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    मां के नासमझ गुस्से का दर्दनाक अंजाम... पहले खुद खाया जहर, फिर मासूमों को भी पिलाया; तीनों की हालत गंभीर

    Updated: Sat, 17 May 2025 10:05 PM (IST)

    मंडी जिले के नाचन क्षेत्र में कुसुम नामक एक महिला ने पारिवारिक कलह के चलते पहले खुद जहर खाया और फिर अपने दो बेटों को भी पिला दिया। तीनों की हालत गंभीर ...और पढ़ें

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    मां ने बच्चों को जहर खिलाकर खुद भी किया आत्महत्या का प्रयास (सांकेतिक तस्वीर)

    हंसराज सैनी, मंडी। मां... एक ऐसा शब्द जो जीवन की सबसे बड़ी सुरक्षा का प्रतीक है। लेकिन मंडी जिले नाचन विधानसभा क्षेत्र के सुक्कीबाईं गांव से शनिवार को जो खबर आई, उसने रिश्तों की सबसे मजबूत डोर को भी सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया। एक मां ने छोटी सी बात को लेकर गुस्से में आकर पहले, खुद कीटनाशक निगल लिया फिर अपने दो मासूम बेटों को पिला दिया। अब तीनों की हालत नेरचौक मेडिकल कॉलेज में नाजुक बनी हुई है।

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    गुस्से में उठाया कुसुम ने आत्मघाती कदम

    घटना के पीछे की वजह एक साधारण पारिवारिक बहस बताई जा रही है, जो पति-पत्नी के बीच अकसर होती है। लेकिन शनिवार की दोपहर कुसुम के भीतर कुछ ऐसा टूटा कि उसने अपने ही जिगर के टुकड़ों को मौत की ओर धकेल दिया। सात और चार वर्ष के मासूम बेटे अपने खिलौनों और कहानियों की दुनिया में जी रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि उनकी मां अब उनकी सुरक्षा नहीं, उनकी जान की दुश्मन बनने जा रही है।

    उल्टियां शुरू हुईं तो टूटा राज

    जब घर में तीनों को उल्टियां होने लगीं तो स्वजन भागते हुए पहुंचे और माजरा समझने की कोशिश की। आनन-फानन में उन्हें नेरचौक मेडिकल कॉलेज पहुंचाया। डॉक्टरों की टीम ने तत्काल इलाज शुरू किया, लेकिन अब भी बच्चों की हालत बेहद नाजुक बनी हुई है। मां कुसुम खुद भी बेहोशी की हालत में है और बयान देने की स्थिति में नहीं है।

    अस्पताल में उमड़ा गम और गुस्सा

    जब तीनों को स्ट्रेचर पर लाया गया तो अस्पताल के गलियारों में एक अजीब सी चुप्पी थी। लोग आंसू और आक्रोश के बीच झूल रहे थे। किसी की जुबां से यह निकलना बंद नहीं हो रहा था कि मां होकर कैसे किया उसने ऐसा? कई औरतों की आंखों में आंसू थे। कभी गुस्से से, कभी अफसोस से।

    बड़ा सवाल: क्या गुस्से में मां बन सकती है कातिल?

    यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं, समाज के उस दर्दनाक सच की तस्वीर है, जहां भावनात्मक असंतुलन और मानसिक दबाव कभी-कभी इंसान को हैवान बना देता है। बच्चों की मुस्कान, उनके भविष्य के सपने, सब एक क्षणिक आवेग में बिखर गए।

    अब सवाल यह है कि क्या एक मां का दिल इतना कठोर हो सकता है? क्या समाज, परिवार और तंत्र मिलकर ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक परामर्श को प्राथमिकता देंगे?

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