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    हिमाचल में नशे पर कैसे लगेगी लगाम? गुंजन संस्था ने बताए कई तरीके, बोले- नशे के आदी को जेल नहीं, उपचार की जरूरत

    Updated: Mon, 17 Feb 2025 09:24 PM (IST)

    नशा एक गंभीर समस्या है जिससे निपटने के लिए समाज और सरकार को मिलकर काम करने की जरूरत है। नशे के आदी लोगों को अपराधी नहीं बल्कि बीमार समझना चाहिए और उन्हें उचित उपचार मुहैया कराना चाहिए। इस लेख में हम नशे की समस्या के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और इसके समाधान के लिए संभावित उपायों का पता लगाएंगे।

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    दैनिक जागरण की अकादमिक बैठक में अपनी बात रखते गुंजन संस्था के कार्यकारी निदेशक संदीप परमार व निदेशक विजय कुमार।

    मनोज शर्मा, धर्मशाला। नशा एक बीमारी है और नशे का आदी बीमार है। उसे जेल नहीं, उपचार की जरूरत है। अभी हम उसे अपराधी की तरह पेश कर रहे हैं। इसके लिए प्रशासन के साथ-साथ समाज को सोचना चाहिए। सरकार को भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है कि नशा करने वालों को सही उपचार मिल सके।

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    नई पीढ़ी में सहनशीलता की कमी होती है। जब भी कोई दबाव होता है तो वे नशे का सहारा लेते हैं। यह बात गुंजन संस्था के कार्यकारी निदेशक संदीप परमार व निदेशक विजय कुमार ने सोमवार को दैनिक जागरण प्रेस प्ररिसर में संपादकीय टीम के साथ अकादमिक बैठक में साझा की।

    नशे पर चोट के बताए तरीके

    दैनिक जागरण ने प्रदेशभर में चिट्टे के बढ़ते प्रचलन पर समाज का ध्यान आकृष्ट करने के लिए अभियान चलाया है। विजय कुमार ने मुहिम की सराहना करते हुए कहा कि हम सप्लाई चेन पर तो प्रहार कर रहे हैं, लेकिन मांग रोकने के पक्ष को नहीं देख रहे। जरूरत इस बात की है कि नशे की मांग करने वालों को खंगाला जाए और उनके उचित उपचार की व्यवस्था की जाए। जब मांग ही नहीं रहेगी तो सप्लाई अपने आप रुक जाएगी।

    बच्चों से कैसे करना है व्यवहार?

    विजय कहते हैं कि आजकल के बच्चों के साथ हम 1980-90 के बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं, जो सही नहीं है। आजकल बच्चों में जल्दी समझ बढ़ रही है। बच्चों को अगर घर से ही सही माहौल मिले तो इस तरह नशे की ओर नहीं बढ़ेंगे।

    एक दिन पहले चिट्टे की सप्लाई लेने आए युवाओं के फोटो वायरल होने का उदाहरण देते हुए कहा कि इस तरह हम क्या संदेश देना चाहते हैं। जब किसी के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है तो वह किसी भी हद तक जाता है। हमें व्यवहार भी बदलना होगा।

    नशा करने वाले तो बेसमझ है। अगर हम थोड़ी मात्रा में भी नशे के साथ पकड़े जाने पर जेल में ही डालते रहेंगे तो तो जेलें भर जाएंगी। हमें जेल में ही ऐसा तंत्र विकसित करने की जरूरत है, जिससे इन्हें उपचार मिले, जो कि अभी तक नहीं है।

    यह सभी जानते हैं कि एनडीपीएस एक्ट में गिरफ्तार व्यक्ति का ट्रायल लंबा चलता है। इसी ट्रायल के बीच अगर उसे उपचार की सुविधा मिल जाए तो काफी हद तक नशे की चेन को तोड़ा जा सकता है। कांगड़ा जिले की चर्चा करते हुए विजय ने कहा कि धर्मशाला जेल में 70 प्रतिशत कैदी एनडीपीसी एक्ट के तहत बंद हैं।

    'हर तरह के नशे को रोकना है'

    हम चिट्टे के खिलाफ तो लगातार आवाज उठा रहे हैं कि लेकिन बाजार में कई दवाएं हैं जो चिट्टे से भी खतरनाक हैं और उनका उपयोग नशे के लिए हो रहा है। ऐसा न हो कि हम चिट्टे के चक्कर में उन्हें दूसरे नशे के लिए छोड़ दें। हमें हर तरह के नशे को रोकना है।

    आजकल सात-आठ साल तक बच्चों की समझ 90 प्रतिशत विकसित हो जाती है जबकि 10 प्रतिशत विकास 24 वर्ष की उम्र तक होता है। अगर हम उन्हें इस उम्र तक नशे से दूर रखने में कामयाब हो जाएं तो बड़ी बात होगी। नशा कोई भी हो, वह बीमारियों को दावत देता है।

    संदीप कहते हैं कि शिक्षा विभाग, पंचायती राज संस्थाओं और जिला प्रशासन की इस संबंध में अहम भूमिका है। इनके माध्यम से नशे की रोकथाम के साथ पीड़ितों के उपचार के लिए जो काम किया जा सकता है, वह अभी धरातल पर दिखता नहीं है।

    संदीप कहते हैं कि क्या कभी किसी ने सोचा कि बच्चे नशे की ओर क्यों बढ़ रहे? एक रिपोर्ट की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि 100 में से 98 प्रतिशत बच्चे अकेलेपन के कारण इस अंधेरे की ओर बढ़े हैं। बच्चों को अगर सही माहौल मिले तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।

    रोकने के लिए करना क्या है?

    जब बच्चों का दिमाग विकसित होता है, उस समय उनके साथ इसके दुष्प्रभाव के बारे में बातें करें। बच्चों को अधिक समय दें। जो बच्चे नशा लेते हैं लेकिन आदी नहीं हैं, उन्हें वापस लाना है। इसके अलावा जो नशे के आदी हैं उन्हें उपचार की व्यवस्था करनी है।

    जिस तरह से समाज का एक वर्ग युवाओं के साथ अपराधियों की तरह व्यवहार कर रहा है, वह गलत है। युवाओं के स्वाभिमान को चोट पहुंचाकर उद्देश्य पूरा नहीं होगा। उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए समस्या की जड़ में जाने की जरूरत है। इसमें शिक्षक, माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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