Himachal News: युवती ने 15 साल बाद खाया खाना, चमियाणा अस्पताल के विशेषज्ञों ने दी नई जिंदगी; खाने की नली में फंसा था सिक्का
शिमला के चमियाणा अस्पताल में डॉक्टरों ने एक युवती के खाने की नली से सिक्का निकालकर उसे 15 साल बाद खाना खिलाने में सफलता पाई। युवती पिछले 15 सालों से खाने में असमर्थ थी, क्योंकि उसकी खाने की नली में सिक्का फंसा हुआ था। विशेषज्ञों की टीम ने ऑपरेशन करके सिक्के को सफलतापूर्वक निकाल दिया, जिससे युवती और उसके परिवार को नई उम्मीद मिली है। अस्पताल प्रशासन ने डॉक्टरों की सराहना की है।

युवती के खाने की नली में फंसा सिक्का व ऑपरेशन करने वाले डाॅक्टर बृज शर्मा।
चमियाणा अस्पताल के डाक्टरों ने खाने की नली का किया आपरेशन
- आठ साल की आयु में गलती से निगल लिया था सिक्का
- अभी तक खा रही थी तरल पदार्थ, अब खा सकेगी खाना
जागरण संवाददाता, शिमला। अटल इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सुपर स्पेशिलिटीज चमियाणा के डाक्टरों के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है। अस्पताल के डाक्टरों ने 15 साल से एक युवती के खाने की नली में फंसे सिक्के को निकाला है। इससे अब युवती खाना खा सकेगी।
यहां बता दें कि यह युवती जब आठ साल की थी तो उसके खाने की नली में सिक्का फंस गया था। युवती के स्वजन ने देशभर के विभिन्न अस्पतालों में बच्ची के इलाज के लिए चक्कर लगाए, लेकिन राहत नहीं मिली।
अब चमियाणा अस्पताल में उसका सफल आपरेशन किया गया है। युवती को कई वर्षों से डिस्फेजिया (निगलने में कठिनाई) की शिकायत थी।
खाना नहीं खा पाती थी बच्ची
युवती के स्वजन का कहना है कि खाने की नली में सिक्का फंसने के बाद बेटी खाना नहीं खा पाती थी। अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी जब राहत नहीं मिली तो उसने अपनी आदत को बदला को तरल पदार्थ खाने शुरू किए। तब से आज तक तरल पदार्थों से जीवनयापन किया।
अब चमियाणा अस्पताल के गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग की टीम ने बेटी के गले से सिक्का निकाला है, जिससे वह अब खाना खा सकेगी।
तब दूसरी कक्षा में पढ़ती थी पीड़िता
युवती जब दूसरी कक्षा में पढ़ती थी तो उसने गलती से एक सिक्का निगल लिया था। विभाग के विशेषज्ञ और अस्पताल के प्रिंसिपल डा. बृज शर्मा, डा. राजेश शर्मा, डा. विशाल बोध और डा. आशीष चौहान की टीम ने इस आपरेशन को किया। अब यह 23 वर्षीय युवती भोजन की नली (फूड पाइप) से बिना किसी परेशानी के खाना खा सकेगी।
यह जटिल आपरेशन था। सिक्का नली के एक ऐसे हिस्से में फंसा था। वह झटके से बाहर नहीं निकल पा रहा था। गैस्ट्रोएंटरोलाजी विभाग की टीम ने उन्नत एंडोस्कोपिक तकनीक की मदद से सिक्का निकाल दिया है। अब मरीज की हालत स्थिर है। मरीज की खाने की नली पूरी तरह से स्वस्थ है, इसमें संक्रमण भी नहीं दिख रहा है।
-डा. बृज शर्मा, विभाग विशेषज्ञ एवं प्रिंसिपल चमियाणा अस्पताल।
यह होती है एंडोस्कोपिक तकनीक
एंडोस्कोपिक तकनीक रोगों के निदान और उपचार में सहायक होती है। इस तकनीक में एक पतली ट्यूब, जिसे एंडोस्कोप कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। यह शरीर के अंदर जाकर विभिन्न अंगों की जांच करती है। यह प्रक्रिया कम आक्रामक और मरीजों के लिए कम दर्दनाक होती है। एंडोस्कोपिक तकनीक का उपयोग गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, श्वसन और अन्य अंगों की बीमारियों के निदान में किया जाता है। इसके माध्यम से डाक्टर सीधे दृश्यता प्राप्त करते हैं, जिससे सटीकता में वृद्धि होती है। इस तकनीक स तेजी से रिकवरी होती है। यह पारंपरिक सर्जरी की तुलना में कम जोखिम भरा होता है।
यह भी पढ़ें: हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष के साथ नया मंत्री बनाने को लेकर भी चर्चा तेज, एक की गई कुर्सी तो 2 विधायकों को मिलेगा मौका
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।