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    ध्वनि तरंगों से चार्ज होगी श्रवण यंत्र की बैटरी, IIT मंडी ने विकसित की तकनीक; 250 रुपये के सिस्टम से सेल बदलने का झंझट खत्म

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Sun, 09 Nov 2025 03:48 PM (IST)

    आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक विकसित की है जिससे श्रवण यंत्र की बैटरी ध्वनि तरंगों से चार्ज हो सकेगी। इस तकनीक में कान के पर्दे की प्राकृतिक तरंगों से बिजली पैदा की जाएगी। यह तकनीक बैटरी बदलने की जरूरत को खत्म कर देगी और पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होगी। इसकी अनुमानित कीमत 250 रुपये होगी। श्रवण हानि से जूझ रहे लोगों के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी साबित होगी।

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    श्रवण यंत्र की बैटरी ध्वनि तरंगों से चार्ज होगी। आइआइटी मंडी का परिसर।

    हंसराज सैनी, मंडी। श्रवण यंत्र की बैटरी ध्वनि तरंगों से चार्ज होगी। बार-बार बैटरी बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। इससे बैटरी निस्तारण से राहत मिलेगी और पर्यावरण संरक्षण भी होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधार्थियों ने ऐसा सेंसर विकसित किया है जो कान के पर्दे की प्राकृतिक तरंगों से बिजली पैदा कर श्रवण यंत्र को चार्ज कर सकता है। यह शोध मेटामटेरियल आधारित पायजोइलेक्ट्रिक सैंडविच सेंसर पर आधारित है।

    यह तकनीक आइआइटी मंडी के स्कूल आफ मैकेनिकल एंड मटेरियल्स इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. राजीव कुमार, प्रोफेसर डा. मोहम्मद तल्हा, शोधार्थी विशेश सिंह और एमएएनआइटी भोपाल के प्रो. जितेंद्र अधिकारी ने तैयार की है। 

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    250 रुपये होगी कीमत

    इस तकनीक से न केवल श्रवण यंत्र पूर्ण रूप से प्रत्यारोपण योग्य बन सकेगा, बल्कि बाहरी बैटरी या सेल पर निर्भरता भी समाप्त हो जाएगी। इसकी कीमत मात्र 250 रुपये रहेगी। शोध ब्रिटेन के इंटरनेशनल जर्नल आफ मैकेनिकल साइंसेस में प्रकाशित हुआ है। शोधार्थियों ने पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है।

    ऊर्जा यंत्र की बैटरी को चार्ज रखेगी

    प्रोफेसर डा. राजीव कुमार ने बताया कि मानव कान का पर्दा जब ध्वनि सुनता है तो उसमें सूक्ष्म कंपन पैदा होती है। इन कंपन को मेटामटेरियल सेंसर विद्युत ऊर्जा में बदल देता है। यह ऊर्जा यंत्र की बैटरी को चार्ज रखती है। इसका अर्थ है कि रोगियों को अब बार-बार श्रवण यंत्र का सेल या बैटरी बदलने या चार्ज करने की जरूरत नहीं होगी। अब यह डर भी नहीं सताएगा कि बैटरी या सेल कहीं डिस्चार्ज न हो जाए। 

    मरीज ही नहीं पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद

    यह तकनीक केवल मरीजों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। पारंपरिक श्रवण यंत्रों में उपयोग होने वाले डिस्पोजेबल सेल कुछ दिन में बदलने पड़ते हैं, जिनका निस्तारण पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। नई तकनीक में सेल की आवश्यकता न होने से इलेक्ट्रानिक कचरे में कमी आएगी और पर्यावरण को भी राहत मिलेगी। मरीजों की जेब भी ढीली नहीं होगी।

    श्रवण हानि एक व्यापक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या

    श्रवण हानि व्यापक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है जो दुनिया में 430 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित कर रही है। लगभग 15 प्रतिशत वयस्कों में किसी न किसी रूप में श्रवण क्षमता में कमी पाई जाती है। काक्लिया जो कि भीतरी कान में स्थित एक सर्पिल आकार का अंग है। ध्वनि कंपन को न्यूरल सिग्नल में परिवर्तित करता है जो हेयर सेल्स के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। जिन व्यक्तियों को काक्लियर हेयर सेल्स के स्थायी नुकसान के कारण गंभीर सेंसरिन्यूरल श्रवण हानि होती है, उनके लिए काक्लियर प्रत्यारोपण एक प्रभावी समाधान साबित होता है। यह उपकरण क्षतिग्रस्त संरचनाओं को बायपास कर सीधे श्रवण तंत्रिका को उत्तेजित करता है, जिससे व्यक्ति को ध्वनि सुनने की क्षमता वापस मिलती है।

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