HPU को जारी हुए एक करोड़ रुपये का नहीं अता पता, 11 साल बाद राजभवन सचिवालय ने मांगी रिपोर्ट; पूछे 4 सवाल
शिमला स्थित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय को 2014 में वर्षा जल संचयन और शौचालयों की मरम्मत के लिए स्वीकृत एक करोड़ रुपये का हिसाब राजभवन सचिवालय ने मांगा है। 11 साल बाद भी उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं होने पर सवाल उठ रहे हैं। विजिलेंस जांच भी विफल रही। अब राजभवन ने विश्वविद्यालय प्रशासन से रिपोर्ट तलब की है और तत्कालीन सदस्य सचिव से स्पष्टीकरण मांगा है।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय परिसर व राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल। जागरण आर्काइव
चैतन्य ठाकुर, शिमला। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) के नाम पर स्वीकृत एक करोड़ रुपये के बजट पर राजभवन सचिवालय ने विवि प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। हैरानी की बात है कि अभी तक इसका यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट (यूसी) जमा ही नहीं करवाया है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बजट कहां पर खर्च हुआ है।
इसका जवाब न विश्वविद्यालय प्रशासन दे पाया है, न विजिलेंस विभाग खोज पाया और न ही उस प्रोजेक्ट का जमीनी स्तर पर कोई काम दिखाई देता है।
2014 में मंजूर हुआ था बजट
दिसंबर 2014 में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) बजट बैठक में एचपीयू के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और शौचालयों की मरम्मत के लिए एक करोड़ रुपये मंजूर हुए थे। उद्देश्य साफ था विश्वविद्यालय परिसर में जल संरक्षण को बढ़ावा देना, वर्षा जल संग्रहण संरचनाओं का निर्माण करना और छात्रों व कर्मचारियों के लिए बेहतर शौचालय सुविधा उपलब्ध करवाना।
11 साल बाद भी पैसे का हिसाब नहीं
वर्ष 2025 तक न तो यह प्रोजेक्ट धरातल पर उतरा, न ही इस राशि का यूसी सरकार या विभाग को भेजा। यानी पैसा कहां खर्च हुआ, इसका हिसाब नहीं है।
2018 में विजिलेंस ने शुरू की थी जांच
इस मामले में स्टेट विजिलेंस विभाग ने वर्ष 2018 में जांच शुरू की थी। रेन वाटर हार्वेस्टिंग सेल के तत्कालीन सदस्य से पूछताछ कर दस्तावेज मांगे गए। राशि के उपयोग का लेखा-जोखा मांगा, लेकिन पांच वर्ष बाद भी विजिलेंस न तो यह तय कर पाई कि पैसा कहां गया और न ही किसी अधिकारी पर कार्रवाई हो सकी। मामला धीरे-धीरे दबता गया। विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच के दबाव से बचने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सेल को ही भंग कर दिया था।
मामला राजभवन सचिवालय पहुंचा तो शुरू हुई हरकत
यहां पर न रेन वाटर हार्वेस्टिंग टैंक बने, न पाइपलाइन बिछी, न किसी भी विभाग को यूसी भेजा, न मरम्मत के बिल, न ठेके, न साइट रिपोर्ट, कुछ भी उपलब्ध नहीं करवाया। पूरा मामला ‘कागजों में स्वीकृति, धरातल पर शून्य’ बनकर रह गया। मामला राजभवन सचिवालय पहुंचा तो विश्वविद्यालय प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है। तत्कालीन मेंबर सेक्रेटरी के लिखित पत्र के आधार पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सेल से भी स्पष्टीकरण मांगा है। राज्यपाल सचिवालय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अभी रिपोर्ट का इंतजार है।
कुलपति की पहल, प्रकोष्ठ पुनर्जीवित करने का आदेश
एचपीयू के मौजूदा कुलपति प्रोफेसर महावीर सिंह ने विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर जल संग्रहण प्रबंधन प्रकोष्ठ को दोबारा शुरू करने के निर्देश दिए हैं। यह कदम संकेत देता है कि विश्वविद्यालय अब इस प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है। सवाल यह है कि क्या पुराने एक करोड़ रुपये का हिसाब दिए बिना नया प्रकोष्ठ शुरू करना सिर्फ लीपापोती है।
राजभवन सचिवालय ने तत्कालीन सदस्य सचिव से पूछे हैं ये सवाल
- सवाल एक : 21 अक्टूबर 2014 की अधिसूचना से बना वर्षा जल संग्रहण प्रकोष्ठ 27 अप्रैल 2021 की अधिसूचना से समाप्त कर दिया था। फिर भी आप अपने पत्रों में खुद को अभी तक प्रकोष्ठ का सदस्य सचिव क्यों लिख रहे हैं?
- सवाल दो : विश्वविद्यालय में वर्षा जल संग्रहण का काम करवाने का अधिकार कुलपति का है या आपका। इस काम में आपका क्या व्यक्तिगत हित है, जिसके कारण आप बार-बार पत्राचार कर रहे हैं?
- सवाल तीन : 19 अप्रैल 2018 को राज्य सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो शिमला में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के सामने आपने क्या बयान दिए थे?
- सवाल चार : आपकी जानकारी में वर्षा जल संग्रहण कार्य में धन के दुरुपयोग को लेकर आपके दिए बयानों के आधार पर क्या सतर्कता विभाग ने विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध कोई मामला दर्ज किया है। यदि हां तो उसकी जानकारी दें, ताकि इसे राज्यपाल (कुलाधिपति) के समक्ष रखा जा सके?

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।