इस एक सलाह से 1968 में बनाया गया था कुल्लू का साराबाई काली माता मंदिर, देवी के 51 शक्तिपीठों में से है एक
कुल्लू के साराबाई में स्थित माता काली का मंदिर 1968 में स्थापित हुआ। स्थानीय मान्यता है कि यहां पहले सड़क दुर्घटनाएं होती थीं जिसे रोकने के लिए माता काली की स्थापना की गई। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है जहां नवरात्रों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां पत्थर की मूर्ति और एक झील है जहां श्रद्धालु मनोकामनाएं पूरी होने पर दान करते हैं।

जागरण संवाददाता, कुल्लू। यूं तो हिमाचल में कई देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी उमड़ती है। लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जिसके बारे में शायद ज्यादा लोग जानते हों।
हिमाचल के जिला कुल्लू के साराबाई में माता काली का मंदिर है। यह मंदिर यहां पर 1968 में स्थापित किया गया है। उस समय इस क्षेत्र में बहुत अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती थी। जब स्थानीय लोगों ने इस जगह की खोजबीन की तो विद्वानों ने यहां पर काली माता की स्थापना के बारे सलाह दी।
पहले यहां पर बहुत ही छोटा सा मंदिर का निर्माण किया गया तथा उसमें काली माता को स्थापित किया गया। उस दिन के बाद इस जगह का नाम कालीमाता मंदिर साराबाई रखा गया। यह स्थल मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है। नवरात्र सहित अन्य दिनों में भी यहां अक्सर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। काली माता भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
इतिहास
- 51 शक्तिपीठों में से यह शक्तिपीठ मां काली हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वे मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं। यह सुंदरी रूप वाली आदि शक्ति दुर्गा माता का काल विकराल और भयपद्र रूप है। इसकी उत्पति असुरों के संहार के लिए हुई थी। साराबाई में जहां पर माता काली का मंदिर स्थापित किया गया है।
- वहां पर अधिक सड़क दुर्घटना हाेती थी। शमशान होने के कारण बुरी शक्तियों का वास अधिक था। इस कारण यहां कई तरह की आवाजें निकलती थी। राहगीरों सहित वाहन चालकों को यहां से गुजरते समय डर लगता था।
- 1968 के बाद में यहां पर होमगार्ड का कार्यालय स्थापित किया गया और होमगार्ड के जवानों द्वारा यहां पर माता काली की पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी। आज के समय में यहां पर स्थानीय लोगों सहित बाहरी राज्यों से कुल्लू मनाली घूमने आने वाले पर्यटक भी माता काली के दर्शन जरूर करते है।
मान्यता
मां काली की यहां पर पत्थर की मूर्ति है। इसके साथ ही यहां पर एक झील का निर्माण भी किया गया है। इस झील में मछलियां रखी गई है। जो लोग यहां पर माथा टेकने आते है वह इन मछलियों को खाने के लिए कुछ न कुछ झील में डाल थे।
श्रद्धालु जो यहां पर आते हैं माता से मनोकामना पूरी करने का आर्शीवाद लेते हैं। जब श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है तो वह यहां पर आते है तथा मंदिर के लिए कुछ न कुछ दान कर देते है। लोगों में माता के प्रति बहुत आस्था है। यहां पर पूरी साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
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कैसे पहुंचें मंदिर
भुंतर एयरपोर्ट से इस मंदिर की दूरी करीब एक किलोमीटर है। मंदिर नेशनल हाइवे के साथ होने के कारण लोग इस मंदिर में पहुंच सकते हैं। कुल्लू मनाली घूमने आने वाले पर्यटक यहां पर रुककर माता का आर्शीवाद लेते है। मंदिर में आने वाले पर्यटकों सहित स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए मंदिर की कमेटी का गठन भी किया गया है। कमेटी के यहां आने वाले लोगों की संभव सहायता करते है।
मंदिर में नवरात्र ही नहीं अन्य दिनों में भी काफी भीड़ रहती है। श्रद्धालुओं के रहने की भी यहां पर व्यवस्था है। श्रद्धालुओं की माता काली मनाेकामना पूरी करती है तथा अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहां पर लोग कुछ न कुछ भेंट कर देते है।
-- -सेस राम, मंदिर कमेटी संयोजक
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