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    हिमाचल: बच्चे से क्रूरता मामले में शिक्षिका की जा सकती है नौकरी, शिक्षा मंत्री ने दिए सख्ती के निर्देश, क्या कहते हैं नियम?

    By Anil Thakur Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Tue, 28 Oct 2025 05:57 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित है। हाल ही में रोहड़ू और भरमौर में शिक्षकों द्वारा छात्रों को पीटने के मामले सामने आए हैं। शिक्षा मंत्री ने ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। दोषी पाए जाने पर शिक्षकों को नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है। शिक्षा विभाग स्कूलों में सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

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    शिमला के सरकारी स्कूल में छात्र काे पीटने पर शिक्षिका की मुश्किलें बढ़ना तय है। प्रतीकात्मक फाेटो

    राज्य ब्यूरो, शिमला। हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने पर पूरी तरह से रोक है। विद्यार्थियों को मारना तो दूर चिकोटी काटना, प्रताड़ित भी नहीं किया जा सकता। स्कूल शिक्षा निदेशालय इस नियम को लेकर समय-समय पर शिक्षकों के साथ पत्राचार करता है।

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    आरटीई के तहत शारीरिक दंड पूरी तरह से प्रतिबंधित

    शिक्षा का अधिकार अधिनियम-(आरटीई) 2009 की धारा 17 (1) और (2) के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है। स्कूल शिक्षा निदेशालय की ओर से समय समय पर नियमों का हवाला देकर जिला शिक्षा उपनिदेशकों को इस बाबत सख्त निर्देश जारी किए जाते हैं। 

    कानूनी सुरक्षा के बावजूद शिक्षक पीट रहे बच्चों को

    कानूनी सुरक्षाओं के बावजूद ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें शिक्षक अभी भी शारीरिक दंड देते हैं। इसका ताजा उदाहरण शिमला जिला के रोहड़ू उपमंडल के तहत आने वाले राजकीय प्राथमिक पाठशाला गवाना है। इससे छात्रों की शारीरिक और मानसिक सेहत को खतरा हो रहा है। 

    शारीरिक दंड के दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव 

    विभाग की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार शारीरिक दंड के दीर्घकालिक हानिकारक प्रभाव होते हैं, जो अक्सर उन समस्याओं को और बढ़ा देते हैं। व्यवहार को सुधारने के बजाय, ऐसे कार्य अक्सर छात्रों में प्रतिरोध, क्रोध, सत्ता संघर्ष और विद्रोह को बढ़ाते हैं।

    क्या कहते हैं नियम

    आरटीई एक्ट 2009 के तहत छात्रों को शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न नहीं दिया जा सकता। बच्चों को पीटना, डांटना, चिकोटी काटना, घुटनों के बल बैठाना, क्लास में बंद करना, यौन शोषण और अन्य किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। नियम तोड़ने वाले शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। कुछ मामलों में, किशोर न्याय अधिनियम के तहत, शिक्षक को सजा भी हो सकती है।

    केस स्टडी

    शिक्षक पर बच्चे को पीटने का आरोप, कान का पर्दा फटा

    उपमंडल भरमौर के तहत आते एक सरकारी स्कूल में शिक्षक पर तीसरी कक्षा के आठ साल के बच्चे को पीटने का आरोप लगा है। स्वजन का आरोप है कि शिक्षक ने बच्चों को इस कदर पीटा है कि उसके कान का पर्दा फट गया और उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। वर्तमान में बच्चा मेडिकल कॉलेज चंबा में उपचाराधीन है। साथ ही परिजनों ने इसकी शिकायत पुलिस में भी की है। इस मामले की पुलिस भी जांच कर रही है।

    हमीरपुर में शारीरिक शिक्षक ने पीटे थे छात्र

    करीब एक माह पूर्व हमीरपुर के एक सरकारी स्कूल के शारीरिक शिक्षक पर छात्रों को पीटने का आरोप है। अभिभावकों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है जिसमें कहा गया है कि शिक्षक ने बच्चों से टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए अभिभावकों को साथ न लाने पर दुर्व्यवहार किया। एक छात्र को आधे घंटे तक मुर्गा बनाकर रखा गया। सदर थाना हमीरपुर में शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज करवाया।

    यह हो सकती है सजा

    शिक्षा विभाग ने आरोपित शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। अब उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी है। शिक्षिका को अपना पक्ष रखने को कहा जाएगा। इसमें अगली कार्रवाई विभागीय चार्जशीट होगी। इसमें सख्त सजा का प्रविधान है। उसे नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है। इंक्रीमेंट रोकने जैसी सजा का प्रविधान भी है।

    निलंबन किया, एफआईआर भी होगी दर्ज : शिक्षा मंत्री

    शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने कहा कि आरोपित शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया है। विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। यह अमानवीय व्यवहार है, जिसे कतई सहन नहीं किया जा सकता। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज की जाएगी। इसके निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

    स्कूलों में सुरक्षित वातावरण बनाना संस्थान प्रमुख की जिम्मेदारी : निदेशक

    निदेशक स्कूल शिक्षा आशीष कोहली ने बताया कि शारीरिक दंड बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक असर डालते हैं। इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य और भी कमजोर हो जाता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों में सुक्षित और अनुकूल शिक्षण वातावरण बनाए रखने की जिम्मेदारी इन संस्थानों के प्रमुखों की है। उन्हें इस बारे में बताया भी गया है व स्कूल शिक्षा निदेशालय समय-समय पर इसको लेकर पत्राचार भी उनके साथ करता है। 

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    बीएड, डीएलएड कोर्सेज में ये चीजें पढ़ाई भी जाती हैं। बावजूद इसके ऐसे मामलों की पूर्नावृति शिक्षकों द्वारा करना पूरी तरह से गलत है। इस मामले में शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। आगामी कार्रवाई अमल में लाई जा रही है।