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Shardiya Navratri: अपने भक्‍तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं मां तारादेवी, राजा को साक्षात दिए थे दर्शन

Shimla Tara Devi Temple शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर बना तारादेवी मंदिर काफी पुराना है। शिमला के साथ लगती चोटी पर स्थित मां तारा हर मनोकामना काे पूरी करने वाली हैं। हर साल यहां लाखों लोग मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

By JagranEdited By: Rajesh Kumar SharmaPublished: Wed, 28 Sep 2022 07:02 AM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2022 07:46 AM (IST)
Shardiya Navratri: अपने भक्‍तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं मां तारादेवी, राजा को साक्षात दिए थे दर्शन
शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर बना तारादेवी मंदिर

शिमला, जागरण संवाददाता। Shimla Tara Devi Temple, शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर बना तारादेवी मंदिर काफी पुराना है। शिमला के साथ लगती चोटी पर स्थित मां तारा हर मनोकामना काे पूरी करने वाली हैं। हर साल यहां लाखों लोग मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। चोटी पर बने इस मंदिर के एक ओर घना जंगल है, जबकि दूसरी ओर सड़कें। यह मंदिर अब बस सेवा से भी जुड़ गया है। साथ लगते जंगल में शिव बावड़ी भी है। मंदिर में दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की भी व्यवस्था की जाती है। इस मंदिर के साथ आधा किलोमीटर की दूरी पर दूधाधारी मंदिर भी स्थित है। जो श्रद्धालु मां तारा के दर्शन करने पहुंचते हैं वे दूधाधारी मंदिर में भी जरूर जाते हैं। इस मंदिर की यह विशेषता है कि स्थानीय लोगों की गाय यदि दूध नहीं देती है तो दूधाधारी मां से मन्नत करने पर उनकी मन्नत पूरी हो जाती है।

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राजा को दिए थे साक्षात दर्शन

जुनगा नरेश के राज्य काल में आज से करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व जुग्गर नामक स्थान पर एक दिन राजा श्री105 भूपेंद्र सेन शिकार खेलने आए तो घने जंगल से माता ने आवाज दी कि हे राजन तेरी वंश परंपरा बंगाल से चली आ रही है और मैं दश महाविधाओं में से एक महाविधा हूं। राजा माता की आवाज सुनकर बोले कि हे माता दर्शन देकर कृतार्थ करो। राजा की आवाज सुनते ही माता ने दर्शन दिए और कहा कि मेरे स्थान का निर्माण करो। मैं हर समय तुम्हारे वंश और राज्य की रक्षा करूंगी। राजा ने सुनते ही माता के स्थान निर्माण एवं रक्षार्थ पांच सौ बीघा भूमि दान की। जुग्गर नाम के स्थान पर एक माता का मंदिर बनवाया कुछ दिन पश्चात ताराधिनाथ नाम के महात्मा सैर करते-करते इस पर्वत के शिखर पर आए और उन्होंने राजा जुन्गा के श्री105 बलवीर सेन महाराजा से यह माता की अष्टधातु की मूर्ति बनवाई और ताराधिनाथ ने शस्त्रविधी से इस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा श्री105 बलवीर सेन महाराजा के कर कमलों से करवाई गई।

माता का ध्‍वज लेकर युद्ध मैदान में उतरी रानी और पाई विजय

ताराधिनाथ के प्रतिष्ठा करवाने से इस स्थान का नाम तारख रखा गया इसलिए तारा की स्तुति में ताराधिनाथ स्त्राहिमा शरणागतम लिखा है। एक समय राजा जुनगा राजरानी एवं छोटे से राजकुमार को छोड़कर स्वर्गारोहण कर गए तो निकटवर्ती राजा सिरमौर ने जुनगा राजरानी की राजधानी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने तारव आकर मां तारा की स्तुति की कि हे मां अब तेरे बिना मेरा कोई सहायक नहीं तू मेरे शत्रु का विनाश कर मेरे राज्य की रक्षा करो। हे माता तू मेरी कुल देवी है। अतः मैं तेरी शरण में आई हूं। रानी की प्रार्थना सुनकर माता ने दर्शन दिए और कहा कि मेरे झंडे को युद्ध में साथ लेकर शत्रु से लड़ने जा तेरी विजय होगी। मां के वचन सुनते ही राजरानी महासू पर्वत पर शत्रु से घमासान युद्ध करने गई और अंत में विजयश्री रानी जुनगा की हुई। सिरमौर नरेश को युद्ध में मारा गया और उसकी शेष सेना माता की कृपा से मैदान छोड़ कर भाग गई।

नवरात्र में पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु

तारा देवी मंदिर के पुजारी कमलेश शर्मा का कहना है तारादेवी मंदिर में नवरात्र के दाैरान राजधानी ही नहीं अन्य राज्यों से घूमने आए पर्यटक भी माथा टेकने भारी संख्या में पहुंचते हैं। नवरात्र में विशेष तौर से श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस व होमगार्ड के जवान तैनात किए गए हैं। मां के दर्शनों के लिए आने व जाने के लिए अलग-अलग व्यवस्था गई है ताकि श्रद्धालु आसानी से मंदिर में दर्शन कर सकें और भगदड़ सा माहौल न बने। यह मंदिर सरकार के अधिग्रहण में है और यहां का प्रबंध सरकार की ओर से स्थापित ट्रस्ट की परंपराओं एवं रस्मों के अनुकूल किया जाता है।


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