हिमाचल की आबोहवा में तेजी से हो रहा बदलाव, IMD व कार्डेक्स साउथ एशिया की तकनीकी रिपोर्ट ने क्यों बढ़ाई चिंता?
हिमाचल प्रदेश, जो कभी अपनी ठंडी हवाओं के लिए जाना जाता था, अब गर्मी महसूस कर रहा है। मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, तापमान बढ़ रहा है और वर्षा कम हो रह ...और पढ़ें

हिमाचल प्रदेश के मौसम में बड़ा परिवर्तन आ गया है। दिसंबर में भी पहाड़ों पर नाममात्र बर्फ है। जागरण
हंसराज सैनी, मंडी। जिस हिमाचल को कभी ठंडी हवाओं, बर्फ से ढकी चोटियों और संतुलित मौसम के लिए जाना जाता था, वहां अब गर्मी महसूस की जा रही है। मौसम का मिजाज बदल रहा है। तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्षा के दिन कम होते जा रहे हैं।
आने वाले वर्षों में मौसम का यह बदलाव खेती, बागवानी, जलस्रोतों और जिंदगी को भी सीधे प्रभावित करेगा।
63 साल में कितना बदलाव
मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) के आंकड़े और कार्डेक्स साउथ एशिया के जलवायु माडल पर आधारित एक तकनीकी रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है। 63 वर्ष (1951 से 2013) के दौरान प्रदेश के तापमान, वर्षा व चरम मौसमी घटनाओं में आए बदलावों का विस्तृत विश्लेषण किया है।
रिपोर्ट के अनुसार 1951 से 2013 के बीच प्रदेश का औसत अधिकतम तापमान 25.9 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 13.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। मानसून में अधिकतम तापमान 30.7 डिग्री तक पहुंच जाता था, जबकि सर्दियों में 16.9 डिग्री तक गिर जाता था।
न्यूनतम तापमान में बदलाव की दर अधिक
ऊना, सोलन, हमीरपुर व बिलासपुर जैसे निचले क्षेत्रों में गर्मी का असर अधिक रहा, जबकि लाहुल स्पीति व किन्नौर जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंड ज्यादा बनी रही। हालांकि, न्यूनतम तापमान में बदलाव की दर अधिक पाई गई है जो आने वाले समय में ठंडे क्षेत्रों की पहचान को भी बदल सकती है।
66 प्रतिशत वर्ष मानसून के दौरान हुई
इस अवधि में औसत वार्षिक वर्षा 1284 मिलीमीटर रही है। इसमें से करीब 66 प्रतिशत वर्षा मानसून के दौरान होती थी। कांगड़ा और चंबा में सबसे अधिक वर्षा हुई, जबकि किन्नौर सबसे कम वर्षा वाला जिला रहा है।
भारी व अत्यधिक भारी वर्षा के दिन हुए कम
रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि 1951 से 2013 के दौरान राज्य में वार्षिक वर्षा और वर्षा वाले दिनों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। राज्य में औसतन 101 वर्षा दिवस रहे, लेकिन भारी और अत्यधिक भारी वर्षा के दिन बेहद कम पाए गए। तापमान और वर्षा से जुड़े चरम सूचकांकों के विश्लेषण से पता चलता है कि गर्म रातों की संख्या बढ़ रही है, जबकि ठंडी रातों में कमी आ रही है। लगातार सूखे दिनों की संख्या में बढ़ोतरी और लगातार गीले दिनों में कमी का रुझान भी कई जिलों में सामने आया है। यह बदलाव प्राकृतिक आपदाओं और जल संकट की आशंका को और गहरा कर सकता है। ग्रीन हाउस गैसों के मध्यम और उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
2050 तक 1.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है अधिकतम तापमान
अनुमान है कि मध्य शताब्दी (2021-2050) तक अधिकतम तापमान 1.4 से 1.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है, जबकि सदी के अंत (2071-2100) तक यह वृद्धि 2.5 से 5.0 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है। लाहुल स्पीति जैसे ऊंचाई वाले जिलों में तापमान में अपेक्षाकृत ज्यादा बढ़ोतरी का अनुमान है।
बदलता मौसम सेब व अन्य फसलों के लिए चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि बदलता मौसम सेब और अन्य बागबानी फसलों के लिए चुनौती बन सकता है। हिमपात में कमी और अनियमित वर्षा से जलस्रोत सूखने का खतरा भी बढ़ेगा। यदि अभी से ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो प्रदेश का पारंपरिक मौसम इतिहास बन सकता है।
15 वर्ष बाद धर्मशाला में दिसंबर का सबसे गर्म दिन
प्रदेश में इन दिनों जहां दिन में अप्रैल की गर्मी का अहसास हो रहा है, वहीं सुबह व शाम ठंड सता रही है। इन दिनों अधिकतम तापमान सामान्य से छह से आठ डिग्री सेल्सियस तक अधिक दर्ज किया जा रहा है। मंगलवार को 15 वर्ष बाद धर्मशाला में दिसंबर का सबसे गर्म दिन रहा। छह दिसंबर, 2010 को धर्मशाला में 25.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था और मंगलवार को 25 डिग्री रहा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।