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    Himachal: भूगर्भीय सर्वेक्षण के बिना निर्माण बन रहा आपदा का बड़ा कारण, विकास योजनाओं में शामिल होंगे भूविज्ञानी

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 02:23 PM (IST)

    Himachal Pradesh Disaster हिमाचल प्रदेश में निर्माण से पहले भूगर्भीय सर्वेक्षण अनिवार्य करने की तैयारी है। हाल की घटनाओं में लगातार बारिश और भूस्खलन से हुए नुकसान के बाद यह निर्णय लिया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार भवन निर्माण सामग्री के कारण भूमि पर बोझ बढ़ रहा है जबकि भार वहन क्षमता का आकलन नहीं किया जा रहा है।

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    हमीरपुर जिला के चबूतरा में भूमि धंसने से गिरा मकान।

    यादवेन्द्र शर्मा, शिमला। Himachal Pradesh Disaster, हम किसी भी सामान को टांगने या उठाने के लिए व्यक्ति या वस्तु की भार उठाने की क्षमता की जांच करते हैं। जिस स्थान पर भवन बनना है या अन्य विकास कार्य होने हैं, वहां की भूगर्भीय स्थिति का आम व्यक्ति को पता नहीं होता है। प्रदेश में लगातार हो रही बरसातों और गांव के गांव धंसने के बाद भूगर्भीय सर्वेक्षण किया जाएगा।

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    इस दिशा में कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। भवनों के निर्माण को लेकर भूगर्भीय रिपोर्ट को अनिवार्य करने की तैयारी है। हालांकि, इस दिशा में सभी तथ्यों की गहन जांच की जा रही है। जहां निर्माण कार्य होना है, वहां चटटानों की स्थिति क्या है, यह जानना आवश्यक है, क्या वहां खोखली या दरारों वाली चट्टानें हैं या केवल डंपिंग के लिए मिट्टी ही डाली गई है।

    जिस स्थान पर हम भवन बनाते हैं, उसका पता ही नहीं करते कि वहां भवन बनाने की क्षमता है या नहीं। निर्धारित नियमों के अनुसार उसकी भार सहने की क्षमता की जांच नहीं होती। यह अलग बात है कि सुरंगों और बड़ी परियोजनाओं में इस संबंध में जांच होती है, लेकिन इसका सही आकलन फोरलेन के कारण हो रहे नुकसान और लगातार भूमि कटाव से लगाया जा सकता है।

    अधिकतर प्रोजेक्ट बिना भूगर्भीय जांच स्थापित

    हिमाचल प्रदेश की करीब 72 लाख की जनसंख्या के अलावा बाहर से आने वाले पर्यटकों और नौकरी पेशा करने वालों के लिए लगातार भवन निर्माण हो रहे हैं। दिलचस्प यह कि आज तक प्रदेश में किसी भी स्थान पर वहां की भूगर्भीय जांच केवल गिने-चुने प्रोजेक्ट्स को छोड़कर नहीं की गई है।

    तीन वर्ष में हुआ भारी नुकसान

    बीते तीन वर्षों से लगातार हो रही वर्षा और भूस्खलन के कारण सैकड़ों जानों का नुकसान और हजारों करोड़ का नुकसान हो रहा है, जिससे यह सवाल उठने लगा है कि आखिर गांव के गांव क्यों धंस रहे हैं।

    आखिर क्यों बढ़ रहा है बोझ  

    भवन निर्माण के लिए पत्थर, रेत, बजरी, सीमेंट और लकड़ी बाहर से लाई जा रही है। जबकि भवन बनाने के लिए जो खुदाई की जा रही है, वह मिट्टी वहीं डाली जा रही है। ऐसे में उस स्थान पर लगातार बोझ बढ़ रहा है, जबकि उसकी भूगर्भीय क्षमता का कभी आकलन ही नहीं हुआ।

    निर्माण के लिए केवल योजना में क्षेत्रों का निर्धारण

    प्रदेश में योजना क्षेत्र के लिए केवल हरित जोन, कोर एरिया, ओपन एरिया के आधार प्लानिंग हुई। भू विज्ञानिकों को इसमें शामिल ही नहीं किया गया कि आखिर सुरक्षित निर्माण कैसे हो। भवन को पास करने से पूर्व स्ट्रक्चर स्टेबिलिटी रिपोर्ट आवश्यक है।

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    जमीन की स्थिति खराब

    इस बरसात में प्रदेश में कई गांव धंस गए और ज़मीन की स्थिति खराब देखी जा रही है। भवन निर्माण को लेकर भूगर्भीय रिपोर्ट और सर्वेक्षण करवाने की योजना है जिससे वहां की स्थिति को जांचा जा सके।  

    -राजेश धर्माणी, नगर एवं ग्राम नियोजन मंत्री।

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    जांच होना आवश्यक 

    हिमाचल प्रदेश में पहाड़ कमजोर हैं, ऐसी बात नहीं है। ये अवश्य देखा जाना जरूरी है कि चट्टानें किस तरह की हैं। कहीं कमजोर और दरारों वाली तो नहीं। उनकी क्षमता क्या है, इसकी जांच होना आवश्यक है।  

    -एसएस रंधावा, सेवानिवृत्त वरिष्ठ विज्ञानी, पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग।  

    आज तक प्रदेश में किसी भी स्थान को लेकर वहां की भार वहन की क्षमता की जांच ही नहीं हुई है। जो भी योजनाएं बनती हैं, उनमें भूवैज्ञानिकों को शामिल ही नहीं किया जाता। भवनों के निर्माण के अलावा सड़कों पर कोलतार बिछाने से लगातार उस स्थान पर भार बढ़ रहा है।  

    -टिकेंद्र पंवर, पूर्व उपमहापौर शिमला व विशेषज्ञ, केंद्रीय शहरी विकास।