Himachal Disaster: प्रकृति का गुस्सा या मानवीय भूल? मंडी में बारिश का कहर जारी, हर साल मिल रहे ताजा जख्म
मंडी पहाड़ों में बसा एक शांत जिला हर बरसात में आपदाओं का सामना कर रहा है। इस बार भी बारिश ने तबाही मचाई जिससे सराज नाचन करसोग और धर्मपुर जैसे इलाके प्रभावित हुए। मकान गिरे खेत बहे और कई लोग बेघर हो गए। सवाल है कि क्या यह सिर्फ कुदरत का गुस्सा है या हमने प्रकृति से छेड़छाड़ की है?

हंसराज सैनी, मंडी। पहाड़ों की गोद में बसा यह शांत और सुंदर जिला मंडी अब हर बरसात में सिसकियों का पर्याय बन गया है। हर साल नई आपदा, हर साल नया मातम।
इस बार भी जून के अंत से लेकर जुलाई भर बारिश ने जो कहर बरपाया, उसने एक बार फिर मंडी को मलबे में तब्दील कर दिया।
सराज, नाचन, करसोग और धर्मपुर—कौन सा इलाका ऐसा बचा जहां तबाही ने दस्तक न दी हो। कहीं मकान जमींदोज़ हुए, तो कहीं खेत और सड़कें बह गईं। सैकड़ों लोग बेघर हुए, कई ने अपनों को खोया। बच्चों के स्कूल मलबे में समा गए, मंदिरों के घंटे खामोश हो गए। एक मंडी शहर इस बार अब तक सुरक्षित बचा था।प्रकृति ने मंगलवार तड़के गहरे घाव दे दिए ।
प्रश्न उठता है, क्या यह सिर्फ कुदरत का गुस्सा है? या हमने ही प्रकृति से छेड़छाड़ कर उसे रुला दिया है?
पहाड़ों को छलनी करती सड़कों की खोदाई , भारी मशीनों से की जा रही कटाई, नदियों के बहाव को मोड़ने की ज़िद-सबने मिलकर जैसे विनाश की पटकथा लिख दी है।
विकास के नाम पर जो निर्माण कार्य चल रहे हैं, क्या वे सोच-समझकर हो रहे हैं? हरियाली की जगह कंक्रीट, पहाड़ों की छाती पर सुरंगें और नालियों की जगह सीमेंट- क्या ये सब पर्यावरण की आत्मा को नहीं छल रहे?
मंडी की आँखों में आज आंसू हैं। उन माताओं की आंखों में, जिन्होंने अपने लालों को खो दिया। उन बुजुर्गों की आंखों में, जिनका जीवन भर का आशियाना बह गया। और उन बच्चों की आंखों में, जो अब स्कूल नहीं, राहत शिविरों में दिन काट रहे हैं।
प्रकृति की यह चेतावनी है। यदि अब भी नहीं चेते, तो शायद आने वाले वर्षों में सिर्फ शोकगीत ही सुनाई देंगे।
अब ज़रूरत है संवेदनशील विकास की, ऐसी योजनाओं की जो प्रकृति की मर्यादा का ध्यान रखें।
क्योंकि मंडी को फिर मुस्कुराना है। पहाड़ों में फिर जीवन की गूंज होनी चाहिए। पर इसके लिए हमें पहले खुद से पूछना होगा-आख़िर किसकी नज़र लगी मंडी को?
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