Himachal High Court: एक ही तरह के मामलों में बार-बार अपील खेदजनक, हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को दी कड़ी हिदायत
Himachal Pradesh High Court हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अनावश्यक अपीलें दायर करने पर फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि बार-बार अपील करने से गरीबों का उत्पीड़न होता है और न्यायालयों पर बोझ बढ़ता है। नियमितीकरण के एक मामले में सरकार की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने 2011 की मुकदमा नीति का पालन करने की हिदायत दी

विधि संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh High Court, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से एक ही तरह के मामलों में बार-बार अपील करने को खेदजनक बताया है। कोर्ट ने कहा कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों का अनुचित उत्पीड़न तो होता ही है, साथ ही न्यायालयों पर अनुचित काम का बोझ भी बढ़ता है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर व न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने नियमितीकरण से जुड़े मामले राज्य सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए उपरोक्त टिप्पणियां कीं।
अपील में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी गेजम राम जुलाई 1971 से बागवानी विभाग में दैनिक वेतनभोगी ‘बेलदार' के रूप में कार्यरत था और वर्ष 1994 से उसने हर साल 240 दिनों के हिसाब से सेवा पूरी की। यद्यपि उसकी सेवाओं को लागू नीति के तहत 2006 में नियमित कर दिया गया था फिर भी उसने 8 साल की निरंतर सेवा पूरी करने की तिथि से नियमितीकरण की मांग की।
राकेश कुमार बनाम राज्य सरकार के फैसले का हवाला देते हुए प्रार्थी ने पिछली तारीख से वर्ष 2011 में एक रिट दायर की, जिसका निपटारा उसके मामले पर विचार करने के निर्देश के साथ राज्य सरकार को भेजा गया। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने राकेश कुमार मामले में दिए गए फैसले को बरकरार रखा और 2015 में राज्य की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया।
इसके बावजूद विभाग ने प्रार्थी के दावे को खारिज कर दिया और विभाग में वर्क चार्ज स्टेटस की व्यवस्था न होने का हवाला दिया। इस बीच तत्कालीन राज्य प्रशासनिक प्राधिकरण ने वर्ष 2016 में राज्य सरकार के आदेशों को खारिज कर प्रार्थी के दावे पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया। हालांकि विभाग ने उसके मामले में कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे प्रार्थी को अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी।
वर्ष 2020 में राज्य प्रशासनिक प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई। जिसका इस कारण निपटारा कर दिया कि 2023 में प्राधिकरण के फैसले की आंशिक अनुपालना हुई। बाद में प्रार्थी ने अवमानना याचिका को पुनः चलाने के लिए हाई कोर्ट में आवेदन दायर किया।
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प्रार्थी को 01.01.2002 से वर्क चार्ज स्टेटस दे दिया गया, मगर वित्तीय लाभ अदा नहीं हुए। बागवानी विभाग के दो बड़े अधिकारियों को एकल पीठ ने कोर्ट में उपस्थित रहने का आदेश पारित किया। जिसे उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष अपील के माध्यम से यह कहकर चुनौती दी थी कि उक्त मामले को लेकर दोनों अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं बनती।
2011 की मुकद्दमा नीति का किया जा रहा उल्लंघन
उच्च न्यायालय ने पाया कि संबंधित अधिकारियों ने आदेशों की अवहेलना की, जिस कारण राज्य सरकार ने अपील दायर की। उच्च न्यायालय ने इसे सुनवाई योग्य न करार देते हुए खारिज कर दिया। न्यायालय ने चिंता व्यक्त की कि राज्य की 2011 की ‘मुकदमा नीति' का उल्लंघन करते हुए इसी तरह की अपीलें बार-बार दायर की जा रही हैं, जिससे अनावश्यक देरी और उत्पीड़न हो रहा है। एक मामले में तो राज्य सरकार को 20 लाख रुपये का जुर्माना तक लग चुका है। खंडपीठ ने हालांकि इस बाबत जुर्माना लगाने से परहेज किया, लेकिन राज्य सरकार को इस तरह का आचरण दोबारा न करने की हिदायत दी।
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