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    Sawan 2022:सिरमौर जिला की पौराणिक श्रृंगी गुफा में ऋषि श्रृंगी ने की थी भगवान शिव की कठोर तपस्या

    By Richa RanaEdited By:
    Updated: Fri, 15 Jul 2022 10:36 AM (IST)

    हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है।यहां कई देवी देवता का निवास स्‍थान है। जिला सिरमौर के पच्छाद उपमंडल के लाना चब्यूल में एक पौराणिक गुफा है जहां पर वर्षों तक श्रृंगी ऋषि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर कई शक्तियां प्राप्त कीं।

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    इस पुरानी गुफा में भगवान शिव तथा गणेश जी की आकृतियां स्वयं उभर कर सामने आए हैं।

    नाहन, राजन पुंडीर। हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है। यहां पर हजारों वर्षों से देवी-देवता, ऋषि- मुनि व यक्ष- गंधर्व विभिन्न रूपों में विद्धमान है। जिला सिरमौर के पच्छाद उपमंडल के लाना चब्यूल में एक पौराणिक गुफा है, जहां पर वर्षों तक श्रृंगी ऋषि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर कई शक्तियां प्राप्त कीं। पच्छाद उपमंडल मुख्यालय सराहां से करीब 30 किलोमीटर इस स्थान तक मडीघाट जयहर होते हुए लाना चब्यूल पहुंचा जा सकता है। नाहन से बागथन होकर इस गुफा तक पहुंचा जा सकता है। इस पुरानी गुफा में भगवान शिव तथा गणेश जी की आकृतियां स्वयं उभर कर सामने आए हैं।

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    गुफा कितनी लंबी है, इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। मगर श्रृंगी ऋषि मंदिर कमेटी द्वारा इस गुफा में तो 200 मीटर तक लाइटों का प्रबंध किया गया है। जहां तक श्रद्धालु इस गुफा में जाते हैं। गुफा में स्वयंभू शिवलिंग तथा गणेश जी की आकृतियों के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वर्ष भर श्रद्धालु यहां पर चले रहते हैं। शिवरात्रि को यहां पर विशेष पूजा-अर्चना होती है। यहां पर शिवरात्रि के अवसर पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। सैनधार क्षेत्र की श्रृंगी ऋषि गुफा में द्वापर युग में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान ऋषि श्रृंगी के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऋषि श्रृंगी, महर्षि शमीक के पुत्र थे। जिन्होंने इस गुफा में वर्षों तक कठोर तपस्या के बाद कई शक्तियां प्राप्त की थी। श्रृंगी ऋषि मंदिर कमेटी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह ने बताया कि पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेता युग में जब महाराज दशरथ के संतान नहीं हो रही थी। तो मुनि वशिष्ट ने राजा को श्रृंगी ऋषि के तप और शक्तियों के बारे में जानकारी दें तथा स्वयं मुनि वशिष्ठ श्रृंगी ऋषि को अयोध्या से यहां लेने आए थे। उस समय इसी गुफा में श्रृंगी ऋषि तपस्या में लीन थे।

    मुनि वशिष्ट के आग्रह पर श्रृंगी ऋषि अयोध्या गए तथा उन्होंने राजा दशरथ के यहां पुत्र यज्ञ किया। यज्ञ पूरा होने पर यज्ञ कुंड की अग्नि से खीर प्रकट हुई। श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ को खीर देखकर कहा कि अपनी रानियों में इसे बराबर बांट कर खाने को दे दो। उसके बाद राजा दशरथ के यहां 4 पुत्र हुए। श्रृंगी ऋषि तप करने के लिए दोबारा से ईसी गुफा में लौट आए तथा फिर से तपस्या में लीन हो गए। कुछ वर्षों से अंग देश में अकाल पड़ रहा था। अंगदेश के राजा लोपपाद को उनके मंत्रियों ने तथा ऋषियों ने सलाह दी कि हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रृंखला में ऋषि श्रृंगी तपस्या कर रहे हैं। यदि आग्रह कर ऋषि श्रृंगी को अंगदेश लाया जाए तथा उनसे वरुण यज्ञ करवा जाए, तो बारिश होगी। जिसके बाद राजा लोपपाद ने उन्हें आदर पूर्वक अपने साथ अंगदेश लेकर चले गए। जहां पर ऋषि श्रृंगी ने वरुण यज्ञ किया तथा वर्षों से अकाल पड़े देश मे भारी बारिश हुई तथा अकाल समाप्त हुआ।

    श्रृंगी ऋषि मंदिर कमेटी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह बताते हैं कि धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान परशुराम हिमालय में विचरण करते थे, तो उन्होंने कई बार श्रृंगी गुफा का भी भ्रमण किया। एक अन्य कथा के अनुसार वर्षों पूर्व एक शिव भगत इस ग्रुप में दर्शन के लिए आया। वह काफी समय तक गुफा में इधर-उधर भटकता रहा। कई किलोमीटर दूर जाकर उसे कुछ आवाजें सुनाई दी। जोकि उखल में धान कुटने की थी तथा वह भगत जोर-जोर से आवाज लगाने लगा कि उसे गुफा से बाहर निकालो। तब डिंगर किनर के ग्रामीणों ने आवाज वाले स्थान की खुदाई कर भगत को बाहर निकाला। तो उसने गुफा में जो- जो देखा। वह वहां के ग्रामीणों को बताया। उसके बाद से श्रृंगी ऋषि की गुफा में भक्तों का आना जाना लगा रहता है।

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