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    Bilaspur News: हुनर की पाठशाला में कैदी बुन रहे वर्दी, मिसाल बन रही बिलासपुर जेल की ये कहानी

    बिलासपुर जेल में कैदी अपने हुनरमंद हाथों से धागा बना रहे हैं जिससे वर्दी तैयार की जा रही है। यह पहल कैदियों के सुधार और पुनर्वास के प्रयासों को मजबूत कर रही है। धागे बनाने में उनकी मेहनत धैर्य व संकल्प झलकता है। यह काम न केवल उन्हें व्यस्त रखता है बल्कि उन्हें एक रचनात्मक गतिविधि में शामिल करता है जो उनके आत्मसम्मान को बढ़ाने में मदद करता है।

    By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sun, 13 Oct 2024 08:25 AM (IST)
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    बिलासपुर जेल में कपड़े से बन रही कैदियों की वर्दी

    हंसराज सैनी, मंडी। हिमाचल प्रदेश की जिला एवं मुक्त कारागार बिलासपुर की दीवारों के भीतर अपने अपराधों की सजा काट रहे कैदी एक नई कहानी बुन रहे हैं। यह कहानी न केवल जेल सुधारों की एक मिसाल है, बल्कि कैदियों की मेहनत, आत्मनिर्भरता और आत्मसुधार की यात्रा की भी प्रतीक है। हुनरमंद हाथों से कैदी धागा बना रहे हैं, जिससे वर्दी तैयार की जा रही है। यह धागा न केवल कपड़ों को जोड़ रहा है, बल्कि कैदियों को समाज के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण कदम है।

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    जेल में कैदियों को दिया जा रहा प्रशिक्षण

    बिलासपुर जेल में कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें व्यावसायिक कौशल से सशक्त करने के उद्देश्य से बुनाई का काम हो रहा है। कैदियों को धागा बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

    यह पहल कैदियों के लिए एक सृजनात्मक कार्य के रूप में उभरी है जो उनके सुधार और पुनर्वास के प्रयासों को मजबूत कर रही है। जेल प्रशासन इस प्रशिक्षण के माध्यम से कैदियों को बेहतर भविष्य के लिए तैयार कर रहा है ताकि वे हुनर का इस्तेमाल कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

    धागे की बुनाई में छिपी मेहनत

    कैदियों द्वारा धागा बनाने का काम केवल एक शारीरिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह उनके मानसिक और भावनात्मक सुधार का भी एक माध्यम बन रहा है। धागे बनाने में उनकी मेहनत, धैर्य व संकल्प झलकता है। यह काम न केवल उन्हें व्यस्त रखता है, बल्कि उन्हें एक रचनात्मक गतिविधि में शामिल करता है जो उनके आत्मसम्मान को बढ़ाने में मदद करता है।

    आदर्श केंद्रीय कारागार कंडा में होती है सिलाई

    धागे से कपड़ा बनाने के लिए जेल में खड्डी लगाई है। 2018 में कपड़ा मंत्रालय की ओर से एक सजायाफ्ता कैदी को प्रशिक्षण दिया था। अब वह कपड़ा बनाने के साथ अन्य कैदियों को प्रशिक्षित कर रहा है। सफेद रंग में हरी पट्टी लगाकर कपड़ा तैयार कर यहां से आदर्श केंद्रीय कारागार कंडा में वर्दी सिलाई के लिए भेजा जाता है।

    वहां से प्रदेश की जेलों को सप्लाई होती है। यहां बना कपड़ा 88 रुपये प्रति मीटर की दर से दिया जाता है। कुछ दिन पहले 2000 मीटर कपड़ा तैयार कर कंडा कारागार को भेजा था। कपड़े के अलावा शाल, पट्टू व कई अन्य उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं। प्रदेशभर में स्टाल लगाकर उत्पाद बेचे जा रहे हैं।

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    सात प्रकार के बिस्किट और ब्रेड भी बना रहे कैदी

    कैदी यहां सात प्रकार के बिस्किट, ब्रेड, बर्गर, पिज्जा और बेकरी से संबंधित कई अन्य उत्पाद तैयार कर रहे हैं। उत्पादों की सप्लाई स्थानीय मार्केट की दुकानों में की जा रही है। 1960 में स्थापित इस जेल में लगभग 200 कैदी हैं। इनमें कुछ विचाराधीन भी हैं। काम सजायाफ्ता कैदियों से लिया जा रहा है।

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