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    हिमाचल: कचरे से बनाई जाएंगी सड़कें, IIT गुवाहाटी के इंजीनियरिंग विभाग की अनोखी पहल; पढ़ें कैसे काम करेगी यह तकनीक

    Updated: Thu, 28 Nov 2024 05:42 PM (IST)

    आईआईटी गुवाहाटी ने औद्योगिक कचरे से पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्री विकसित की है। इस सामग्री से सड़कों का निर्माण किया जा सकता है। यह पारंपरिक सीमेंट का एक विकल्प है और कार्बन उत्सर्जन व ऊर्जा खपत को कम करता है। यह सड़क की सबग्रेड परत को मजबूती प्रदान करता है और कमजोर मिट्टी में भी सड़क की ताकत को बढ़ाने में कारगर है।

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    आइआइटी गुवाहाटी के शोधार्थियों द्वारा औद्योगिक कचरे से बनाई गई ईको-फ्रेंडली निर्माण सामग्री

    हंसराज सैनी, मंडी। औद्योगिक और शहरी कचरे का निस्तारण करना निकायों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। शहरों में कचरे के पहाड़ दिखते हैं।

    जिनके पर्यावरण अनुकूल निस्तारण को लेकर कई प्रयास चल रहे हैं। इसी क्रम में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) गुवाहाटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की पहल औद्योगिक व शहरी कचरे के निस्तारण में मील का पत्थर साबित होने जा रही है।

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    यहां के शोद्यार्थियों ने इस कचरे का उपयोग करके पर्यावरण अनुकूल निर्माण सामग्री तैयार की है। इस सामग्री से सड़कों का निर्माण किया जा सकता है।

    सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अनिल के. मिश्रा के नेतृत्व में शोधार्थियों ने औद्योगिक उपोत्पादों व कचरे जैसे जल उपचार कीचड़ (डब्ल्यूटीएस), फ्लाई ऐश (एफए) तथा ग्राउंड ग्रेनुलेटेड ब्लास्ट फर्नेस स्लैग (जीजीबीएस) का उपयोग करके एक टिकाऊ जियोपॉलीमर बनाने की तकनीक विकसित की है। जोकि सीमेंट का एक विकल्प है।

    औद्योगिक कचरे की चुनौती

    औद्योगीकरण व शहरीकरण के कारण हर दिन बड़ी मात्रा में कचरा उत्पन्न होता है। जल उपचार संयंत्रों से निकलने वाले कीचड़ में जैविक घटकों व भारी धातुओं की उपस्थिति होती है। इसे डंपिंग साइट पर फेंकने से पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। यह भूजल में रिसकर प्रदूषण फैलाता है।

    फोटो: आइआइटी गुवाहाटी के सिविल इंजीनियिरंग विभाग के प्रोफेसर अनिल के मिश्रा (मध्य) शोधार्थियों के साथ

    औद्योगिक अपशिष्ट से मृदा, जल प्रदूषण बढ़ने से वायु गुणवत्ता में गिरावट आती है। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा जैव विविधता प्रभावित होती है। मिट्टी का क्षरण होता है। इससे मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। श्वसन संबंधी समस्याएं, त्वचा रोग और कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियां हो सकती हैं। डंपिंग सबसे बड़ी समस्या है।

    जियोपॉलीमर की विशेषताएं

    जियोपॉलीमर एक पर्यावरण-अनुकूल सामग्री है, जो पारंपरिक सीमेंट का विकल्प बन सकती है। इसका निर्माण कार्बन उत्सर्जन व ऊर्जा खपत को कम करता है। यह पांरपरिक सीमेंट जितना ही मजबूत व टिकाऊ है।

    सड़क निर्माण में उपयोग

    शोधार्थियों ने डब्ल्यूटीएस, एफए व जीजीबीएस से बने जियोपॉलीमर को सड़क निर्माण में उपयुक्त पाया है। यह सड़क की सबग्रेड परत को मजबूती प्रदान करता है। कमजोर मिट्टी में भी सड़क की ताकत को बढ़ाने में यह कारगर है। इसके अलावा निर्माण व विध्वंस (सीडी) से निकलने वाले मलबे का उपयोग सड़क बेस व पेवर ब्लाक्स में बनाने में किया गया है।

    फोटो कैप्शन: आइआइटी गुवाहाटी के शोधार्थी विकसित ईको-फ्रेंडली निर्माण सामग्री के साथ

    पर्यावरणीय व औद्योगिक लाभ

    जियोपॉलीमर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह गैर-विषैला है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों के अनुसार इसमें भारी धातुओं का स्तर सुरक्षित सीमा में है। इससे पर्यावरणीय जोखिम व डंपिंग की समस्या कम होगी। फ्लाई ऐश व जीजीबीएस के उपयोग से खतरनाक भारी धातुओं को स्थिर किया गया है। इससे कचरे का रिसाव रुकता है।

    शोध की उपलब्धियां और भविष्य की संभावनाएं

    शोध के निष्कर्ष प्रतिष्ठित जर्नल कंस्ट्रक्शन एंड बिल्डिंग मटीरियल्स में प्रकाशित हुए हैं। इस तकनीक न केवल औद्याेगिक कचरे का कुशल प्रबंधन करेगी,बल्कि टिकाऊ निर्माण के लिए नए विकल्प खोलेगी। संस्थान जल्द ही इस तकनीक का पेटेंट करवाने जा रहा है। इसके शोध के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने वित्तीय सहयोग दिया था।

    भारत जैसे तेजी से शहरीकरण व औद्योगिकीकरण वाले देश में इस प्रकार के नवाचार पर्यावरण संरक्षण व संसाधनों के कुशल उपयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं। कचरे का उपयोग होने से डंपिंग की समस्या का हल होगा।

    -प्रोफेसर अनिल के.मिश्रा, आइआइटी गुवाहाटी