Himachal: हिमाचल में खराब मौसम और ओलावृष्टि से प्रभावित सेब की खेती, फसल में हो सकती 30-35 फीसदी की गिरावट
Apple Farming In Himachal हिमाचल प्रदेश सेब और बादाम के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है लेकिन इस साल सेब की खेती पर खराब मौसम का प्रभाव देखने को मिल सकता है। किसानों का कहना है कि सेब की खेती में 50 से 60 फीसदी तक नुकसान हो सकता है।

शिमला, आईएएनएस। हिमाचल प्रदेश सेब और बादाम के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है, लेकिन इस साल सेब की खेती पर खराब मौसम का प्रभाव देखने को मिल सकता है। इस साल सेब की फसल में 30-35 फीसदी की गिरावट देखी जा सकती है। बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि साथ ही खराब मौसम की वजह से इस साल स्वाद बिगड़ सकता है।
सेब की खेती का हो सकता है नुकसान
प्रदेश के किसानों का कहना है कि सेब की खेती में 50 से 60 फीसदी तक नुकसान हो सकता है। किसानों के अनुसार, कई हफ्तों तक वसंत की शुरुआत के साथ बर्फ रहित सर्दी और गीला मौसम फसल के नुकसान का कारण है। इसका असर लोअर और मिड बेल्ट पर ज्यादा देखने को मिल रहा है। सेब की फसल की कटाई जुलाई में होगी और अक्टूबर के अंत तक चलेगी। लेकिन बागवानी विशेषज्ञ एस.पी. भारद्वाज उपज में गिरावट के बावजूद आशावादी हैं।
क्या बोले एस.पी. भारद्वाज
एस.पी. भारद्वाज ने कहा कि सेब की फसल का प्राकृतिक फलों का पतला होना पत्तियों की सतह के साथ पेड़ों पर बचे फलों की मात्रा को संतुलित करता है जो फलों को बढ़ने और पकने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों में, फल के आकार को बढ़ाने और बार-बार खिलने के लिए फलों का पतलापन किया जाता है।
हिमाचल के लिए अहम फसल है सेब
सेब हिमाचल प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फल फसल है। यह वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कुल फल क्षेत्र का 48.8 प्रतिशत और कुल फल उत्पादन का 81 प्रतिशत है। सेब का क्षेत्रफल 1950-51 में 400 हेक्टेयर से बढ़कर 1960-61 में 3,025 हेक्टेयर और वित्त वर्ष 2021-22 में 115,016 हेक्टेयर हो गया है। 2007-08 और 2021-22 के बीच, सेब के क्षेत्र में 21.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। राज्य के कुल सेब उत्पादन में अकेले शिमला जिले का हिस्सा 80 प्रतिशत है।
सेब की फसल में हो सकती है 70 फीसदी गिरावट
आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, राज्य ने दिसंबर 2022 तक 674,000 टन सेब का उत्पादन किया। पिछले 13 वर्षों में, 275,000 टन की सबसे कम फसल 2011-12 में हुई थी, जबकि 892,000 टन का इष्टतम उत्पादन 2010-11 में हुआ था। राज्य के सेब उत्पादन का 90 प्रतिशत से अधिक घरेलू बाजार में जाता है। लेकिन, किसान इस साल सेब की फसल के कुल उत्पादन को लेकर आशंकित हैं। उनका कहना है कि हाल के वर्षों की उपज की तुलना में इस बार फसल में गिरावट 70 फीसदी तक हो सकती है।
मौसम में बदलाव है अहम वजह
मंडी जिले में सेब के बागों के केंद्र करसोग में सेब उत्पादक राजेश खिमटा ने बताया कि फसल में गिरावट का मुख्य कारण सर्दियों में बर्फ की कमी और वसंत के दौरान और उसके बाद भारी बारिश है। मार्च से मई तक तापमान में उतार-चढ़ाव ने पौधों को खराब कर दिया था। जैसे कि कलियों के टूटने और पूर्ण खिलने की अवधि में देरी हुई थी, जिससे उत्पादन कम हुआ।
ओलावृष्टि और बारिश से फसल को नुकसान
इसके अलावा, मई में ओलावृष्टि ने फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है। एक अन्य उत्पादक विनोद चौहान, जिनके पास कोटगढ़ क्षेत्र के बनोट में एक बाग है। उन्होंने कहा कि ओलावृष्टि से भी फसल प्रभावित हुई है। यद्यपि उत्पादक ओला जाल का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन वे पूरे बाग को जाल से ढक नहीं सकते हैं।
उन्होंने कहा कि पुराने और जीर्ण सेब के पौधों को अधिक ठंड के घंटों की आवश्यकता होती है और इस बार लगभग बर्फ रहित सर्दियों से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। क्षेत्र की रिपोर्ट कहती है कि कोटगढ़ के निचले इलाकों में स्थित बागों में फसल का नुकसान 75 प्रतिशत तक हो सकता है, जबकि थानेदार जैसे ऊपरी क्षेत्रों में यह 50 से 60 प्रतिशत हो सकता है।
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