...तो ब्यास-सतलुज में रेत-बजरी का बढ़ता बोझ तबाही का कारण, कितने फीट बढ़ गया नदियों का धरातल, क्या हैं पाबंदियां?
Himachal Pradesh Disaster हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा के मुख्य कारणों में से एक है नदियों में रेत और बजरी का जमा होना। ब्यास और सतलुज जैसी नदियों में हर साल पांच से सात फीट तक रेत जमा हो रही है जिससे नदियों का तल ऊपर उठ रहा है। खनन विंग के अनुसार हर साल आठ लाख करोड़ टन खनिज जमा होता है।

प्रकाश भारद्वाज, शिमला। देवभूमि प्राकृतिक आपदा के गंभीर जख्मों से कराह रही है। आसमान फट रहा है और उफनती नदियां, नाले व खड्डें खेत-खलिहानों को निगल रहे हैं। मानसून सीजन के दौरान ब्यास, सतलुज, रावी सहित अन्य नदियों में हर वर्ष पांच से सात फीट रेत, बजरी व पत्थर जमा होते जा रहे हैं।
वन संरक्षण अधिनियम की पाबंदियों के कारण इन नदियों से इसे निकाला नहीं जा सकता। इसका परिणाम यह है कि नदियों का तल हर साल रेत और बजरी के जमा होने से धरातल के बराबर होता जा रहा है।
उद्योग विभाग के खनन विंग के आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष आठ लाख करोड़ टन खनिज बहकर जमा होता है, जबकि एक लाख करोड़ टन खनिज ही निकाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त 20 से 25 लाख टन रेत-बजरी चोरी हो रहे हैं। उद्योग विभाग ने इस वर्ष खनन गतिविधियों से 360 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया है।
केस स्टडी
- कोलडैम में जलभराव के कारण सुन्नी क्षेत्र में पानी का स्थायी रूप से जमा रहना खतरनाक हो चुका है। पांच वर्ष में यहां 20 से 25 फीट तक रेत और बजरी जमा हो चुके हैं।
- बक्कर खड्ड, मंडी और हमीरपुर जिलों से गुजरती है। इसमें मंडी में रेत और बजरी निकालने पर प्रतिबंध है, जबकि हमीरपुर में कोई पाबंदी नहीं है।
- इसी तरह सीर खड्ड में भी बिलासपुर में रेत और बजरी को कोई हाथ नहीं लगा सकता, जबकि हमीरपुर में कोई रोक नहीं है।
वन कानून की बाधा, 500 लीज में से 232 नीलाम हो सकी
500 लीज में से केवल 232 की नीलामी वन कानून के कारण संभव हो सकी। इनमें से औपचारिकताएं पूरी होने के बाद केवल 30-35 लीज ही क्रियान्वित हो पाई हैं। प्रदेश सरकार ने ब्यास नदी पर कुल्लू और मंडी में 40-40 साइट दी थीं, लेकिन वन संबंधी औपचारिकताएं पूरी न होने के कारण नदियों में जमा रेत और बजरी को निकाला नहीं जा सका। आवेदनकर्ताओं को वन और पर्यावरण संबंधी स्वीकृतियां केंद्रीय मंत्रालयों से स्वयं प्राप्त करनी होती हैं। प्रदेश के आधे जिलों में वन संरक्षण अधिनियम लागू है, जबकि शेष जिलों में यह लागू नहीं है।
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तीन जिलों में वन संरक्षण अधिनियम कानून
प्राकृतिक आपदा के कई कारण हैं, लेकिन एक कारण नदियों, नालों व खड्डों में जमा हो रहे रेत, बजरी और पत्थर हैं, जिसे निकालने पर प्रतिबंध है। आठ लाख करोड़ टन खनिज में से एक लाख करोड़ टन ही निकाला जाता है। शेष रेत, बजरी और पत्थर नदी, नालों की गहराई को समाप्त करते जा रहे हैं। नदियों, नालों व खड्डों के बीच से रेत, बजरी और पत्थर निकालने की आवश्यकता है। समस्या यह है कि कुल्लू, मंडी, शिमला जिलों में वन संरक्षण अधिनियम कानून लगा हुआ है, जबकि हमीरपुर व कांगड़ा, ऊना जिलों में ये कानून नहीं है। -हर्षवर्धन चौहान, उद्योग मंत्री।
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