भोलराम नाटक से व्यवस्था पर प्रहार
संवाद सहयोगी, कुल्लू : आज के समाजिक परिवेश में रिश्वत जैसी बड़ी समस्या ने अपने पांव इस कदर फ
संवाद सहयोगी, कुल्लू : आज के समाजिक परिवेश में रिश्वत जैसी बड़ी समस्या ने अपने पांव इस कदर फैला दिए हैं कि इस जंजाल से बाहर निकल पाना मुश्किल हो गया है। भुंतर में भी बाल कलाकारों द्वारा एक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन के संयुक्त तत्वाधान से इस समस्या पर एक नाटक का मंचन किया। नाटक एक भोलेराम नाम के काल्पनिक व्यक्ति पर आधारित है। इसमें भोलाराम अपनी पेंशन के लिए सभी दफ्तरों के चक्कर लगता है परंतु रिश्वत न दे पाने के कारण कोई भी उसका काम नहीं करता। उसे बस उसी बात की ¨चता लगी होती है, उसी ¨चता में भोलाराम मर जाता है, लेकिन उसकी आत्मा उन्ही पेंशन की फाइलों में अटकी होती है। जब यमराज को पता चलता है कि भोलाराम नाम के आदमी की मौत हो चुकी है परंतु उसका जीव अभी भी यमलोक में नहीं पहुंचा है तो यमराज, नारद जी से कहकर भोलाराम के जीव को ढूंढ लाने की बात कहते है। तब नारद जी भोलाराम के जीव को ढूंढते ढूंढते उसी दफ्तर में पहुंचते हैं जहां भोलाराम की पेंशन की फाइल होती है। वहां नारद जी को भोलाराम का जीव मिल जाता है। नारद जी जब उसे अपने साथ चलने को कहते है तो वो कहता है कि मेरा मन तो इन पेंशन की फाइलों में ही अटका है। मैं इन्हें छोड़कर नहीं आ सकता।
यह नाटक हरिशंकर परसाई की कहानी पर आधारित है जिसका नाट्य रूपांतरण, मंच परिकल्पना, पार्श्व ध्वनि व निर्देशन संस्था के निदेशक जीवा नंद द्वारा किया गया। नाटक में मानस, सेजल, देवराज, पियूष, राहुल, काíतक व रामनाथ ने मुख्य भूमिका निभाई। इस अवसर पर श्याम लाल, भूषण देव व संस्था के अन्य रंगकर्मी उपस्थित रहे।
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