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    हिमाचल हाई कोर्ट: व्यक्ति विशेष के लिए अध्यादेश लाकर बढ़ाया मेयर का कार्यकाल, याचिकाकर्ता के आरोपों के बाद मिला अतिरिक्त समय

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Wed, 10 Dec 2025 01:21 PM (IST)

    शिमला हाई कोर्ट में मेयर के कार्यकाल को पांच वर्ष करने के विरुद्ध याचिका पर सुनवाई 30 दिसंबर तक टली। सरकार ने विधानसभा में पारित अध्यादेश पेश किया, जि ...और पढ़ें

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    हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का शिमला स्थित परिसर। जागरण आर्काइव

    विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में नगर निगम शिमला के मेयर के कार्यकाल को पांच वर्ष करने के विरुद्ध दायर जनहित याचिका पर सुनवाई 30 दिसंबर के लिए टल गई है। सरकार की ओर से बताया गया कि मेयर का कार्यकाल बढ़ाने को लेकर लाया गया अध्यादेश विधानसभा के समक्ष रखा गया था और इसे विधानसभा से पारित कर दिया गया है। सरकार ने कहा है कि मौजूदा परिस्थिति में अब यह रिट याचिका मान्य नहीं रह गई है। 

    इस पर याचिकाकर्ता अंजली सोनी वर्मा की ओर से बताया गया कि अभी विधानसभा से पारित संशोधन को राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है अतः स्थिति बदली नहीं है। इसके बाद प्रतिवादियों की ओर से याचिका का जवाब देने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की गई जिसे स्वीकारते हुए कोर्ट ने अगली सुनवाई 30 दिसंबर को निर्धारित करने के आदेश जारी किए हैं। 

    इसी मामले में पार्षद आशा शर्मा, कमलेश मेहता और सरोज ठाकुर ने याचिकाकर्ता के रूप में वादी बनाने का आवेदन किया था जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।

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    बनाए हैं तीन प्रतिवादी

    मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ के समक्ष इस याचिका की सुनवाई हुई। जनहित याचिका के माध्यम से सरकार द्वारा इस बाबत लाए गए अध्यादेश को चुनौती दी गई है। अधिवक्ता अंजली सोनी वर्मा ने सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए राज्य सरकार के शहरी विभाग सहित राज्य निर्वाचन आयोग व महापौर सुरेंद्र चौहान को प्रतिवादी बनाया है।

    व्यक्ति विशेष के लिए अध्यादेश लाने का आरोप

    याचिकाकर्ता का आरोप है कि प्रदेश सरकार ने एक व्यक्ति विशेष को गैरकानूनी लाभ पहुंचाने के इरादे से अध्यादेश लाया। प्रार्थी का कहना है कि अध्यादेश आपातकालीन परिस्थितियों में लाया जाता है। 

    महिला को मिलना चाहिए था चयनित होने का मौका 

    मौजूदा मेयर के कार्यकाल की समाप्ति पर किसी पात्र महिला को मेयर पद के लिए चयनित होने का मौका दिया जाना चाहिए था। आरोप लगाया गया है कि सरकार ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है इसलिए इस अध्यादेश को रद किया जाना चाहिए।

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