दिवाली पर विभाग के भरोसे न रहें, देख-परख कर ही खाएं मिठाई, जंग खा रही फूड टेस्टिंग वैन
हिमाचल में त्योहारी सीजन में मिठाई की गुणवत्ता जांच एक चुनौती है। स्टाफ की कमी से मिलावटी मिठाई की बिक्री रोकना मुश्किल है। 4.50 करोड़ की मोबाइल वैन बिना बजट के बेकार हैं। सैंपलों की रिपोर्ट 15-25 दिन में आती है, तब तक मिलावटी खाद्य पदार्थ खा लिए जाते हैं। केंद्र से 10 करोड़ की मांग की गई, पर राशि नहीं मिली। स्वास्थ्य विभाग पर निर्भर न रहें, मिठाई जांच कर खाएं।

हिमाचल में दिवाली पर मिठाई की जांच के लिए मोबाइल फूड वैन नहीं चल रही हैं।
यादवेन्द्र शर्माl शिमला। त्योहारी सीजन में मिठाई और खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच हिमाचल में गंभीर मुद्दा बन गई है। जब स्टाफ की कमी हो, तो यह प्रश्न उठता है कि मिठाई की जांच कैसे की जाएगी? वर्तमान में केवल एक अधिकारी एक जिले में सैंपल ले सकता है, जिससे मिलावटी मिठाई और खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाना मुश्किल हो रहा है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए 4.50 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक 10 मोबाइल फूड टेस्टिंग वैन खरीदी गई थीं। लेकिन, ये वैन बिना बजट और कर्मचारियों के सफेद हाथी बनकर रह गई हैं। संकेत साफ है कि स्वास्थ्य विभाग के भरोसे न रहें, देख परखकर ही मिठाई खाएं।
15 से 25 दिन बाद आती है रिपोर्ट
सामान्यतः, जो सैंपल लिए जाते हैं, उनकी रिपोर्ट आने में 15 से 25 दिन लग जाते हैं, तब तक उपभोक्ता मिलावटी खाद्य पदार्थों का सेवन कर चुके होते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मोबाइल फूड टेस्टिंग वैन के माध्यम से त्वरित सैंपलिंग की योजना बनाई गई थी, जिसके लिए केंद्र सरकार के साथ एमओयू के तहत 10 करोड़ रुपये की मांग की गई थी, लेकिन यह राशि अप्रैल से अब तक नहीं आई है, जिससे इन वैन का उपयोग नहीं हो पा रहा है।
फील्ड में मौके पर नहीं हो रही सैंपल की जांच
प्रदेश में एक भी मोबाइल फूड टेस्टिंग वैन के सक्रिय न होने से सैंपल की जांच नहीं हो रही है। केंद्र के साथ हुए करार के अनुसार, प्रत्येक वैन को तीन माह में लगभग 1200 सैंपल लेने होते हैं। इसके अलावा, कानूनी सैंपल अलग से लिए जाते हैं, जिन्हें प्रदेश की एकमात्र खाद्य पदार्थ जांच प्रयोगशाला कंडाघाट भेजा जाता है।
केंद्र से मिलने वाली राशि का उपयोग सैंपलिंग के साथ-साथ आउटसोर्स के तहत कर्मचारियों के वेतन के लिए भी किया जाता है। इन वैन में तीन कर्मचारी (चालक, सैंपल लेने वाला अधिकारी और सहायक) नियुक्त किए जाते हैं। इस प्रकार, बिना उचित बजट और संसाधनों के ये वैन केवल दिखावा बनकर रह गई हैं।
कार्यालय में बैठा दिए हैं कर्मचारी
मोबाइल फूड जांच वैन में तैनात करीब 12 कर्मचारियों को कार्यालयों में बैठाया गया है। आउटसोर्स के तहत लगे इन कर्मियों को करीब तीन माह से वेतन नहीं मिला है। खाद्य सुरक्षा एवं विनियमन प्राधिकरण चालकों आदि को रखे जाने के लिए कई बार इलेक्ट्रानिक कार्पोरेशन को लिखा जा चुका है, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। ये वैन और कर्मचारी प्राधिकरण के अधीन आते हैं और कर्मचारी अभी इनके कार्यालय में ही तैनात हैं।
बीते वर्ष लिए सैंपल की 25 दिन बाद आई थी रिपोर्ट
बीते वर्ष दिवाली के दौरान 1400 खाद्य पदार्थों के सैंपल लिए गए थे। इनमें पनीर, दूध, खाद्य तेल और घी आदि के सैंपल शामिल थे। इनकी रिपोर्ट करीब 25 दिन बाद आई, जबकि आठ से 10 दिन में रिपोर्ट देने का निर्देश थे।
मिठाई और खाद्य पदार्थों के करीब पांच से सात पैरामीटर
मिठाई और खाद्य पदार्थों के सैंपल की पांच से सात पैरामीटर पर जांच की जाती है। इसमें गुणवत्ता, रंग, इस्तेमाल होने वाले पदार्थों की गुणवत्ता, दूध व दही पनीर आदि में स्टार्च का इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। इसकी जांच कंडाघाट (सोलन) स्थित एकमात्र सरकारी लैब में होती है। मोबाइल फूड जांच वैन के माध्यम से लिए सैंपल कानूनी तौर पर न्यायालय में मामले भेजने को भेजे जाते हैं।
त्योहारी सीजन में मिठाई और खाद्य पदार्थों के सैंपल की जांच के साथ जल्द रिपोर्ट देने के निर्देश हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने को कहा गया है।
-एम सुधा देवी, सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग।
मोबाइल फूड जांच वैन के लिए केंद्र से एमओयू के तहत राशि नहीं मिली है। इसके कारण मोबाइल फूड वैन का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। केंद्र से मसला उठाया है, उम्मीद है जल्द राशि जारी होगा। मोबाइल फूड वैन का इस्तेमाल कर सैंपल की जांच करने को कहा है।
-जितेंद्र सांजटा, निदेशक, खाद्य सुरक्षा एवं विनियमन प्राधिकरण।
2021 में मिलना शुरू हुई थीं मोबाइल फूड जांच वैन
हिमाचल को मिलावटी मिठाई खाद्य पदार्थ की जांच के लिए केंद्र सरकार से वर्ष 2021 में मोबाइल फूड वैन मिलनी शुरू हुई। 39 लाख रुपये से केंद्र से पहली वैन मिली थी, जिसके बाद 45 और 49 लाख रुपये की ये वैन मिली हैं। वैन के मिलते ही केंद्र से एमओयू साइन हो जाता है। जिसके तहत हर साल इन्हें एक से पांच करोड़ रुपये तक मिल चुके हैं।
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