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    Himachal: मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना के सेवाविस्तार पर हाई कोर्ट सख्त, पद के दुरुपयोग का है आरोप; सरकार से संपूर्ण रिकॉर्ड तलब

    Updated: Wed, 13 Aug 2025 03:55 PM (IST)

    Himachal Pradesh High Court हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार देने के मामले में केंद्र और राज्य सरकार से रिकॉर्ड मांगा है। कोर्ट ने पूछा कि जनहित में क्या कारण थे जिनसे सक्सेना को सेवा विस्तार दिया गया। याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने सेवा विस्तार के आदेश को रद्द करने की मांग की है

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    हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना व शिमला स्थित हाई कोर्ट परिसर।

    विधि संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh High Court, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को दिए सेवा विस्तार का औचित्य जानने के लिए केंद्र व राज्य सरकार से संपूर्ण रिकॉर्ड तलब किया है। केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि जनहित को देखते हुए प्रबोध सक्सेना को सेवाविस्तार देने के राज्य सरकार के आग्रह को स्वीकार किया गया।

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    मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि ऐसे क्या कारण और कौन सा जनहित था जिसे पूरा करने के लिए प्रबोध सक्सेना को सेवाविस्तार दिया गया। कोर्ट ने केन्द्र सरकार की उस अथॉरिटी के बारे में भी जानना चाहा जिसने सेवाविस्तार प्रदान करने की अनुमति दी। मामले की सुनवाई 3 सितंबर को निर्धारित की गई है।

    याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि मुख्य सचिव के रूप में प्रबोध सक्सेना को छह महीने का सेवा विस्तार प्रदान करने वाले 28 मार्च 2025 के आदेश को रद करने के आदेश जारी किए जाएं।

    प्रार्थी की ओर से कोर्ट के समक्ष रखे तथ्यों के अनुसार 21 अक्टूबर 2019 को विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम राउज एवेन्यू कोर्ट, नई दिल्ली में प्रबोध सक्सेना के खिलाफ दायर सीबीआई आरोपपत्र का संज्ञान लिया गया है। प्रार्थी का कहना है कि 23 जनवरी 2025 को सीबीआई ने पत्र जारी कर इस बात की पुष्टि की है कि प्रबोध सक्सेना के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया है, और आपराधिक मुकदमा लंबित है।

    दागी होने के बावजूद 28 मार्च 2025 को भारत सरकार, कार्मिक मंत्रालय ने प्रबोध सक्सेना को 30 सितंबर 2025 तक मुख्य सचिव के रूप में छह महीने का विस्तार देने की अनुमति दे दी। प्रार्थी का आरोप है कि आपराधिक मुकदमा लंबित होने के बावजूद, प्रबोध सक्सेना का नाम संदिग्ध सत्यनिष्ठा की सूची में शामिल नहीं किया गया, जो कि संविधान के अनुच्छेद 123 का उल्लंघन है।

    अधिकारिक पद के दुरुपयोग का आरोप

    आरोप है कि प्रबोध सक्सेना के सेवा विस्तार को मंजूरी देते समय केंद्र सरकार के समक्ष पूरी सतर्कता रिपोर्ट नहीं रखी गई थी। प्रार्थी का कहना है कि प्रशासनिक सुधारों पर संसदीय समिति ने भ्रष्टाचार की जांच का सामना कर रहे नौकरशाहों को बचाने के लिए सेवा विस्तार के दुरुपयोग के बारे में चिंता जताई है। यह आरोप लगाया गया है कि मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (वित्त) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रबोध सक्सेना ने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया।

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