Himachal News: अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी बनी राजनीति का अखाड़ा, आठ साल से अधूरा प्रोजेक्ट, कब क्या हुआ?
मंडी में अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी, जो चिकित्सा शिक्षा का केंद्र बनने वाली थी, अब राजनीतिक विवादों में फंसी है। 2017 में शुरू हुई इस यूनिवर्सिटी का उद्देश्य सभी मेडिकल कॉलेजों को एक साथ लाना था, लेकिन स्टाफ की कमी और बुनियादी ढांचे के अभाव के कारण यह अधूरा है। अब इसके स्थानांतरण की घोषणा ने विवाद को और बढ़ा दिया है, जिससे यह राजनीति का अखाड़ा बन गई है।

नेरचौक मेडिकल कॉलेज का परिसर, यहीं से मेडिकल यूनिवर्सिटी चलाई जा रही है। जागरण आर्काइव
हंसराज सैनी, मंडी। यह कहानी है एक ऐसे सपने की, जिसे हिमाचल की चिकित्सा शिक्षा को नई ऊंचाई पर ले जाना था...पर वह सपना अब राजनीति के अखाड़े में उलझकर अधूरा रह गया। नेरचौक में स्थापित अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी कभी प्रदेश के मेडिकल सिस्टम का कमांड सेंटर बनने वाली थी, लेकिन आठ साल बाद भी यह यूनिवर्सिटी अब तक अपनी असली पहचान नहीं बना पाई है।
वीरभद्र ने रखा था नींव का पत्थर, चुनावी माहौल में हुआ था शुभारंभ
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों की घोषणा से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह ने इस यूनिवर्सिटी का शुभारंभ किया था। उस समय इसे प्रदेश की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी कदम बताया गया।
उद्देश्य था नेरचौक मेडिकल कालेज को इसका कैंपस कालेज बनाकर सभी मेडिकल, डेंटल, बीफार्मेसी और पैरामेडिकल कालेजों को एक शैक्षणिक छतरी के नीचे लाना। लेकिन जैसे ही सत्ता बदली, यूनिवर्सिटी की रफ्तार थम गई।
दो साल तक नहीं मिला स्टाफ, फिर 2019 में आई जान
भाजपा सरकार आने के बाद दो वर्ष तक यूनिवर्सिटी के लिए कोई स्टाफ तक नियुक्त नहीं हुआ। कागजों में यूनिवर्सिटी जिंदा रही, जमीन पर सन्नाटा छाया रहा। आखिरकार 2019 में पहले कुलपति की नियुक्ति हुई, तब जाकर हलचल शुरू हुई। लेकिन तब तक बुनियादी ढांचा तैयार करने में कीमती समय निकल चुका था।
2020 में जुड़ने लगे कॉलेज, पर योजनाएं फाइलों में दबी रहीं
वर्ष 2020 में संबद्धता प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू हुई और अब तक 62 कालेज इस यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। इसमें छह मेडिकल, चार डेंटल,चार आयुर्वेदिक,एक बीफार्म आयुर्वेदिक और 47 नर्सिंग कालेज शामिल। यह संख्या भले ही सुनने में बड़ी लगे, पर वास्तविकता यह है नेरचौक में ही खुलने वाले डेंटल, बीफार्मेसी और पैरामेडिकल कालेजों के लिए प्रस्ताव अब भी फाइलों से बाहर नहीं निकले। न स्थायी बिल्डिंग पूरी तरह तैयार हुई, न ही शोध और प्रयोगशालाओं की व्यवस्था मजबूत हो पाई।
नेरचौक में यूनिवर्सिटी खोलने का उद्देश्य हुआ धुंधला
नेरचौक में इस यूनिवर्सिटी को इसलिए खोला गया था ताकि वहां का मेडिकल कालेज इसका कैंपस कालेज बन सके और छात्र सीधे उच्च स्तरीय शिक्षण और शोध से जुड़ सकें। लेकिन आज यूनिवर्सिटी की हालत यह है कि न उसके पास पर्याप्त फैकल्टी है, न ही आधुनिक सुविधाएं। यहां कुल 53 पद स्वीकृत हैं। इसमें 22 पद भरे हुए हैं। बाकी रिक्त हैं।
हर सरकार ने भुनाया राजनीतिक फायदा, पर परिणाम सिफर
अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी की किस्मत चुनावी मौसम के साथ बदलती रही। एक सरकार ने इसे उपलब्धियों में गिनाया, दूसरी ने पिछली सरकार को दोषी ठहराया। नतीजा यूनिवर्सिटी राजनीति का अखाड़ा बन गई। भाजपा सरकार ने ढांगू में भूमि चिन्हित की थी,लेकिन वह 2023 की बाढ़ में बह गई। इसके बाद सुंदरनगर के जड़ोल में भूमि देखी गई। भूस्खलन जोन होने के कारण वहां भी बात नहीं बनी।
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सीएम ने स्थानांतरण करने की कर दी घोषणा
स्वतंत्रता दिवस समारोह पर मुख्यमंत्री सुक्खू ने यूनिवर्सिटी सरकाघाट स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। अब यूनिवर्सिटी स्थानांतरण विवाद में उलझ गई है। धरने प्रदर्शन का दौर जारी है। स्थानीय विधायक इंद्र सिंह गांधी ने चेताया है कि अगर यूनिवर्सिटी स्थानांतरित हुई तो वह आत्मदाह कर लेंगे। वहीं पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता प्रकाश चौधरी भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं।
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