी संख्या में पहुंचते हैं पर्यटक। फोटो जागऱण

    शिखा वर्मा, शिमला। हिमाचल के कई पर्यटन स्थल अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है शिमला जिले की चांशल घाटी। जब मैदान में आग उगलने वाली गर्मी पड़ती है तो आप यहां बर्फ से लकदक पहाड़ों को निहारना तो पसंद करेंगे ही, हरियाली भी सुकून देगी।

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    चांशल घाटी राजधानी शिमला से लगभग 156 किलोमीटर दूर पहाड़ों की गोद में है। शिमला से रोहड़ू की दूरी लगभग 110 और रोहड़ू से चांशल घाटी की 46 किलोमीटर है। सर्पाकार सड़क पर मोड़ काटते हुए रोहड़ू से चांशल का सफर ढाई से तीन घंटे में पूरा होता है।

    वापसी के लिए दो घंटे का समय रोहड़ू पहुंचने के लिए लगता है। शिमला से रोहड़ू के लिए पांच हजार रुपये में टैक्सी ले सकते हैं। रोहड़ू से आगे भी इतनी राशि देनी होती है।

    अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से मई अंत तक यहां आना सही समय माना जाता है। इसके बाद सितंबर के बाद फिर पर्यटन सीजन शुरू होता है। हर साल इसी सीजन में लगभग 50 हजार पर्यटक देश व विदेश से यहां पहुंचते हैं। अप्रैल में भी कब यहां का तापमान जमावबिंदु से नीचे पहुंच जाए, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

    यहां भी घूम सकते हैं पर्यटक

    शिमला से रोहड़ू जाते समय पर्यटक खड़ापत्थर से गिरी गंगा जा सकते हैं। यहां से छह किलोमीटर दूर गिरी गंगा है। यह बेहद खूबसूरत घाटी है, जहां बेहद कम भीड़भाड़ होती है। गिरी गंगा के ऊपर कुप्पर बुग्याल भी है। जहां 2-3 घंटे की ट्रेकिंग करके पहुंचा जा सकता है।

    रोहड़ू पहुंचने से लगभग 10 किलोमीटर पहले हाटकोटी मंदिर है। यहां मां हाटेश्वरी की मूर्ति है जो महिषासुर का वध कर रही हैं। माना जाता है कि इस मंदिर को 10वीं शताब्दी में बनाया गया था।

    रोहड़ू पहुंचने के बाद जब चांशल के लिए रवाना होते हैं तो बढियारा के कुछ आगे देवीधार व जांगला में रनसार वैली है। इसके बाद चिड़गांव अंतिम बाजार पड़ता है। चांशल में पांच से छह अस्थायी दुकानें हैं, यहां मैगी, मोमो या सिड्डू खाने के लिए मिलते हैं।

    इस तरह पहुंच सकते हैं चांशल घाटी

    चांशल पहुंचने के लिए दिल्ली, चंडीगढ़ या देश के अन्य राज्यों से पहले शिमला पहुंचना होगा। शिमला बस, कालका-शिमला ट्रैक पर चलने वाली टॉय ट्रेन या फिर दिल्ली से शिमला आने वाली फ्लाइट से पहुंच सकते हैं। शिमला से चलने के बाद रोहड़ू में आराम करने के बाद अगले दिन चांशल की यात्रा कर सकते हैं। शाम तक चांशल घाटी से निकलना सुरक्षित रहता है।

    यहां ठहर सकते हैं पर्यटक

    रोहड़ू से चांशल के रास्ते में शिलादेश व लडोट में होम स्टे हैं। इनका किराया एक से डेढ़ हजार रुपये तक है। चांशल घाटी में कैंपिंग करवाने वाली दो पर्यटक कंपनियां भी काम कर रही हैं। लडोट, डोडरा व क्वार में वन विभाग के तीन विश्रामगृह हैं। अमूमन पर्यटकों के लिए रोहड़ू में रुकना ठीक रहता है।

    सिड्डू व लाल चावल हैं यहां की विशेषता

    सिड्डू व लाल चावल के अलावा नॉन वेज यहां की विशेषता हैं। यहां राजमाह भी आपको परोसे जा सकते हैं। शाकाहारी व मांसाहारी दोनों ही तरह का खाना यहां मिलता है।