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    भारतीय राग न केवल मन को छूते, मस्तिष्क की तरंगें भी बदलते हैं, IIT मंडी के शोध में आए चौंकाने वाले परिणाम

    Updated: Mon, 30 Jun 2025 05:05 PM (IST)

    आईआईटी मंडी के न्यूरोसाइंस अध्ययन में पाया गया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है। राग दरबारी सुनने से एकाग्रता बढ़ती है वहीं राग जोगिया भावनात्मक संतुलन में सुधार करता है। प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा के नेतृत्व में हुए इस शोध में ईईजी माइक्रोस्टेट विश्लेषण तकनीक का उपयोग किया गया। अध्ययन में यह भी सामने आया कि भारतीय रागों का प्रभाव सार्वभौमिक है।

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    भारतीय शास्त्रीय संगीत के रिसर्च पर चौंकाने वाले परिणाम। फोटो जागऱण

    जागरण संवाददाता, मंडी। भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मिक ध्वनियां अब सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने विज्ञान की प्रयोगशाला में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

    भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के न्यूरोसाइंस अध्ययन ने यह सिद्ध किया है कि भारतीय राग न केवल मन को छूते हैं, बल्कि मस्तिष्क की गहराई में भी स्पष्ट और मापनीय बदलाव उत्पन्न करते हैं।

    यूएसए के फ्रंटियर्स इन ह्यूमन न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध का नेतृत्व आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा ने किया है। इसमें आईआईटी कानपुर के शोधार्थियों का भी सहयोग रहा। अध्ययन में आधुनिक ईईजी माइक्रोस्टेट विश्लेषण तकनीक का उपयोग कर 40 प्रतिभागियों के मस्तिष्क की प्रतिक्रिया को विश्लेषित किया गया।

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    यह तकनीक मस्तिष्क की बहुत ही सूक्ष्म और क्षणिक स्थितियों को रिकॉर्ड करती है, जिससे विज्ञानी यह समझ पाए कि कौन-से राग मस्तिष्क की किन गतिविधियों को सक्रिय या शांत करते हैं।

    परिणाम चौंकाने वाले और प्रेरणादायक थे

    राग दरबारी, जो अपने शांत और स्थिर प्रभाव के लिए जाना जाता है, ने ध्यान और एकाग्रता से जुड़ी मस्तिष्कीय स्थितियों को सक्रिय किया और मन के भटकाव को घटाया। वहीं, राग जोगिया, जो भावनात्मक गहराई लिए होता है, ने भावनात्मक नियंत्रण और आंतरिक संतुलन में उल्लेखनीय सुधार दिखाया।

    प्रो. बेहरा ने कहा कि यह अत्यंत चमत्कारिक है कि भारतीय राग सदियों से जिस मानसिक स्थिरता की बात करते आए हैं, अब वह विज्ञान की कसौटी पर भी सिद्ध हो रहे हैं। इस शोध के प्रमुख लेखक डा. आशीष गुप्ता ने भी स्पष्ट किया कि परिवर्तन आकस्मिक नहीं थे, बल्कि विज्ञानिक रूप से दोहराए जा सकने योग्य थे।

    इससे यह भी प्रमाणित होता है कि संगीत को मानसिक स्वास्थ्य के एक प्रभावशाली, गैर-दवा आधारित उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए

    परीक्षाओं, साक्षात्कार या उच्च स्तरीय बैठकों से पहले राग दरबारी सुनना एकाग्रता को बढ़ा सकता है। वहीं भावनात्मक संकट के समय राग जोगिया सुनना भावनाओं को संतुलन प्रदान कर सकता है। आईआईटी कानपुर के प्रो. ब्रजभूषण ने भी इस खोज को ऐतिहासिक बताया।

    इससे संगीत आधारित मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के लिए सांस्कृतिक रूप से अनुकूल रणनीतियों का मार्ग प्रशस्त होगा। विशेष बात यह रही कि यही प्रयोग पश्चिमी प्रतिभागियों पर भी किया गया और परिणाम लगभग समान पाए गए।

    इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय रागों की ध्वनि तरंगों का प्रभाव न केवल सांस्कृतिक है, बल्कि उनकी न्यूरोलाजिकल शक्ति सार्वभौमिक भी है।

    यह शोध न केवल विज्ञान और संस्कृति के बीच की खाई को पाटता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों में मानसिक स्वास्थ्य के समाधान पहले से ही मौजूद हैं, सिर्फ हमें उन्हें समझने और अपनाने की आवश्यकता है।