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यहां हर कदम, हर पल डराते हैं पहाड़; चप्पे-चप्पे पर मंडराती है मौत

हिमाचल में बरसात के कारण दरकते पहाड़ हर पल लोगों को डराते रहते हैं मलबे की चपेट में आने की वजह से यहां अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 11:14 AM (IST)Updated: Mon, 26 Aug 2019 11:14 AM (IST)
यहां हर कदम, हर पल डराते हैं पहाड़; चप्पे-चप्पे पर मंडराती है मौत
यहां हर कदम, हर पल डराते हैं पहाड़; चप्पे-चप्पे पर मंडराती है मौत

मंडी, जेएनएन। मनाली-चंडीगढ़, मंडी-पठानकोट व मंडी-जालंधर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बरसात के दिनों में सफर करना खतरे से खाली नहीं है। तीनों मार्गों पर बरसात के कारण होने वाले भूस्खलन से चप्पे-चप्पे पर मौत मंडराती है। मलबे की चपेट में आने से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। भूस्खलन से राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात भी थम जाता है। इससे न तो लोग समय पर गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं न ही मंडियों तक किसानों व बागवानों के उत्पाद। फोरलेन कार्य के लिए पहाड़ों में बेतरतीब कटिंग से भूस्खलन के मामलों में और इजाफा हुआ है।

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भूस्खलन की दृष्टि से यह क्षेत्र अतिसंवेदनशील

भूस्खलन की दृष्टि से मनाली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग हराबाग से पुंघ व पंडोह से बनाला तक अतिसंवदेनशील हैं। हराबाग से पुंघ के बीच फोरलेन का कार्य लगभग पूरा हो गया है। यहां फोरलेन की सुरक्षा के लिए लगाई रिटर्निंग वॉल दो साल से लगातार धंस रही है। इससे यहां आए दिन हादसे पेश आते रहते हैं। भूस्खलन का मलबा फोरलेन पर आने से एक हिस्से पर करीब एक साल से वाहनों की आवाजाही बंद है। इसी मार्ग पर सात मील, नौ मील, डयोड, हणोगी माता मंदिर, दबाड़ा, शनि मंदिर व बनाला के पास अकसर पहाड़ दरकते रहते हैं। मलबा सड़क पर आने से यहां घंटों यातायात बाधित रहना आम है। सिलसिला कई साल से चल रहा है पर सरकार समस्या का स्थायी समाधान नहीं ढूंढ पाई है। इतना जरूर है कि संभावित खतरे से बचने के लिए यहां सेंसर लगाए गए हैं। फोरलेन बनने के बाद समस्या के समाधान की उम्मीद है। मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोटरोपी, गुम्मा, हराबाग कई साल से सिरदर्द बने हैं। करोड़ों रुपये फूंकने के बाद भी तीनों स्थानों पर भूस्खलन रोकने का स्थायी समाधान नहीं हुआ है।

 

मंडी-जालंधर बाया कोटली धर्मपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाड़छू में कई साल से भूस्खलन हो रहा है। इससे वाहनों की आवाजाही प्रभावित होती रही है। यहां भी समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल हो पाया है। तीनों राजमार्ग केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) के तहत आते हैं। इससे राज्य सरकार अकसर केंद्र पर निर्भर रहती है। मंडी पठानकोट मार्ग को फोरलेन में बदलने की घोषणा हो चुकी है।

फोरलेन से मिलेगी निजात

पंडोह से बनाला तक फोरलेन का काम चल रहा है। दो साल के अंदर काम पूरा होने की उम्मीद है। यहां फोरलेन 10 यातायात सुरंगों से होकर गुजरेगा। इससे भूस्खलन जैसी समस्या से हमेशा के लिए निजात मिलेगी, जानमाल का नुकसान भी न के बराबर होगा। मलबा हटाना निर्माण कार्य में लगी कंपनियों का दायित्व पंडोह से बनाला के बीच भूस्खलन से जो मलबा राष्ट्रीय राजमार्ग पर गिर रहा है, उसे हटाना फोरलेन कार्य में लगी कंस्ट्रक्शन कंपनियों का दायित्व है। फोरलेन का कार्य बीओटी आधार पर हो रहा है। 28 साल तक रखरखाव का जिम्मा कंस्ट्रक्शन कंपनी देखेगी। मशीनरी मौके पर मौजूद रहती है। ऐसे में मलबा हटाने में ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है।

कोटरोपी में प्रबंध कारगर

पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर प्रबंध कारगर रहे और कोटरोपी में पहाड़ नहीं दरके। बरसात शुरू होने से पहले किए प्रबंध कारगर रहे। चार दिन पहले भारी बारिश के कारण मनाली-चंडीगढ़ राजमार्ग 43 घंटे बंद रहा था। इससे लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी।

 

लगातार दरकते पहाड़ों के बीच जोखिम में जान

वैसे तो लंबी और चौड़ी सड़कें विकास लेकर आती हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश की धरती पर विकास के स्थान पर कई स्थानों में विनाश देखने को मिल रहा है। यहां पहाड़ों को चीर काटकर चौड़ी सड़कों को तैयार तो किया जा रहा है लेकिन यही सड़कें जान की दुश्मन भी बन रही हैं। पहाड़ों को काटने के बाद तैयार हुई सड़क की एक तरफ को कटा हुआ पहाड़ होता है तो दूसरी तरफ गहरी खाई। ऐसे में जब कटी हुई पहाड़ी से छोटी सी चटटान भी नीचे की तरफ गिरती है, इस बात से अनजान सड़क पर चल रहे वाहनों पर यह विपदा से कम साबित नहीं होती।

ऐसे ही कई मामले अब सोलन से परवाणू तक होते नजर आते हैं। चंडीगढ़ और  शिमला को सड़क से जोड़ने वाले नेशनल हाइवे को पिछले चार साल से फोरलेन में बदला जा रहा है। जब से निर्माण शुरू हुआ है, हादसे बढ़े हैं। जगह-जगह बेतरतीब कटिंग से बरसात के दौरान भूस्खलन होने से वाहन इसकी चपेट में आ रहे हैं। यातायात जाम होने से हजारों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। लोक निर्माण विभाग का कहना है कि जिला सोलन में ही लगभग दस करोड़ रुपये से अधिक का खर्च सड़कों की मरम्मत का आ जाता है। हर वर्ष अकेले सोलन क्षेत्र को बरसातों के चलते दो से तीन करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। 

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यहां जरा संभलें

चंडीगढ़ से शिमला निकलते वक्त सोलन जिले की सड़कों पर कई स्थान ऐसे हैं, जहां हर समय जान का जोखिम बना रहता है। चक्की मोड़ के निकट ऐसे कई स्पॉट हैं, जो खतरनाक साबित हो सकते हैं। यहां लगभग सौ फीट से अधिक ऊंचा पहाड़ नब्बे डिग्री पर काटा गया है व बारिश के दौरान यहां पहाड़ी से पत्थर गिरने शुरू हो जाते हैं। यह पत्थर पहाड़ से इतना तेज आते हैं कि किसी बड़े ट्रक को भी खाई में गिरा देंगे। इसी तरह के स्पॉट आगे चल कर जाबली के निकट, कुमारहटटी और आंजी के पास भी हैं। फोरलेन निर्माण के दौरान सड़क हादसों में कुछ लोग जान भी गंवा चुके हैं।

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