आपदा के खिलाफ AI बनेगा हिमाचल का हथियार, अर्ली वार्निंग सिस्टम होंगे स्थापित; भूकंपरोधी निर्माण पर जोर
हिमाचल प्रदेश में आपदाओं से निपटने के लिए कृत्रिम मेधा (एआइ) का उपयोग किया जाएगा। बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए सरकार ने व्यापक योजना बनाई है। इस योजना में एआइ तकनीक से लैस अर्ली वार्निंग सिस्टम जल निकासी की उचित व्यवस्था स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण और भूकंपरोधी मकानों के निर्माण पर जोर दिया जाएगा।

राज्य ब्यूरो, शिमला। कुछ वर्षों से आपदा के कारण व्यापक हानि झेलते हिमाचल प्रदेश का सहारा अब कृत्रिम मेधा (एआइ) बनेगी। बादल फटने और बाढ़ के साथ ही हिमाचल प्रदेश भूंकप की दृष्टि से भी जोन चार और पांच में आता है।
अब बरसात और भूकंप जैसी आपदाओं से निपटने के लिए व्यापक योजना तैयार की जा रही है, जिसका उद्देश्य आपदा के प्रभाव को कम करना और जनहानि को रोकना है। इस योजना के तहत चार प्रमुख उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) का उपयोग प्रमुखता से होगा।
इसके अतिरिक्त जल निकासी की उचित व्यवस्था, स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण और भूकंपरोधी मकान बनाने पर जोर रहेगा। प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में मानसून के दौरान 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है, जिससे हजारों लोग प्रभावित हुए हैं।
इस संदर्भ में आपदा प्रबंधन के तहत विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इसमें आपदा से पूर्व प्रबंधन के लिए 980 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित किया जाएगा, जो एआइ तकनीक से लैस होगा।
यह सिस्टम पल-पल का डाटा प्रदान करेगा, जिससे आपदा की पूर्व और पश्चात स्थिति का आकलन किया जा सकेगा। इस परियोजना में ड्रोन का उपयोग भी शामिल किया जाएगा, जिससे आपदा के पूर्व और बाद में राहत कार्यों को सुगम बनाया जा सकेगा।
प्रदेश में मानसून के दौरान आपदाओं का मुख्य कारण अवैध डंपिंग और जल निकासी की कमी है, जिसके कारण नालों में पानी भरकर भारी तबाही मचाता है। भूकंपरोधी मकानों के निर्माण के लिए स्ट्रक्चरल डिजाइनिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
70 हजार स्वयंसेवक होंगे प्रशिक्षित तुरंत मिलेगी राहतप्रदेश में 70,000 स्वयंसेवकों को आपदा राहत के लिए तैयार किया जा रहा है, ताकि गांवों में आपदा के समय त्वरित राहत और बचाव कार्य किए जा सकें। पंचायती राज संस्थाओं को आपदा राहत केंद्र के रूप में उपयोग किया जाएगा, जिससे विभिन्न जिलों में स्वयं सेवकों को प्रशिक्षित किया जा सके। उन्हें हर प्रकार की आपदा से निपटने के लिए सक्षम बनाया जा रहा है।
प्रदेश में आपदा से निपटने के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसमें आपदा से पूर्व और बाद की स्थितियों का ध्यान रखा गया है। इस योजना में पानी की निकासी की उचित व्यवस्था, सुरक्षित भवनों का निर्माण, स्वयं सेवकों का प्रशिक्षण और अत्याधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम का उपयोग शामिल है।
-डीसी राणा, विशेष सचिव राजस्व व निदेशक आपदा प्रबंधन
जापान में सबसे अधिक भूकंप आते हैं। वहां भूकंपरोधी मकान बनाने के अतिरिक्त एआइ का उपयोग किया जा रहा है। ड्रेनेज सिस्टम बेहतर होना आवश्यक है, जिससे बरसात का पानी सडकों और नालियों से बहकर बड़े नालों का रूप लेकर भारी तबाही न मचाए। अत्याधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए जाने आवश्यक है।
-विक्रमादित्य सिंह, लोक निर्माण व शहरी विकास मंत्री।
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