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    वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल पर सुक्खू सरकार का कब्जा, अब हर महीने 1.78 करोड़ देगा ओबेरॉय ग्रुप; एक दिन का किराया 2.60 लाख

    Updated: Tue, 01 Apr 2025 05:57 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल को अपने नियंत्रण में ले लिया है। सरकार ने पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक अनिल तनेजा को लेखा अधिकारी के साथ होटल में तैनात किया है। होटल की दैनिक आय का आकलन करने के बाद सरकार ने ओबराय समूह को हर महीने 1.78 करोड़ रुपये का भुगतान करने का फैसला किया है।

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    सुक्खू सरकार के कब्जे में वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल। फाइल फोटो

    प्रकाश भारद्वाज, शिमला। प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेशानुसार होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को नियंत्रण में ले लिया है। होटल को नियंत्रण में लेने के तुरंत बाद सरकार ने पर्यटन विकास निगम के महाप्रबंधक अनिल तनेजा को लेखा अधिकारी के साथ वाइल्ड फ्लावर हॉल में बैठा दिया है।

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    सरकार के दोनों अधिकारी दैनिक बिलिंग की जानकारी रखेंगे। पिछले एक सप्ताह से सरकार के अधिकारियों व ओबराय समूह प्रबंधन के बीच में मध्यस्थता वार्ता चल रही थी। होटल की दैनिक, मासिक आय का आकलन करने के बाद ये निष्कर्ष निकला कि ओबराय समूह को हर महीने 1.78 करोड़ रुपये की धनराशि का भुगतान करना पड़ेगा।

    ये भुगतान तब तक चलता रहेगा, जब तक कि सरकार की ओर से वैश्विक निविदा आमंत्रित प्रक्रिया संचालित नहीं हो जाती है। ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि अगले तीन माह के भीतर होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल निविदा प्रक्रिया में चुनी जाने वाली कंपनी को सुपुर्द कर दिया जाएगा।

    मासिक भुगतान धनराशि के अतिरिक्त बकाया ओबराय समूह को अलग से चुकाना है। इस संबंध में निर्धारण प्रक्रिया चल रही है। एक सप्ताह पहले सरकार ने उच्च न्यायालय को अवगत करवाया था कि वैश्विक निविदा प्रक्रिया संचालित करने में समय लग सकता है। ऐसे में वर्तमान व्यवस्था को ही चलने दिया जाए।

    85 कमरे और 2.60 लाख रुपये दैनिक किराया

    होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल में 85 कमरें हैं, जिनमें न्यूनतम किराया 30400 रुपये है और अधिकतम 2.60 लाख रुपये है। जो धनराशि सरकार को दी जानी है, वह कमरों की औसत बुकिंग के आधार पर निकाली गई है।

    यह है मामला

    हिमाचल सरकार और ईस्ट इंडिया होल्टस कंपनी में संपत्ति को लेकर विवाद है। वर्ष 1993 में होटल में आग लगी थी। इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ करार किया था। कंपनी को चार साल में होटल बनाना था।

    ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रति वर्ष सरकार को अदा करना था। सरकार ने 1996 में कंपनी के नाम जमीन ट्रांसफर कर दी। छह वर्ष में कंपनी होटल का काम पूरा नहीं कर पाई। सरकार ने वर्ष 2002 में करार रद कर दिया।

    कंपनी लॉ बोर्ड ने ईस्ट इंडिया होटल्स के पक्ष में फैसला सुनाया। सरकार ने यह मामला न्यायालय लेकर गई। इस बीच ओबराय समूह की ओर से 18 प्रतिशत की दर से 125 करोड़ न्यायालय में जमा करवाया है। लेकिन अभी तक पिछली बकाया धनराशि तय नहीं हो पाई है।

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