आधार कार्ड की तरह दिमाग का भी होगा यूनिक नंबर, IIT गुवाहाटी ने विकसित की अनोखी तकनीक; हर समस्या का चलेगा पता
Himachal Latest News आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक अनोखा ब्रेन नेटवर्क आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूबीएनआइएन) एल्गोरिदम विकसित किया है। यह मस्तिष्क की जटिल संरचना को डिकोड कर उसे फिंगरप्रिंट जैसी पहचान देगा। यह तकनीक न केवल स्वस्थ मनुष्य के मस्तिष्क की कहानी बताएगी बल्कि अल्जाइमर जैसे गंभीर विकारों की पहचान को भी नई दिशा देगी। विज्ञान जगत में यह वाकई अनोखा प्रयोग है।

हंसराज सैनी, मंडी। सोचिए, अगर आपका मस्तिष्क भी आपका आधार कार्ड बन जाए। हर कनेक्शन, हर गतिविधि एक यूनिक नंबर में तब्दील हो जाए। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी ) गुवाहाटी के शोधार्थियों ने इस कल्पना को सच कर दिखाया है।
शोधार्थियों ने यूनिक ब्रेन नेटवर्क आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूबीएनआइएन) एल्गोरिदम विकसित किया है। यह मस्तिष्क की जटिल संरचना को डिकोड कर उसे फिंगरप्रिंट जैसी पहचान देगा।
मस्तिष्क की बीमारियों के बारे में भी बताएगी तकनीक
यह तकनीक न केवल स्वस्थ मनुष्य के मस्तिष्क की कहानी बताएगी, बल्कि अल्जाइमर जैसे गंभीर विकारों की पहचान को भी नई दिशा देगी। यह शोध स्विट्जरलैंड के ब्रेन साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
फोटो कैप्शन: आईआईटी गुवाहाटी के सहायक प्रोफेसर डा. कोटा नवीन गुप्ता। सौजन्य आईआईटी गुवाहाटी
अगले चरण में इसे अन्य तंत्रिका संबंधित विकारों जैसे अल्जाइमर और स्किजोफ्रेनिया में लागू करना है। इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया है। शोधार्थियों ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (एनआइएमएचएएनएस) बेंगलुरु से 180 पार्किंसंस रोगियों और 70 स्वस्थ व्यक्तियों के मस्तिष्क एमआरआइ स्कैन का उपयोग किया।
उन्होंने मस्तिष्क को नेटवर्क के रूप में देखा। इसमें विभिन्न क्षेत्रों को नोड्स और उनके बीच की कनेक्शन वैल्यू को लिंक के रूप में परिभाषित किया। इन कनेक्शन वैल्यू को वेट करके मस्तिष्क के हर नोड के महत्व को निर्धारित किया गया।
यह भी पढ़ें- हिमाचल: कचरे से बनाई जाएंगी सड़कें, IIT गुवाहाटी के इंजीनियरिंग विभाग की अनोखी पहल; पढ़ें कैसे काम करेगी यह तकनीक
हर व्यक्ति के मस्तिष्क का होगा यूनिक नंबर
इन चरणों के बाद हर व्यक्ति के मस्तिष्क का एक यूनिक नंबर (यूबीएनआइएन) प्राप्त हुआ। शोध का नेतृत्व करने वाले आईआईटी गुवाहाटी के सहायक प्रोफेसर डॉ. कोटा नवीन गुप्ता का कहना है कि यूबीएनआइएन न केवल हर मस्तिष्क की विशेषताओं को समझने में मदद करेगा, बल्कि इसे रिवर्स इंजीनियर कर मस्तिष्क के नेटवर्क को पुनर्निर्मित भी किया जा सकता है।
पार्किंंसंस और मस्तिष्क की कनेक्टिविटी
शोध में पाया गया कि उम्र के साथ मस्तिष्क की कनेक्टिविटी में कमी आती है। यह विशेष रूप से पार्किंसंस रोगियों में स्पष्ट था। पार्किंसंस जो मुख्य रूप से वृद्धावस्था में पाया जाता है। तंत्रिका संरचना और कार्य में गिरावट से होता है।
फोटो कैप्शन: आईआईटी गुवाहाटी के न्यूरल लैब के शोधार्थी। सौजन्य आईआईटी गुवाहाटी
इसके लक्षण जैसे कंपन, कठोरता और धीमी गति बीमारी के विकसित होने के बाद दिखाई देते हैं। यूबीएनआइएन एल्गोरिदम इन लक्षणों के प्रकट होने से पहले मस्तिष्क में हो रहे परिवर्तनों को ट्रैक करने में सहायक हो सकता है।
शोध की संभावनाएं
यूबीएनआइएन न केवल तंत्रिका संबंधित विकारों के शुरुआती निदान में मदद करेगा, बल्कि न्यूरोइमेजिंग (मस्तिष्क की छवियां बनाने और उसका अध्ययन करने की एक मेडिकल इमेजिंग तकनीक) जैसे ईईजी और एमआरआई में भी उपयोगी होगा।
यह मस्तिष्क की ढलने या बदलने की क्षमता (प्लास्टिसिटी) को समझने, तंत्रिका विकारों का इलाज करने और मस्तिष्क की संरचना में बदलावों को ट्रैक करने में मदद करेगा। यूबीएनआइएन भविष्य में मस्तिष्क के लिए फिंगरप्रिंट के रूप में काम कर सकता है। इसे ब्रेन प्रिंटिंग कहा जा सकता है। इससे टेलीमेडिसिन और न्यूरोलॉजी के क्षेत्र में क्रांति आएगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।