शिमला के मंदिर में 54 साल बाद हो रहे शांत महायज्ञ पर खर्च होंगे 80 करोड़ रुपये, आखिर क्यों हो रहा इतना बड़ा आयोजन?
शिमला के जुब्बल में 54 साल बाद देवता नागेश्वर महाराज का शांत महायज्ञ शुरू हुआ। इस आयोजन में लाखों श्रद्धालु शामिल होंगे और लगभग 80 करोड़ रुपये खर्च हो ...और पढ़ें

जिला शिमला का नागेश्वर महाराज का मंदिर। यहां आज से शांत महायज्ञ शुरू हो गया। जागरण
दशमी रावत, रोहड़ू (शिमला)। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के जुब्बल उपमंडल के झड़ग गांव में 54 वर्ष बाद आज से देवता साहिब नागेश्वर महाराज का शांत महायज्ञ आरंभ हो गया। छह दिसंबर तक होने वाले महायज्ञ में लाखों श्रद्धालु, देवलू व मेहमान शामिल होंगे। इससे पहले यह महायज्ञ 1971 में हुआ था।
डेढ़ करोड़ रुपये से बने इस मंदिर में तीन दिन तक होने वाले शांत महायज्ञ के आयोजन पर लगभग 80 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि खर्च होगी।
मंदिर कमेटी के मोतमीन राय लाल मेहता ने बताया कि पारसा के परशुराम के साथ लगभग 500 देवलू शांत महायज्ञ में पहुंचेंगे। हाटकोटी की घड़ी के साथ लगभग पांच हजार बैठू महायज्ञ में शामिल होंगे।
11 टोलियों में 500-500 लोग होंगे
इसके बाद छौहारा, मंडलगढ़, स्पैल, रोहडू व नावर क्षेत्र से 11 टोलियां महायज्ञ में शामिल होंगी। 11 टोलियों में छौहारा क्षेत्र से मसली, टोडसा, नंदला व धगोली, स्पैल वैली से खशकंडी, मंडलगढ़ से भमनोली व गडई, रोहड़ू से चिऊनी व पाऊली और नावर क्षेत्र से शेखल व फ्रीऊंकोटी शामिल रहेंगी। सभी 11 टोलियों के साथ लगभग 500-500 देवलू शामिल रहेंगे।
इन देवताओं के साथ पांच और आठ हजार देवलू पहुंचेंगे
तंदाली के देवता धौंलू महाराज के साथ भी लगभग पांच हजार देवलू पहुंचेंगे। छूपाड़ी के देवता गुडारू महाराज जिन्हें घिघाईक खूंद के नाम से जाना जाता है, उनके साथ लगभग आठ हजार देवलू महायज्ञ में शामिल होंगे।
ब्रह्म मुहूर्त में झड़ग गांव की जागा माता को जगाया
गत दिवस मंढोल के झौहटा खूंद के साथ आए लगभग 100 देवलू शाम पांच बजे झड़ग में देवता नागेश्वर महाराज के मंदिर में पहुंचे। मंढोल के झौहटा खूंद ने बुधवार सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में झड़ग गांव की जागा माता को जगाया।
लोगों ने की तैयारी, ये देवता शामिल होंगे
शिल्ली तावली रियासत के लोगों ने अपने घरों में मेहमानों की आवभगत के लिए विशेष तैयारियां की हैं। महायज्ञ में जागा माता अढाल, मंढोल का झौऊटा खूंद, शलान का बकरोदा खूंद, हाटकोटी की घड़ी (मां हाटेश्वरी) व पारसा के परशुराम विशेष रूप से शामिल रहेंगे।
तीन दिन तक निभाई जाएंगी ये रस्में
राय लाल मेहता ने बताया कि पहले दिन संघेडा पर रास मंडप (धूल जपना) की रस्म तंदाली के धौंलू देवता निभाएंगे। दूसरे दिन शिखा फेर की रस्म झड़ग खूंद निभाएगा। अंतिम व तीसरे दिन उछड़-पाछड़ के दौरान दोनों देवता, पारसा का परशुराम, हाटकोटी की घड़ी एवं सभी 11 टोलियां अपने-अपने गांव एवं मंदिरों के लिए प्रस्थान करेंगे। महायज्ञ के आयोजन के लिए क्षेत्र के लोगों एवं मंदिर कमेटी की ओर से करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
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यह है शांत महायज्ञ का महत्व
ऐतिहासिक शांत महायज्ञ बठोलीगड़ क्षेत्र के डिस्वाणी गांव से शुरू हुआ है। शांत महायज्ञ पारंपरिक धार्मिक आयोजन है। यह प्रदेश की प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है। यह महायज्ञ देवता नागेश्वर महाराज के सम्मान में आयोजित किया जाता है¹। शांत महायज्ञ का उद्देश्य देवता नागेश्वर महाराज की शक्ति को शांत करना और क्षेत्र की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करना है।

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