हिमाचल में भिक्षावृति पर हाई कोर्ट सख्त, सरकार से मांगा शपथ पत्र, DGP सहित इन विभागों से जवाब तलब
Himachal Pradesh High Court हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने भिक्षावृत्ति पर सख्ती दिखाते हुए सरकार डीजीपी और अल्पसंख्यक मामलों के निदेशालय से जवाब माँगा है। अदालत ने प्रदेश में भीख मांगने वाले बच्चों की दयनीय हालत पर चिंता जताई और सरकार को शपथपत्र के माध्यम से भिखारियों की जमीनी हकीकत बताने का आदेश दिया।

विधि संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh High Court, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदेश में भिक्षावृत्ति रोकने और भीख मांगने वाले बच्चों की दयनीय स्थिति से जुड़े मामले में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक मामले एवं विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों के सशक्तीकरण निदेशालय को पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने इन नए प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जनहित में उठाए मुद्दे पर जवाब तलब किया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश दिए।
भिखारियों की जमीनी हकीकत से बताने का था आदेश
कोर्ट ने सरकार को शपथपत्र के माध्यम से प्रदेश में भिखारियों की जमीनी हकीकत से अवगत करवाने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने 43 साल पहले बनाए भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के प्रविधानों पर अमल को लेकर दायर स्टेटस रिपोर्ट पर असंतुष्ट होते हुए सरकार को भिखारियों की जमीनी स्थिति कोर्ट के समक्ष रखने के आदेश दिए थे।
भिक्षा मांगने पर है सजा का प्रविधान
प्रदेश में 1979 से भिक्षावृत्ति रोकने के लिए भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम लागू है। इस अधिनियम के तहत भिक्षा मांगने वालों, भिक्षा मंगवाने वालों और भिक्षा मांगने वाले पर आश्रितों को सजा का प्रविधान किया है। सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षा मांगने को अपराध बनाते हुए दोषी को अधिकतम तीन माह की सजा का प्रविधान है।
पुलिस को प्रदान हैं शक्तियां
पुलिस को भिक्षावृत्ति रोकने के लिए शक्तियां प्रदान की गई हैं। त्योहार, शादी अथवा नवजात शिशुओं के जन्म पर सार्वजनिक स्थानों सहित निजी परिसर में भिक्षा के रूप में उगाही करने को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया है।
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शिमला में जगह-जगह भीख मांगते हैं बच्चे
जनहित याचिका में बताया है कि शिमला शहर में जगह-जगह भिखारी नजर आ जाते हैं। प्रार्थी ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुपालन के बारे में निदेशक महिला एवं बाल विकास को प्रतिवेदन भेजा था। मगर उनकी ओर से इस बारे में कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया। 12 से 18 महीने के बच्चों को फुटपाथ पर बिना घर के रिज मैदान, लक्कड़ बाजार, लोअर बाजार, सभी बस स्टैंड और अन्य उपनगरों में देखा जा सकता है।
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