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    भाखड़ा बांध पर पानी के अत्याधिक दबाव से हर साल दर्ज हो रहा झुकाव; कहीं भारी न पड़ जाए BBMB की चेतावनी की अनदेखी

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Sun, 23 Nov 2025 12:30 PM (IST)

    सतलुज नदी पर बने भाखड़ा बांध पर पानी का दबाव बढ़ रहा है, जिससे झुकाव दर्ज किया जा रहा है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने चेतावनी दी है कि यह संरचनात्मक अखंडता के लिए खतरा है। अनदेखी करने पर बांध टूटने और बाढ़ का खतरा है। तत्काल मरम्मत और रखरखाव की आवश्यकता है ताकि किसी भी संभावित आपदा से बचा जा सके। भाखड़ा बांध की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता है।

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    भाखड़ा बांध में पानी के दबाव के कारण हर वर्ष झुकाव दर्ज हो रहा है। जागरण आर्काइव

    हंसराज सैनी, मंडी। भाखड़ा बांध के झुकाव (डिफ्लेक्शन) पर वर्षों से चिंता जताई जा रही है। पानी के अत्यधिक दबाव से हर वर्ष बरसात में बांध में झुकाव दर्ज किया जा रहा है, लेकिन समाधान अब भी अधर में है। भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड (बीबीएमबी) की उच्चस्तरीय बैठक में बांध के बढ़े हुए झुकाव को अत्यंत संवेदनशील स्थिति माना जा रहा है।

    तीन वर्ष पहले विशेषज्ञ एजेंसी से विस्तृत तकनीकी अध्ययन कराने का निर्णय लिया था। अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर भविष्य में जल प्रबंधन रणनीति व सुरक्षा उपाय करने पर सहमति बनी थी, लेकिन भागीदार राज्यों के हित आड़े आ गए थे।

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    1.03 इंच से बढ़ रहा झुकाव

    बोर्ड की 243वीं बैठक की मद संख्या 243.03 में बताया था कि भाखड़ा जलाशय का स्तर लगातार 1670 फीट के आसपास रहने से बांध की बाडी (दीवार) पर दबाव पड़ रहा है। इससे झुकाव अनुमेय सीमा 1.03 इंच से बढ़ रहा है।


    बीबीएमबी बांध सुरक्षा को बता रहा सर्वोच्च प्राथमिकता

    दिसंबर में हरिके बैराज की मांग को पूरा करने के लिए पानी छोड़े जाने के बाद जलस्तर 1656 फीट होने पर झुकाव 1.06 इंच तक घटा था। पंजाब और हरियाणा ने पानी छोड़ने से प्रभावित होने वाले स्थानीय हालात, संभावित जोखिमों को बोर्ड के सामने रखा। बीबीएमबी ने स्पष्ट कहा था कि बांध सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस संबंध में सभी निर्णय तकनीकी आवश्यकता के आधार पर ही लिए जाएंगे।

    पंजाब की चिंता : खेती, खनन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर

    सदस्य (पंजाब) ने उस समय तर्क दिया था कि सतलुज नदी किनारे की अधिकांश भूमि निजी स्वामित्व में है, जहां किसान गैर मानसून मौसम में खेती करते हैं। ऐसे में 5000 क्यूसेक से अधिक पानी छोड़े जाने पर फसलें नष्ट हो जाती हैं और जनाक्रोश पैदा होता है। राज्य में रेत-बालू जैसे निर्माण सामग्री का खनन भी इसी अवधि में होता है जो अधिक जल छोड़ने पर बाधित हो जाता है। राज्य की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। बीबीएमबी से गैर मानसून महीनों में पानी छोड़े जाने से पहले इन पहलुओं पर भी विचार करने को कहा था।

    बीबीएमबी ने दी थी चेतावनी

    बीबीएमबी के अध्यक्ष ने उस समय चेताया था कि मानसून में बाढ़ जोखिम को कम करने के लिए जलाशयों में पर्याप्त खाली स्थान रखना जरूरी है। सदस्य (हरियाणा) ने 1670 फीट पर ही बांध का झुकाव अनुमेय सीमा पार कर जाने को बेहद चिंताजनक बताया था। जलाशय में जमा गाद निकालने की संभावनाएं तलाश कर भंडारण क्षमता बढ़ाने की भी सलाह दी थी। 

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    गाद बढ़ने से जल भंडारण क्षमता हुई प्रभावित

    दरअसल गोबिंद सागर जलाशय में गाद का स्तर बढ़ने से पानी भंडारण की क्षमता प्रभावित हुई है। गाद का दबाव भी बीबीएमबी की चिंता बढ़ाने लगा है। इसको लेकर बीबीएमबी ने गत दिनों जलाशय का बाथिमेट्री सर्वेक्षण करवाया था। पानी के नीचे की जमीन की सतह का मानचित्रण कर तल की गहराई और आकृति का पता लगाने का प्रयास किया था।